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भीगी पलकों के साथ नंदा की विदाई शुरू

एक साल से घुमड़ रहे आशंका के बादल छंटे और आशा का सूरज चमक उठा। सोमवार सुबह नंदा धाम नौटी भगवान भुवन भास्कर के प्रकाश से रोशन हुआ तो लगा मानो हिमालय पुत्री नंदा की विदाई का वह भी साक्षी बन रहा हो। 1

By Edited By: Published: Tue, 19 Aug 2014 10:53 AM (IST)Updated: Tue, 19 Aug 2014 03:17 PM (IST)
भीगी पलकों के साथ नंदा की विदाई शुरू

नौटी [चमोली], जागरण संवाददाता। एक साल से घुमड़ रहे आशंका के बादल छंटे और आशा का सूरज चमक उठा। सोमवार सुबह नंदा धाम नौटी भगवान भुवन भास्कर के प्रकाश से रोशन हुआ तो लगा मानो हिमालय पुत्री नंदा की विदाई का वह भी साक्षी बन रहा हो। 185 परिवारों वाले चमोली जिले के नौटी गांव में आस्था का सागर हिलारें ले रहा है। बच्चे, बूढे़, जवान, विशिष्टि, अतिविशिष्ट और सामान्य लोग हजारों की संख्या में नंदा को विदा करने पहुंच रहे हैं। प्रत्येक बारह साल में ससुराल जाने वाली भगवती नंदा इस बार 14 साल बाद विदा हो रही हैं। वर्ष 2013 में आई आपदा के कारण यात्रा स्थगित करना पड़ी थी। शुभ मुहूर्त पर पूर्वाह्न ठीक 11.35 बजे वैदिक मंत्रोच्चारण और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की गूंज के बीच डोली रवाना हुई और लगभग दस किलोमीटर की दूरी तय कर शाम 6.30 बजे ईड़ा बधाणी पहुंची। इसी के साथ हिमालयी महाकुंभ श्री नंदा राजजात शुरू हो गई है। 280 किलोमीटर लंबे सफर में बीस पड़ावों के बाद यात्रा छह सितंबर को विश्राम लेगी। यात्रा के महत्व को रेखांकित करते हुए नौटी पहुंचे राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी ने कहा 'नंदा हिमालय की सांस्कृतिक विरासत का सशक्त प्रतीक हैं।'

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नंदा धाम नौटी में रविवार से ही गहमा गहमी बनी हुई थी। देर शाम जैसे ही राजकुंवरों के गांव कांसुवा से नंदा देवी राजजात समिति के अध्यक्ष राजवंशी डॉ. राकेश कुंवर चौसिंग्या खाडू (चार सींग वाला मेढ़ा) और राज छतौली के साथ नौटी पहुंचे माहौल में उल्लास छा गया। सोमवार सुबह ब्रह्म मुहूर्त से ही नंदा धाम के पुरोहित मदन मोहन मैठाणी के नेतृत्व में नौटी स्थित नंदा चौंरा में भूमिगत श्रीयंत्र की पूजा-अर्चना शुरू हो गई। इस दौरान नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा कर सोने-चांदी के आभूषणों से श्रृंगार किया गया। इसके साथ ही नंदा के रक्षक गुरजा माई, वीर, लाल माई और चंडिका की पूजा अर्चना की गई। इस बीच श्रद्धालुओं के दर्शन का सिलसिला भी जारी रहा।

पूर्वाह्न ठीक 11.35 बजे डोली अपने पहले पड़ाव समुद्र तल से 1240 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ईड़ा बधाणी के लिए रवाना हुई तो भक्तिमय माहौल भावुक हो उठा। वहां मौजूद हजारों के लोगों के हाथ जुड़े हुए थे तो दिलों में उल्लास के साथ बेटी की विदाई की उदासी भी हूक मार रही थी। शंख ध्वनि, तुरही, भंकोरा की गूंज और ढोल-नगाड़ों की थाप के साथ यात्रा का शुभारंभ हुआ। यात्रा में सबसे आगे शिवधाम कैलाश तक जाने वाला भगवती नंदा का 'सहयात्री' चौसिंग्या खाडू और ठीक पीछे राज छतौली है। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी राह में खड़े हजारों लोगों ने यात्रा का भव्य स्वागत किया। ईड़ा बधाणी के रास्ते में स्थित सिंगली गंाव में नंदा अपनी बहन देवी उफराई से मिलीं तो माहौल फिर भावुक हो गया।

रात्रि विश्राम के बाद मंगलवार को यात्रा एक बार फिर ईड़ा बधाणी से नौटी पहुंचेगी और अगले दिन बुधवार को कांसुवा के लिए प्रस्थान करेगी। यात्रा के शुभारंभ अवसर पर राज्यपाल डॉ. अजीज कुरैशी के अलावा वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश, विधानसभा के उपाध्यक्ष अनुसूया प्रसाद मैखुरी, पर्यटन मंत्री दिनेश धन्नै, विधायक राजेंद्र भंडारी और नंदा देवी राजजात समिति के महामंत्री भुवन नौटियाल के साथ ही प्रशासन के आला अधिकारी भी उपस्थित थे।

20 दिन तक चलेगी नंदा राजजात

नंदा राजजात यात्रा आज सोमवार से शुरू होकर अगले 20 दिन तक चलेगी। इस अवधि में यात्रा हिमालय के दुर्गम व अतिदुर्गम 20 पड़ावों में विश्राम करेगी। इन पड़ावों में कांसुवा, सेम, कोटि, भगोती, कुलसारी, चेपड्यूं, नंदकेसरी, फल्दिया, मुंदोली, वाण, गैरोली पातल, वेदनी, पातल नौचणियां, शिला समुद्र, होमकुंड चंदनियांघाट, सुतोल व घाट शमिल हैं और रुपकुंड से होकर गुजरने वाला दुर्गम बर्फीला रास्ता भी है। हिमाचल में इतनी ऊंचाई पर दुर्गम व जोखिमभरे रास्तों पर बीस दिनों तक होने वाली यह यात्रा अपने आप में अनूठी है।

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कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति नंदा की जात


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