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फांसी पर लटका याकूब, पढ़ें साजिश से सजा तक की पूरी कहानी

मुंबई सीरियल ब्‍लास्‍ट में आखिरकार एक प्रमुख साजिशकर्ता याकूब मेमन को आज फांसी पर लटका दिया गया। नागपुर के सेंट्रल जेल में सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर उसे फांसी दी गई। आज ही उसका जन्‍मदिन भी था।12 मार्च 1993 को एक के बाद एक 12 धमाके हुए और 257

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2015 07:30 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2015 03:38 PM (IST)
फांसी पर लटका याकूब, पढ़ें साजिश से सजा तक की पूरी कहानी

नई दिल्ली। मुंबई सीरियल ब्लास्ट में आखिरकार एक प्रमुख साजिशकर्ता याकूब मेमन को आज फांसी पर लटका दिया गया। नागपुर के सेंट्रल जेल में सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर उसे फांसी दी गई। आज ही उसका जन्मदिन भी था। 12 मार्च 1993 को एक के बाद एक 12 धमाके हुए और 257 लोग मौत की नींद सो गए। इस धमाके ने पूरे मुंबई की सूरत बदलकर रख दी थी। आइए जानते हैं ब्लास्ट की पूरी कहानी और उसमें याकूब मेमन की भूमिका के बारे में।

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1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को दी गई फांसी

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद 1993 मुंबई ब्लास्ट की पृष्ठभूमि तैयार हुई। ढांचा विध्वंस के बाद पूरे देश देश में दंगे का माहौल बन गया था। मायानगरी मुंबई में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे। इस दौरान याकूब मेमन के भाई टाइगर मेमन के एक्सपोर्ट हाऊस के दफ्तर को दंगाइयों ने जला दिया। इस घटना ने टाइगर के मन में बदले की भावना जगा दी। उसने उस समय दुबई में बैठे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से संपर्क साधा। दाऊद की हामी के बाद मुंबई में टाइगर ने गुप्त बैठक की। इसमें दाऊद का भाई अनीस इब्राहिम भी शामिल हुआ।

कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आए...

बैठक में पूरे मुंबई में बम प्लांट करने को लेकर योजना तैयार की गई। इसके लिए बड़े पैमाने पर विस्फोटक और हथियार की जरूरत थी। इसे मुहैया कराने के लिए दाऊद ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ को तैयार किया। दाऊद ने कस्टम के कुछ अधिकारियों की मदद से पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते बड़े पैमाने पर आरडीएक्स, हैंड ग्रेनेड, एके 47 व 56 राइफलें मुंबई पहुंचाए। कहा जाता है कि आरडीएक्स की इतनी मात्रा थी कि यह पूरे मुंबई को तबाह कर सकता था।

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इधर, याकूब मेमन ने 19 लड़कों को जगह-जगह विस्फोटक रखने के लिए तैयार किया। इन्हें ट्रेनिंग देने के लिए दुबई के रास्ते पाकिस्तान भेजने का इंतजाम भी याकूब ने ही किया। इनकी फ्लाइट का टिकट याकूब ने अपने एक दोस्त की ट्रैवेल एजेंसी से बुक करवाया। इस पूरी योजना में लाखों रुपये खर्च होने थे। इसलिए मेमन परिवार के एचएसबीसी बैंक के तीन खातों में दुबई से करीब 65 हजार डॉलर भेजे गए। इन तीनों खातों को याकूब ही ऑपरेट करता था। इस दौरान याकूब एक दोस्त के साथ मिलकर सीए फर्म चलाता था।

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जिन लड़कों को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजा गया था, वो लौट कर मुंबई अा चुके थे। लेकिन इसमें से एक लड़के ने विद्रोह कर दिया और 9 मार्च को पुलिस के सामने जाकर सरेंडर कर दिया। उसने पुलिस को सारी योजना के बारे में बताया। उसने बंबई स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग, झवेरी बाजार, सहार एयरपोर्ट पर बम प्लांट करने की योजना भी बताई, लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

इस बात की जानकारी टाइगर को लग गई। लेकिन उसने अपनी योजना नहीं बदली और 12 मार्च को धमाके का निर्णय लिया। इसके लिए याकूब ने 12 वाहनों का इंतजाम किया जिसमें चार मारुति 800, एक मारुति वैन, एक कमांडर जीप, दो मोटरसाइकिल, चार स्कूटर थे।

घटना से एक दिन पहले यानि 11 मार्च को याकूब मेमन ने अपने परिवार के नौ सदस्यों के साथ दुबई भाग गया। जबकि टाइटर मेमन मुंबई में ही रुका रहा। धमाके के दिन ब्लास्ट से ठीक पहले उसने भी दुबई के लिए उड़ान भर ली।

12 मार्च 1993 को दोपहर 1:30 बजे बंबई स्टॉक एक्सचेंज के बेंसमेंट में पहला धमाका हुआ। इसमें लगभग 50 लोग मारे गए। दूसरा धमाका 2:15 बजे नरसी नाथ स्ट्रीट में हुआ जहां छह लोगों की मौत हुई। तीसरा धमाका 2:30 बजे शिवसेना भवन के बाहर हुआ जिसमें चार लोग मारे गए। चौथा धमाका 2:33 बजे एयर इंडिया बिल्डिंग में हुआ जहां 20 लोग मारे गए और 84 घायल हुए थे। पांचवा धमाका 2:45 बजे सेंचुरी बाजार के भी़ड भाड़ वाले इलाके में हुआ जहां सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। यहां 113 लोग मारे गए और 227 लोग घायल हुए थे।

छठा धमाका ठीक 2:45 बजे माहिम में हुआ। सातवां धमाका 3:05 बजे झावेरी बाजार में, आठवां धमाका 3:10 बजे सी रॉक होटल में, नौवां धमाका 3:13 बजे प्लाजा सिनेमा में, दसवां धमाका 3:20 बजे जुहू सेंटूर होटल में, ग्यारवां धमाका 3:30 बजे सहार हवाई अड्डा पर (हथगोले फेंके गए), बारहवां धमाका 3:40 बजे एयरपोर्ट सेंटूर होटल में हुआ। इसके अलावा माहिम सेतु में मछुआरा कालोनी में भी ग्रेनेड फेंके गए थे। हथियारों की खेप में से एक एके-56 राइफल बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त को भी मिली। इसी मामले में दत्त को पांच साल की सजा मिली है और वह जेल में सजा काट रहा है।

बड़े पैमाने पर धमाके के बाद मुंबई पुलिस की नींद उड़ गई। पुलिस को धमाके का पहला सूत्र घटनास्थल से बरामद मारुति कार से मिली। ये कार याकूब के बड़े भाई की बीवी के नाम पर रजिस्टर्ड थी। पुलिस मेमन बंधुओं के घर पहुुंची तो पता चला कि वे लोग एक दिन पहले ही दुबई जा चुके हैं। पुलिस ने घर का ताला तोड़ा और जांच-पड़ताल में एक चाबी मिली। इस चाबी का मिलान किसी कारणवश विस्फोट न हुए एक स्कूटर से हुआ। तब पुलिस यह पूरी तरह से जान चुकी थी कि इस धमाके का तार मेमन परिवार से जुड़ा हुआ है।

पुलिस ने टाइगर के फर्म में काम करने वाले एक अकाउंटेंट का उठाया। उसने परत दर परत कहानी खोलनी शुरू की और इसके बाद बम प्लांट करने वाले लड़कों की गिरफ्तारियां शुरू हुई। पूछताछ में पता चला कि इस हमले का मास्टरमाइंड दाऊद और टाइगर मेमन हैं। पूरे मामले में 124 लोगों को आरोपी बनाया गया। जिसमें से कुछ गैंगवार में मारे गए, कुछ की स्वाभाविक माैत हो गई और कुछ कानून की गिरफ्त में आए। इस मामले में अब तक 22 लोग फरार हैं।

इस दौरान पूरा मेमन परिवार पाकिस्तान चला गया। जुलाई 1994 में अपने एक साथी के साथ याकूब नेपाल अाया था। उसने अपने चचेरे भाई व वकील को मिलने के लिए काठमांडू बुलाया। उसने उससे सरेंडर के बारे में बात की थी। लेकिन भाई ने अभी सरेंडर न करने की सलाह दी।

वह कराची लौटने वाला था, लेकिन सुरक्षा जांच के दौरान बैग में रखी एक चाबी से नेपाल पुलिस को कुछ शक हुआ और उसने बैग खोलने को कहा। बैग में 10 भारतीय पासपोर्ट देखकर पुलिसवाले हैरान हो गए। फिर याकूब को पूछताछ के लिए हवाईअड्डा के मुख्य सुरक्षा अधिकारी के पास ले जाया गया। अधिकारी ने एक दिन पहले ही एक भारतीय पत्रिका में मुंबई ब्लास्ट की कहानी पढ़ी थी और याकूब की तस्वीर भी देखी थी।

अधिकारी ने तुरंत भारतीय दूतावास काे फोन मिलााया। वहां से एक अधिकारी भागता हुआ हवाईअड्डा पहुंचा। उसने उसकी पहचान की और फिर शुरू हुई याकूब को भारत लाने की कवायद। चूंकि भारत का नेपाल से प्रत्यर्पण संधि नहीं था इसलिए याकूब को सीबीआइ और आइबी की एक टीम सड़क मार्ग से यूपी के एक शहर में लेकर आई और यहां से रेल मार्ग से उसे दिल्ली ले जाया गया। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने याकूब की गिरफ्तारी पुरानी दिल्ली से दिखाई। पूछताछ में याकूब ने अपना गुनाह कबूल कर लिया।

घटना के 13 साल बाद यानि 2007 में याकूब को टाडा की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और आखिरकार तमाम दांव-पेंच के बाद याकूब को उसके जन्मदिन के दिन 30 जुलाई 2015 को फांसी पर लटका दिया गया।

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