पुरुषों के बढ़ने और महिलाओं के कम होने से चीन हुआ चिंतित
स्त्री और पुरुषों की संख्या के अंतर के लिहाज से चीन दुनिया में सर्वाधिक असमानता वाले देशों में शुमार है।
बीजिंग, प्रेट्र। ऐसा नहीं कि बेटे की चाह वाली रूढि़वादी सोच भारत में ही जड़ें जमाए हुए है बल्कि ऐसी ही सोच पड़ोसी देश चीन में भी अपना असर दिखा रही है। इसी का नतीजा है कि चीन की आबादी में 113.5 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या घटकर 100 रह गई है। विकास के पथ पर दौड़ रहा चीन भविष्य के खतरों के बारे में सोचकर आशंकित हो उठा है। अब वह इस अंतर को कम करने के उपाय ढूंढ़ने में जुट गया है।
स्त्री और पुरुषों की संख्या के अंतर के लिहाज से चीन दुनिया में सर्वाधिक असमानता वाले देशों में शुमार है। यह चौंकाने वाली बात सन 2015 में हुए सर्वे में सामने आई है। चीन की सेंट्रल कैबिनेट ने अब इस अंतर को कम करने के लिए कदम उठाने का फैसला किया है। वर्ष 2020 तक पुरुषों की संख्या 112 पर लाए जाने और 2030 तक इसे कम करके 107 पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। चीन का अनुमान है कि वर्ष 2030 में उसकी आबादी बढ़कर 1.45 अरब हो जाएगी, जो सर्वाधिक होगी। दुनिया में स्त्री और पुरुषों की संख्या का सामान्य अनुपात 103 से 107 के बीच माना जाता है।
जनसंख्या के विशेषज्ञों के अनुसार चीन में स्त्री और पुरुषों के अनुपात में यह असंतुलन पिछले 30 साल में पैदा हुआ है। इसी का नतीजा है कि महिलाओं से पुरुषों की आबादी का अंतर 2.4 करोड़ से बढ़कर 3.4 करोड़ हो गया है। स्वास्थ्य और परिवार नियोजन विभाग के उप मंत्री वांग पीएन के चेतावनी दी है कि इस लैंगिक असमानता को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो भविष्य में यह सामाजिक समस्याएं पैदा कर सकता है। इसी महीने जारी सरकारी दिशानिर्देशों में अधिकारियों को लिंग पहचान वाले तरीकों पर रोक लगाने और लैंगिक कारणों से गर्भपात रोकने के लिए कहा गया है। साथ ही सरकार अपने परिवार नियोजन कार्यक्रम की भी समीक्षा करेगी और उसमें बदलाव पर विचार करेगी।
चीन ने पिछले साल ही अपनी दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति में बदलाव किया था और नागरिकों को दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति दी थी। पहले बच्चे के समय की सुविधाएं दूसरे बच्चे के पैदा होने पर भी देने की घोषणा की थी।