Move to Jagran APP

....तो इस विश्वासघात के कारण भारत के हाथ से फिसल गया कोहिनूर

जानिए, कैसे इस राजा की चालाकी के बाद भी भारत के हाथ से फिसल गया कोहिनूर

By Mohit TanwarEdited By: Published: Tue, 01 Nov 2016 02:05 PM (IST)Updated: Tue, 01 Nov 2016 02:55 PM (IST)

कोहिनूर दुनिया का सबसे मशहूर हीरा है। मूल रूप में ये 793 कैरेट का था, पर अब यह 105.6 कैरेट का रह गया है जिसका वजन 21.6 ग्राम है एक समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था। कोहिनूर को लेकर हमेशा चर्चा होती रहती है और इसके बारे में कहा जाता रहा है कि ये हीरा भारत में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह का था, तो उनके पास कहां से आया? दरअसल यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्त में ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कहानी के बारे में की आखिर ये महाराजा रणजीत सिंह के पास आया कहां से।

दरअसल ये बात है सन् 1812 की जब पंजाब पर महाराजा रणजीत सिंह का शासन था। महाराजा रणजीत सिंह शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं। उस समय महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर के सूबेदार अतामोहम्मद के शिकंजे से कश्मीर को मुक्त कराने का अभियान शुरू किया था। इस अभियान से भयभीत होकर अतामोहम्मद कश्मीर छोड़कर भाग गया। कश्मीर अभियान के पीछे सिर्फ यहीं एकमात्र कारण नहीं था दरअसल इसके पीछे असली वजह तो था बेशकीमती 'कोहिनूर' हीरा।

अतामोहम्मद ने महमूद शाह द्वारा पराजित अफगानिस्तान के शासक शाहशुजा (शाहशुजा अहमद शाह अब्दाली का ही वंशज था जिसे की यह हीरा शाहरूख मिर्जा ने दिया था, तब से यह अब्दाली के वंशजो के पास ही था) को शेरगढ़ के किले में कैद कर रखा था। उसे कैद खाने से आजाद कराने के लिए उसकी बेगम वफा बेगम ने लाहौर आकर महाराजा रणजीत सिंह से प्रार्थना की और कहा कि 'मेहरबानी कर आप मेरे पति को अतामोहम्मद की कैद से रिहा करवा दें, इस अहसान के बदले बेशकीमती कोहिनूर हीरा आपको भेंट कर दूंगी।'

शाहशुजा के कैद हो जाने के बाद वफा बेगम ही उन दिनों अफगानिस्तान की शासिका थी। महाराजा रणजीति सिंह स्वयं चाहते थे कि वे कश्मीर को अतामोहम्मद से मुक्त करवाएं। सही वक्त आने पर महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को आजाद करा लिया। उनके दीवान मोहकमचंद ने शेरगढ़ के किले को घेर कर वफा बेगम के पति शाहशुजा को रिहा कर वफा बेगम के पास लाहौर पहुंचा दिया और अपना वादा पूरा किया।

राजकुमार खड्गसिंह ने उन्हें मुबारक हवेली में ठहराया। पर वफा बेगम अपने वादे के अनुसार कोहिनूर हीरा महाराजा रणजीत सिंह को भेंट करने में विलम्ब करती रही। यहां तक कि कई महीने बीत गए। जब महाराजा ने शाहशुजा से कोहिनूर हीरे के बारे में पूछा तो वह और उसकी बेगम दोनों ही बहाने बनाने लगे। जब ज्यादा जोर दिया गया तो उन्होंने एक नकली हीरा महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया, जो जौहरियों के जांच की कसौटी पर नकली साबित हुआ।

रणजीत सिंह क्रोध से भर उठे और मुबारक हवेली घेर ली गई। दो दिन तक वहां खाना नहीं दिया गया। वर्ष 1813 की पहली जून थी जब महाराजा रणजीत सिंह शाहशुजा के पास आए और फिर कोहिनूर के विषय में पूछा। धूर्त शाहशुजा ने कोहिनूर अपनी पगड़ी में छिपा रखा था। किसी तरह महाराजा को इसका पता चल गया। उन्होंने शाहशुजा को काबुल की राजगद्दी दिलाने के लिए "गुरुग्रंथ साहब" पर हाथ रखकर प्रतिज्ञा की। फिर उसे "पगड़ी-बदल भाई"(एक रश्म) बनाने के लिए उससे पगड़ी बदल कर कोहिनूर प्राप्त कर लिया।

पढ़ें- इनकी घनी लंबी जुल्फों पर फिदा हो गया सोशल मीडिया


महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने सन् 1845 में सिखों पर आक्रमण कर दिया। फिरोजपुर क्षेत्र में सिख सेना वीरतापूर्वक अंग्रेजों का मुकाबला कर रही थी। किन्तु सिख सेना के ही सेनापति लालसिंह ने विश्वासघात किया और मोर्चा छोड़कर लाहौर पलायन कर गया। इस कारण सिख सेना हार गई। अंग्रेजों ने सिखों से कोहिनूर हीरा ले लिया।

पढ़ें- दूसरी दुनिया में नहीं इस शख्स के फ्रिजर में रखा है एलियन!


कुछ लोगों का कथन है कि दिलीप सिंह (रणजीत सिंह के पुत्र) से ही अंग्रेजों ने लंदन में कोहिनूर हड़पा था। कोहिनूर को 1 माह 8 दिन तक जौहरियों ने तराशा और फिर उसे रानी विक्टोरिया ने अपने ताज में जड़वा लिया।

पढ़ें- भाई को छोटी बहन से हुआ प्यार, पिता ने कर दी सगाई

कोहिनूर के बारे में यह मान्यता है कि वह कृष्णा नदी के पास, कुल्लूर की खदानों में मिला था। यह खदानें आज के आंध्र प्रदेश में स्थित हैं।


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.