वचन निभा नौटी पहुंची नंदा
नंदा के गीतों से गूंजती वादियों में बेटी से मिलने के उत्साह और बिछड़ने पर उदासी के भावों का अद्भुत संगम नजर आ रहा है। आंसूओं में बह रहा उल्लास यह बताने के लिए काफी है कि अध्यात्म की यात्रा किस तरह इंसान और भगवान के बीच मानवीय रिश्तों के अटूट बंधन की कहानी बन चुकी है। सदिय
नौटी [चमोली], जागरण संवाददाता। नंदा के गीतों से गूंजती वादियों में बेटी से मिलने के उत्साह और बिछड़ने पर उदासी के भावों का अद्भुत संगम नजर आ रहा है। आंसूओं में बह रहा उल्लास यह बताने के लिए काफी है कि अध्यात्म की यात्रा किस तरह इंसान और भगवान के बीच मानवीय रिश्तों के अटूट बंधन की कहानी बन चुकी है। सदियों पहले ईड़ा बधाणी के आदि पुरुष जमन सिंह जदौड़ा गुसाई को दिया वचन निभाने के बाद नंदा वापिस नौटी पहुंची। उन्होंने गुसाई को वचन दिया था कि प्रत्येक बारह साल में ससुराल जाने से पहले वह एक बार ईड़ा अवश्य आएंगी। सबसे आगे चल रहे चौसिंग्या खाडू (चार सींग वाला मेढ़ा) और राज छंतोली के पीछे हजारों लोग नंदा की यात्रा में उनके साथ हैं। शंख ध्वनि, तुरही, भंकोरा की गूंज और ढोल-नगाड़ों की थाप माहौल में उल्लास घोल रही है। कुदरत भी मानो हिमालय पुत्री को विदाई देने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। आसमान में आशंका के बादलों का नामोनिशान तक नहीं है। गुनगुनी धूप में मंद बयार के झोंके नंदा की डोली सहलाते हुए आशीष देते प्रतीत हो रहे हैं।
कर्णप्रयाग से पांच किलोमीटर दूर स्थित ईड़ा बधाणी में सोमवार देर शाम नंदा की डोली के पहुंचते ही समूचा गांव आह्लादित हो उठा। लोग दोपहर से ही रास्ते पर टकटकी लगाए थे। डोली के पहुंचते ही पूजा अर्चना के बाद कैलाश तक की यात्रा में नंदा के एकमात्र सहयात्री चौसिंग्या खाडू और राज छंतोली का आशीर्वाद लिया गया। इसके बाद शुरू हुआ बेटी को भेंटने का सिलसिला। हर कोई उनके दर्शनों के लिए बेताब था। मंगल गीतों की सुर लहरियों के बीच डेढ़ सौ परिवारों वाले ईड़ा बधाणी गांव में मानो रात हुई ही नहीं। संस्कृति विभाग ने सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया, जिसमें नंदा गीतों की प्रस्तुतियों ने मन मोह लिया।
मंगलवार ब्रह्मा मुहूर्त से ही ईड़ा बधाणी स्थिति नंदा मंदिर के पुजारी हर्षपति नौटियाल के नेतृत्व में पूजा अर्चना का दौर शुरू हो गया। इस बीच वहां उपस्थिति जन समुदाय ने एक बार फिर भगवती नंदा का आशीर्वाद लिया। इसके बाद पूर्वाह्न ठीक 11.28 बजे यात्रा नौटी के लिए रवाना हो गई, लेकिन इस बार अलग रास्ते से। माना जाता है कि नंदा विदाई के वक्त मायके के प्रत्येक गांव में अपनों से मिलने जाती हैं। इसीलिए जिस राह से वह सोमवार को ईड़ा पहुंची, मंगलवार को वापसी में वह राह नहीं पकड़ी। दस किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़ने वाले गांव रिठौली, बियारकोट, कुकड़ई और नैनी में हजारों लोगों ने डोली का भव्य स्वागत किया। करीब आठ घंटे की यात्रा के बाद डोली देर शाम नौटी पहुंची। बेटी को अपने बीच पाकर नौटी उल्लासित है। बुधवार को नंदा नौटी से राजकुंवरों के गांव कांसुवा के लिए प्रस्थान करेगी।