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आ ही गया बेटी की विदाई का पल

नौटी में भोर बेहद खुशनुमा है। खिड़की से सूरज की किरणें आंखों पर पड़ रही हैं और नीचे गांव के बीचोंबीच स्थित नंदादेवी मंदिर से घंटे-घड़ियालों की ध्वनि मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित कर रही है। प्रकृति के अपार सौंदर्य को समेटे नंदाधाम नौटी में सुबह का यह नजारा सुखद अहसास करा रहा है। राजजात की व्यवस्था के

By Edited By: Published: Mon, 18 Aug 2014 10:43 AM (IST)Updated: Mon, 18 Aug 2014 11:30 AM (IST)

नौटी से सुभाष भट्ट। नौटी में भोर बेहद खुशनुमा है। खिड़की से सूरज की किरणें आंखों पर पड़ रही हैं और नीचे गांव के बीचोंबीच स्थित नंदादेवी मंदिर से घंटे-घड़ियालों की ध्वनि मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित कर रही है। प्रकृति के अपार सौंदर्य को समेटे नंदाधाम नौटी में सुबह का यह नजारा सुखद अहसास करा रहा है। राजजात की व्यवस्था के लिए नौटी पहुंचे तमाम सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़े लोग भी सुबह से ही अपने काम में जुटे हैं। ग्रामीण हाथ में पूजा की थाली व चढ़ावा लेकर मंदिर की ओर जुटने लगे हैं। मंदिर के पुजारी मदनमोहन मैठाणी मां नंदा के भक्तों के माथे पर तिलक लगाकर पूजा-अर्चना कर रहे हैं। असल में गांव में उत्साह व उमंग का यह वातावरण 14 साल बाद लौटा है।

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गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं कि नंदादेवी राजजात के पावन मौके पर ही नौटी का हर परिवार अपने गांव लौटता है। अन्यथा, गांव के तकरीबन 175 में से महज 80 परिवार ही गांव में निवास कर रहे हैं। बाकी रोजी-रोटी, बच्चों की शिक्षा आदि के लिए नगरों व महानगरों की ओर रुख कर गए। यानी, पलायन के दर्द से पहाड़ के अन्य इलाकों की तरह नौटी भी अछूता नहीं है। बावजूद इसके कि चारों ओर हरियाली से पटे खेत-खलियानों में परंपरागत फसलों के साथ ही चाय बगानों के छोटे-छोटे चक भी नजर आ रहे हैं। मन में ख्याल आया कि कर्णप्रयाग से नौटी के बीच फैली इस सुरम्य पहाड़ी क्षेत्र में जब प्रकृति ने इतना कुछ दिया है, तो फिर पलायन क्यों। खैर! वजहें भी कम नहीं हैं। बहरहाल! नंदाधाम के मंदिर में मां के भक्त जुट रहे हैं। छोटे से मंदिर की बांई ओर नंदा का चौंरा सुंदर लाल वस्त्रों व आभूषणों से सजा है।

नंदादेवी की मूर्ति चांदी के कई छोटे-बड़े छत्रों के साथ बेहद आकर्षक लग रही है और नंदा के मैती (मायके वाले) देवी का यह रूप देखकर आस्था के सागर में डूबते नजर आ रहे हैं। राजजात समिति के महामंत्री भुवन नौटियाल मंदिर में आज होने वाले आयोजन की तैयारी में जुटे हैं। दिल्ली, देहरादून जैसे शहरों से पहुंचे परिवारों की नई पीढ़ी में राजजात को लेकर खासा उत्साह है। दिल्ली के इंदिरापुरम से गांव आए 25 वर्षीय अंकित नौटियाल अपने मित्रों के साथ मंदिर परिसर की सजावट में जुटे हैं। उत्साह भरपूर है, मगर अफसोस सिर्फ इस बात का है कि छुट्टी अधिक न होने की वजह से राजजात में आगे नहीं जा पाएंगे। शाम चार बजे कुंवरों के गांव कांसुवा से चौसिंग्या खाडू व राजछंतौली नौटी पहुंचनी है। नौटी के राजपुरोहित गांव से करीब एक-डेढ़ किलोमीटर दूर रामेश्वर के समीप खलधार तक परंपरागत बाजे-भंकोरों के साथ लेने जाएंगे। रीति-रिवाज के साथ चौसिंग्या खाडू व राजछंतौली को नंदाधाम तक लाया जाएगा। स्वागत व सत्कार के बाद विधिवत पूजा-अर्चना होगी और रातभर पूरा नौटी गांव व आसपास के दर्जनों गांव नंदादेवी के जागरों से गुंजायमान रहेंगे।

आतागाड (तलहटी में बह रही पहाड़ी नदी) के दूसरी तरफ चांदपुरगढ़ी व आदिबदरी का पूरा इलाका भी शायद नंदाधाम के घंटे-घड़ियालों व जागरों की ध्वनि सुन रहा होगा। आज भादौं की संग्रांद है और सोमवार एक गते नौटी से विधिवत पूजा-अर्चना के बाद नंदाधाम नौटी से प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात का विधिवत शुभारंभ हो जाएगा। करीब 280 किलोमीटर लंबे इस हिमालयी सचल महाकुंभ के शुभारंभ की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, मन में उत्साह व शरीर में ऊर्जा का संचार भी तेज हो रहा है।

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कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति नंदा की जात


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