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ग्लोबल वार्मिग सच तो है लेकिन हर जगह नहीं

ग्लोबल वार्मिग को लेकर एक नया अध्ययन सामने आया है। पिछले सौ सालों के दौरान जमीन के गर्म होने के ट्रेंड पर आधारित इस विस्तृत अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया गर्म तो हो रही है लेकिन यह हर जगह नहीं है और न ही यह हर जगह समान दर से हो रही है।

By Edited By: Published: Mon, 05 May 2014 08:46 PM (IST)Updated: Mon, 05 May 2014 08:46 PM (IST)

वाशिंगटन। ग्लोबल वार्मिग को लेकर एक नया अध्ययन सामने आया है। पिछले सौ सालों के दौरान जमीन के गर्म होने के ट्रेंड पर आधारित इस विस्तृत अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया गर्म तो हो रही है लेकिन यह हर जगह नहीं है और न ही यह हर जगह समान दर से हो रही है।

फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने विस्तृत तौर पर इस बात का अध्ययन किया कि कब और किस क्षेत्र में तापमान का कम होना या बढ़ना शुरू हुआ। इसमें यह संकेत मिला कि वैश्रि्वक स्तर पर धरती का तापमान बढ़ रहा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि हालांकि ऐतिहासिक आंकड़ों से यह स्पष्ट हो रहा है तापमान में हो रही यह वृद्धि हर जगह और समान दर से नहीं हो रही है। यूनिवर्सिटी में मौसम विभाग के सहायक प्रोफेसर जोहुआ वु ने कहा कि ग्लोबल वार्मिग की स्थिति वास्तव में वैसी नहीं है जैसी हम सोच रहे हैं। यूनिवर्सिटी की टीम ने यह अध्ययन के लिए वु और उनके सहयोगियों की ओर से विश्लेषण के लिए विकसित एक नए तरीके का प्रयोग किया। उनकी टीम ने सन् 1900 और उसके बाद से पूरी दुनिया [अंटार्कटिका के अतिरिक्त] के तापमान में होने वाले परिवर्तन का विश्लेषण कर यह रिपोर्ट तैयार की है।

अब तक के अध्ययनों में तकनीक की सीमाओं के कारण शोधकर्ता ग्लोबल वार्मिग के समय और स्थान के अनुसार असमानता को लेकर तथ्य नहीं रख पाए थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि वार्मिग की सबसे पहली ध्यान देने योग्य घटना आर्कटिक के आसपास के क्षेत्र और दोनों गोलाद्र्धो के सबट्रॉपिकल क्षेत्रों में देखने को मिली थी। अध्ययन में यह भी पाया गया कि इस दौरान दुनिया के कुछ हिस्सों में तापमान में गिरावट भी आई है।

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