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सूंग का चौसिंग्या करेगा राजजात की अगवानी

नंदा पथ का सबसे खास आकर्षण है चौसिंग्या खाडू (मेढ़ा)। यही एकमात्र प्राणी है, जो नौटी से होमकुंड तक राजजात की अगवानी करता है। इस बार चार सींग वाले इस खाडू का जन्म घाट विकासखंड के सूंग गांव में हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार चौसिंग्या को भगोती नंदा का देव रथ माना गया है। यह

By Edited By: Published: Sun, 17 Aug 2014 01:44 PM (IST)Updated: Sun, 17 Aug 2014 01:50 PM (IST)
सूंग का चौसिंग्या करेगा राजजात की अगवानी

देहरादून, [दिनेश कुकरेती]। नंदा पथ का सबसे खास आकर्षण है चौसिंग्या खाडू (मेढ़ा)। यही एकमात्र प्राणी है, जो नौटी से होमकुंड तक राजजात की अगवानी करता है। इस बार चार सींग वाले इस खाडू का जन्म घाट विकासखंड के सूंग गांव में हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार चौसिंग्या को भगोती नंदा का देव रथ माना गया है। यह 12 बरस में नंदा के मायके के क्षेत्र में पैदा होता है। इसी की पीठ पर लादकर मां नंदा की समौण (सौगात) को कैलाश पहुंचाया जाता है। होमकुंड से खाडू को पूजा-अर्चना के बाद कैलाश के लिए अकेले ही रवाना कर दिया जाता है, जिसका आज भी नंदा के भक्त परंपरा के रूप में निर्वहन कर रहे हैं।

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मान्यता है कि कुंवरों के गांव के आसपास ही चार सींग वाला खाडू जन्म लेता है। उसी वर्ष राजजात की तैयारी शुरू हो जाती है। कहते हैं कि इस मेढे़ को संपूर्ण नंदा पथ का ज्ञान स्वत: हो जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार देवी ने विचार किया कि मेढ़ा ही पर्वतीय क्षेत्र के दुर्गम रास्तों पर चलने में सर्वाधिक समर्थ है। इसलिए मेढ़े को ही अपनी शक्ति का अंश देकर राजजात का पथ प्रदर्शक बनाया। मान्यता यह भी है कि चांदपुर क्षेत्र में देवी का दोष लगने पर शैलेश्वर मंदिर की हद (क्षेत्र) के प्रमुख व्यक्ति सम्मेलन कर निश्चय करते हैं। इसके उपरांत सभी विवाहित युवतियां भूमिया देवी उफराई की पूजा करती हैं, जिसे मौडवी कहा जाता है और इसकी यात्रा को 'डोल जात्रा'। फिर कांसुवा के कुंवर नंदा विंटक नौटी में आकर राजजात की मनौती करते हैं और तब उस क्षेत्र में चौसिंग्या खाडू पैदा हो जाता है अथवा ढूंढ लिया जाता है।

यूं तो चौसिंग्या खाडू बहुत कम देखने में आते हैं, लेकिन यदि बगैर मनौती के भी कहीं ऐसा खाडू पैदा हो जाए तो माना जाता है कि देवी मनौती मांग रही है। इतिहासकार डॉ.शिव प्रसाद नैथानी के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में सर्वत्र ऐसे मेढ़े को बड़े सम्मान की वस्तु समझा जाता रहा है। जब श्रीनगर राज्य नरेश मानशाह ने 1600 ईसवी के आसपास पश्चिमी तिब्बत के अंतर्गत दापा (दाबा) के गढ़पति काकुवामोर को पराजित किया तो उसने प्रतिवर्ष सवा सेर सोना और एक चौसिंग्या खाडू को गढ़ राज्य को भेंट करने का वचन लिया था।

डॉ. नैथानी लिखते हैं कि कांसुवा के कुंवर रिंगाल की छंतोली (छाता) बनवाकर चौसिंग्या खाडू सहित नौटी आते हैं। रिंगाल की छंतोली पर देवी की सोने की प्रतिमा रखी जाती है। अब छंतोली देवी का छत्र बन जाता है। लोकमान्यता के अनुसार जिस गौशाला में चौसिंग्या जन्म लेता है, उसमें उसी दिन से रात के वक्त नंदा का वाहक बाघ आने लगता है। वह तब तक आता रहता है, जब तक चौसिंग्या का स्वामी उसे अपनी भेंट-पूजा समेत नंदा राजजात को अर्पित करने की मनौती नहीं रखता। इस बार सूंग गांव निवासी केदार सिंह की भेड़ों में चौसिंग्या खाडू की पहचान की गई।

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