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नोट बंदी : श्‍मशान में पड़ा था छोटे भाई का शव, बड़ा भाई नई करंसी के लिए भटकता रहा

नोटबंदी से लोगों को किस हालत से गुजरना पड़ रहा है इसका दर्दनाक उदाहरण लुधियाना में देखने मिला। नए नोट न मिल पाने से एक व्‍यक्ति का शव श्‍मशान में अंतिम संस्‍कार के लिए पड़ा रहा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 23 Nov 2016 01:13 PM (IST)Updated: Thu, 24 Nov 2016 10:27 AM (IST)
नोट बंदी : श्‍मशान में पड़ा था छोटे भाई का शव, बड़ा भाई नई करंसी के लिए भटकता रहा

जेएनएन,लुधियाना। नोटबंदी के कारण लोगों को हो रही परेशानी कम नहीं हो पा रही है। कई जगह बैंकों में लोगों को असंवेनशील व्यवहार का भी शिकार होने पर रहा है। यहां एक व्यक्ति की मौत हो गई और पैसे न हाेने के कारण अंतिम संस्कार के लिए उसका शव कई घंटे तक श्मशान में पड़ा रहा। बाद में लोगों ने चंदा कर शव का अंतिम संस्कार किया। परिजन पैसे निकालने बैंक गए ले कन उन्हें वहां अंदर नहीं जाने दिया गया।

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घटना शहर के ढोलेवाल क्षेत्र की है। मंगलवार को क्षेत्र में राजेंद्र यादव नामक व्यक्ति की मौत हो गई। उसका भाई जनार्दन याद अन्य लोगों के साथ शव श्मशानघाट ले गया। अतिम संस्कार के लिए पैसे निकालने वह ढोलेवाला के एक बैंक की शाखा में गया, लेकिन वहां अधिक भीड़ थी।

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बड़ा भाई नए नोट हाेने से बीमार भाई को अस्पताल से घर ले आया था, हो गई मौत

उसने बैंक मैनेजर से मिलकर अपनी परेशानी बतानी चाही लेकिन वहां तैनात सिक्योरटी गार्ड ने उसे अंदर नहीं जाने दिया। उसने रोते हुए काफी गुहार लगाई लेकिन गार्ड ने उसे अंदर नहीं जाने दिया तो वह वापस आ गया और लोगों से चंदा कर भाई का अंतिम संस्कार किया।

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बता दें कि टेक्सटाइल कॉलोनी निवासी राजेंद्र यादव एक महीने से डेंगू से पीडि़त था। राजेंंद्र के बड़े भाई जनार्दन यादव ने बताया कि उसका इलाज पहले सिविल अस्पताल में करवाया गया। सिविल अस्पताल से उसे पटियाला के राजिंद्रा अस्पताल रेफर कर दिया गया। वहां उसका लगभग 15 दिनों तक इलाज चला, लेकिन उसकी हालत नहीं सुधरी।

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जनार्दन ने बताया कि इसके बाद उन्होंने राजेंद्र को लुधियाना के शेरपुर स्थित एक अस्पताल भर्ती करवाया। जर्नादन ने बताया कि अस्पताल के स्टाफ ने उसे पैसे जमा करवाने को कहा। स्टाफ ने 1000 और 500 के पुराने नोट लेने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उन्हाेंन किसी तरह आठ हजार रुपये का इंतजाम कर अस्पताल में जमा करवाया।

उसने बताया कि जब आगे नए नोट का इंतजाम नहीं हाे सका तो उसने राजेंद्र की अस्पताल से छुट्टी करवा ली और घर ले आया। इसके बाद सोमवार की रात को उसकी मौत हो गई। उसकी हालत यह हो गई थी कि अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे।

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उसने सोचा कि श्मशान के पास ही बैंक से पैसे निकाल लेगा और शव को अन्य लोगों के साथ श्मशान ले गया। इसके बाद वह बैंक पैसे निकालने गया, लेकिन वहां किसी ने उस पर दया नहीं दिखाई। राजेंद्र मूलरूप से बिहार के बांका जिले के थाना भोराइया के गांव दुर्गा बाजार का रहने वाला था।


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