भगवती की नेमत, भक्तों की आस्था
दानवीर कर्ण की तपस्थली कर्णप्रयाग में एक रात बिताने के बाद हम सुबह-सुबह ईड़ाबधाणी की ओर रवाना हुए। जी हां! छह जुआ (छोटे गांवों) का वही गांव ईड़ाबधाणी, जिसकी नैसर्गिक सुंदरता पर देवी नंदा भी मोहित हो उठी थी। गांव के मुखिया जमन सिंह जदोड़ा को दिया वचन निभाने के लिए हर बार की तरह बीते रोज भगवती नंदा
ईड़ाबधाणी, [सुभाष भट्ट]। दानवीर कर्ण की तपस्थली कर्णप्रयाग में एक रात बिताने के बाद हम सुबह-सुबह ईड़ाबधाणी की ओर रवाना हुए। जी हां! छह जुआ (छोटे गांवों) का वही गांव ईड़ाबधाणी, जिसकी नैसर्गिक सुंदरता पर देवी नंदा भी मोहित हो उठी थी। गांव के मुखिया जमन सिंह जदोड़ा को दिया वचन निभाने के लिए हर बार की तरह बीते रोज भगवती नंदा कैलाश (ससुराल) जाने से पहले गांव की पूजा लेने यहां पहुंची है। लिहाजा, देवी के दर्शनों को कर्णप्रयाग क्षेत्र के सैकड़ों गांवों से श्रद्धालु गांव की ओर उमड़ रहे हैं। जीप में आगे बढ़ते हुए इस खूबसूरत गांव पर नजर पड़ते ही अहसास हो गया कि प्रकृति (नंदा) ने ईड़ाबधाणी को विशेष आशीर्वाद से नवाजा है। गांव में चारों ओर खेत-खलिहान हरियाली से पटे पड़े हैं।
गांव के उम्मेद सिंह गुसाई बताते हैं कि करीब डेढ़ सौ परिवारों के इस गांव में पलेठी, सांकरी, घटगाड, काफलडाली, टोलडंग व भड़ेगांव नामक छह तोक शामिल हैं। मेरी स्मृति में यह पहला ऐसा गांव है, जहां पलायन का दर्द कहीं नजर नहीं आ रहा। सुरेंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि गांव के कुछेक परिवार ही गांव से बाहर रहते हैं। गांव के बीचोंबीच मंदिर की ओर पहुंचे तो देखा हजारों की तादाद में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है। देवी नंदा के प्रति अगाध आस्था एवं प्रेम उनके चेहरे पर साफ झलक रहा है। देवी के पश्वा भक्तों को आशीर्वाद स्वरूप ज्यूंदाल (चावल) दे रहे हैं। मंदिर के एक कोने में साउंड सिस्टम पर महिलाओं की एक टोली देवी नंदा के गीत गा रही हैं, 'जै-जैकार होयां तेरी पिताजी हेमंत, जै-जैकार होयां तेरी माता मैणा रे' (देवी नंदा के पिता हेमंत व माता मैणा तुम्हारी जै-जैकार हो)। नंदा की विदाई के पल नजदीक आए तो गीत के बोल बदल गए, 'झालों की काखड़ी ल्योलो बाड़ों की मुंगरी, तुमहुणी ल्योलो स्वामी दाख दाड़िम, वो चूड़ी-भुजली स्वामी तुमहुणी ल्योलो, बाड़ों की मुंगरी स्वामी तुमहुणी खिलोलो' (स्वामी मायके से मैं झालों की ककड़ी और बाड़ों की मकई लाऊंगी, तुम्हारे लिए अनार लाऊंगी)। ठेठ पहाड़ी बोली में नंदा व शिव के बीच संवाद के ये गीत मायके के प्रति धियाणियों के अगाध मोह को प्रदर्शित करते हैं। ईड़ा बधाणी से नंदा की छंतोली व चौसिंग्या खाडू की अगुवाई में विदा लेती है। इस बेहद भावनात्मक माहौल के बीच आगे बढ़ते हुए हमारा भी दिल भर आया है। करीब एक किलोमीटर खड़ी चढ़ाई पार करने के बाद रिठोली गांव में देवी का भव्य स्वागत होता है। फिर करीब दो किलोमीटर चढ़ाई के बाद धार पर बसे दियारकोट में भी गांववासी नंदा के दर्शन करने के साथ श्रद्धालुओं का प्रेमभाव से आवाभगत करते हैं। ग्रामीणों के आदर-सत्कार से साफ हो गया कि पहाड़ में वर्षो से चली आ रही 'अतिथि देवो भव:' की परंपरा अब भी जिंदा है। इसके बाद जात कुकड़ई, उडियाणी, गैरोली, नैणी होते हुए वापस नौटी पहुंचती है। ग्रामीणों को दिया वचन निभाने के लिए देवी के ईड़ाबधाणी पहुंचने व वापस आने की करीब 20 किलोमीटर की यात्रा में इस बात का भी अहसास होने लगा है कि यह यात्रा देवी नंदा के प्रति अगाध आस्था का प्रतीक तो है ही, नौटी से सुतोल तक पड़ने वाले सैकड़ों गांवों को धार्मिक व सांस्कृतिक तौर पर आपस में जोड़ने का एक सशक्त माध्यम भी है।