विदाई की बेला पर उमड़ा भावनाओं का ज्वार
अद्भुत, अलौकिक और अविस्मरणीय। देवी-देवताओं के साथ मानवीय संवेदनाओं के इस अनूठे रिश्ते का साक्षात्कार जिंदगी भर नहीं भुलाया जाएगा। नंदादेवी की मायके से विदाई का पल आ चुका है और विदाई के उत्सव में डूबे नंदाधाम नौटी में भावनाओं का ज्वार भी चरम पर है। माता-पिता, भाई-बंधुओं व सि
नौटी [चमोली], [सुभाष भट्ट]। अद्भुत, अलौकिक और अविस्मरणीय। देवी-देवताओं के साथ मानवीय संवेदनाओं के इस अनूठे रिश्ते का साक्षात्कार जिंदगी भर नहीं भुलाया जाएगा। नंदादेवी की मायके से विदाई का पल आ चुका है और विदाई के उत्सव में डूबे नंदाधाम नौटी में भावनाओं का ज्वार भी चरम पर है। माता-पिता, भाई-बंधुओं व सखियों से विदा लेकर ध्याणी (बेटी) को कैलाश (नंदा का ससुराल) पठाणे की घड़ी आई है। भाई लाटू देवता बहन की विदाई को लेकर गमगीन है, तो देवी नंदा भी फूट-फूटकर रो रही है। नौटी के नंदा चौंरा में जब नंदादेवी व लाटू के पश्वा अवतरित होते हैं तो चेहरे की भाव-भंगिमाओं में विरह की यह पीड़ा साफ झलकती है। ऐसा अलौकिक अनुभव दुनिया में शायद ही कहीं और मिले, जहां मानव शरीर में देवी के ऐसे भाव व दुख-दर्द का साक्षात दर्शन होता हो।
कांसुवा के कुंवर और 12 थान के ब्राह्मण इस उत्सव में तल्लीनता से अपनी-अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। नंदादेवी राजजात की शुरुआत भावनात्मक माहौल में होगी यह तो मालूम था, मगर संवेदनाओं का सैलाब इस कदर उमड़ेगा इसका अंदाजा नहीं था। नौटी से चौसिंग्या खाडू की अगुवाई और वीर देवता की सुरक्षा में नंदादेवी की जात का यह लश्कर आगे बढ़ता है। रास्ते भर में गांव की महिलाएं रुंधे गले से बेटी नंदा की विदाई के गीत गा रही हैं। चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई के बाद बगरखाल में जात रुकती है। शरीर थकान महसूस कर रहा है, मगर मन में आस्था व उमंग भरपूर है।
बगरखाल में ग्रामीणों की ओर से पानी व चाय-बिस्कुट की व्यवस्था से श्रद्धालुओं की थकान काफूर हो गई।
बगरखाल की धार से तीखी ढलान वाला रास्ता शुरू हुआ। बांज, बुरांश व कैल के घने जंगल के बीचोंबीच गुजरती इस छहफुट्टी पर ढाई किलोमीटर चलकर सिलिंगी आ गया। गांव में लोग पहले से देवी नंदा के स्वागत के लिए खड़े हैं। महिलाएं नंदा के जागर व गीत गा रही हैं। अचानक जागर के इन बोलों ने मेरा ध्यान खींचा, 'स्वामी जी मैं मैतूड़ा जाइलो, अपणा मैतूड़ा की मैं खरी लगीं खुद। न्यूती की बुल्योलो पूजी की भेज्योलो। बाटा देखी-देखी मेरा आंखा होग्यी लाल, त्वेऊंणी बुलौण आलो तेरो भाई लाटू।' देवी नंदा व उनके पति शिव के बीच का यह संवाद, मायके प्रति नंदा के दर्द को प्रदर्शित कर रहा है। पहाड़ में महिलाओं के कठिन जीवन का दर्द भी इन गीतों में महसूस हो रहा है।
सिलिंगी में उफराई देवी (नंदा की बहन) के मंदिर में पहुंचते ही राजछंतोली पकड़े देवी नंदा और वीर समेत अन्य देवी-देवताओं के पश्वा फिर अवतरित होते हैं। माहौल एक बार फिर गमगीन और अलौकिक हो गया। बहन से मिलन का यह भावुक दृश्य कैलाश (ससुराल) के कठिन जीवन को लेकर नंदा की पीड़ा को बता रहा है। उफराई देवी से भेंट-मिलाप के बाद जात ईड़ा-बधाणी की ओर प्रस्थान करती है। चौंडली और हैलूरी गांव से होते हुए देवी नंदा की जात ईड़ा-बधाणी पहुंचती है। ससुराल जाने से पहले देवी नंदा यहां गांव के मुखिया जमन सिंह जदोड़ा को दिया अपना वचन निभाने आई है। एक रात यही विश्राम कर देवी वापस नौटी लौटेगी और फिर दूसरे दिन नौटी से ससुराल के लिए विदा लेगी।