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क्‍यो महादेव को सर्वप्रिय है यह व्रत, अदभूत है इसकी महिमा

जैसा की नाम से ही जाहिर है किसी भी तरह का दोष हो इस व्रत के करने से वह दोष खंडित हो जाता है भगवान शिव को यह व्रत परम प्रिय है इसलिये इस व्रत में शिवजी की उपासना की जाती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2016 02:48 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2016 10:49 AM (IST)

कहते हैं शिव ऐसे देव हैं जो बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। कुछ ऐसे व्रत पूजा है जिससे शिव जी अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं उसी में एक है प्रदोष व्रत । जैसा की नाम से ही जाहिर है किसी भी तरह का दोष हो इस व्रत के करने से वह दोष खंडित हो जाता है भगवान शिव को यह व्रत परम प्रिय है इसलिये इस व्रत में शिवजी की उपासना की जाती है। इस व्रत में भगवान शिव की हर दिन की अलग - अलग पूजा कर अलग - अलग दोष खंडित होते हैं ।

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क्या है प्रदोष

प्रदोष काल में किये जाने वाले नियम, व्रत एवं अनुष्ठान को प्रदोष व्रत या अनुष्ठान कहा गया है। व्रतराज नामक ग्रन्थ में सूर्यास्त से तीन घटी पूर्व के समय को प्रदोष का समय माना गया है। अर्थात् सूर्यास्त से सवा घण्टा पूर्व के समय को प्रदोष काल कहा गया है। तिथियों में त्रयोदशी तिथि को भी प्रदोष तिथि की संज्ञा प्रदान की गयी है। इसका मतलब सायंकालीन त्रयोदशी तिथि को किया जाने वाला व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है। प्रदोष व्रत पूर्व विद्धा तिथि के संयोग से मनाया जाता है। अर्थात् द्वादशी तिथि से संयुक्त त्रयोदशी तिथि को यह व्रत आचरित किया जाता है। पक्ष भेद होने के कारण इसे शुक्ल या कृष्ण प्रदोष व्रत कहा जाता है।

दिनों के संयोग के कारण प्रदोष व्रत के नाम एवं उसके प्रभाव में अन्तर हो जाता है। जैसे रविवार को प्रदोष हो तो इसका नाम रविप्रदोष हो जाता है। इसका फल आरोग्य की प्राप्ति बतलाया गया है। सोम प्रदोष व्रत का फल पुत्र की प्राप्ति है। शुक्रप्रदोष से सौभाग्य यानी पति एवं स्त्री को समृद्धि की प्राप्ति होती है। शनिप्रदोष का महाफल बतलाया गया है। प्रदोष व्रत करने वाले स्त्री या पुरुषों को चाहिये कि व्रत के पूर्व दिन सायंकाल नियम पूर्वक व्रत ग्रहण करें। व्रत के दिन प्रात: काल नित्य कर्मादि संपन्न कर संकल्पपूर्वक दिन भर उपवास करें। प्रदोष काल में उमा महेश्वर जी का पूजन पास के किसी देवालय या घर में करें।

अपनी सार्मथ्य के अनुसार पूजन सामग्री, प्रसाद, फूलमाला, फल, विल्वपत्रदि लाकर संभव हो सके तो पति-पत्नी एक साथ बैठकर शिव जी का पूजन करें। यदि मंत्र इत्यादि न आता हो तो नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए पूजन करें। पूजन के उपरांत शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करें। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है। ऎसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है। जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए। यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है।इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है। भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

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क्या है इस व्रत की महिमा

शास्त्रों के अनुसार एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा।

उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

हर दिन हर तरह की महत्ता

सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला व्र्रत आरोग्य प्रदान करता है। सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबंंधित मनोइच्छा की पूर्ति होती है। जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है। व बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है। गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है। शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है। अत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए। अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

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व्रत विधि

प्रदोष व्रत करने के लिये उपासक को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए। नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें। इस व्रत में आहार या जल नहीं लिया जाता है। पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते है। ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थल को पूजा करने के लिये प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है। पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है। अब इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृ्ति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है। भगवान शंकर के पूजन में भगवान शिव के मंत्र "ऊँ नम: शिवाय" इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिए।

उद्धापन

इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए। इसे उद्धापन के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है। उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है। प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है। हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती और शान्ति पाठ किया जाता है। अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है। तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है।

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आने वाले प्रदोष व्रत

दिनाँक दिन हिन्दु चांद्र मास

14 जून रविवार प्रथम शुद्ध आषाढ़ कृष्ण पक्ष

29 जून सोमवार प्रथम अधिक आषाढ़ शुक्ल पक्ष

13 जुलाई सोमवार द्वितीय अधिक आषाढ़ कृष्ण पक्ष

29 जुलाई बुधवार द्वितीय शुद्ध आषाढ़ शुक्ल पक्ष

11 अगस्त मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत श्रावण कृष्ण पक्ष

27 अगस्त बृहस्पतिवार श्रावण शुक्ल पक्ष

10 सितंबर बृहस्पतिवार भाद्रपद कृष्ण पक्ष

25 सितंबर शुक्रवार भाद्रपद शुक्ल पक्ष

10 अक्तूबर शनिवार आश्विन कृष्ण पक्ष

25 अक्तूबर रविवार आश्विन शुक्ल पक्ष

9 नवंबर सोमवार - सोम प्रदोष व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष

23 नवंबर सोमवार - सोम प्रदोष व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष

8 दिसंबर मंगलवार - भौम प्रदोष व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष

23 दिसंबर बृहस्पतिवार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष

[ प्रीति झा ]


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