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सदा लटका रहता है इस बच्‍चे का सिर, डॉक्टर भी नहीं समझ पाए मर्ज

180 डिग्री के कोण पर लटके हुए सिर की तकलीफ झेल रहे एक लड़के के निराश माता-पिता का कहना है कि इस पीड़ा को सहने से तो बेहतर है कि बेटा मर जाए। मध्‍यप्रदेश के गांव में रहने वाला 12 साल का महेंद्र अहिरवार एक ऐसी असामान्‍य परिस्थिति का शिकार

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sat, 18 Apr 2015 08:57 PM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2015 10:00 PM (IST)
सदा लटका रहता है इस बच्‍चे का सिर, डॉक्टर भी नहीं समझ पाए मर्ज

मध्यप्रदेश। 180 डिग्री के कोण पर लटके हुए सिर की तकलीफ झेल रहे एक लड़के के निराश माता-पिता का कहना है कि इस पीड़ा को सहने से तो बेहतर है कि बेटा मर जाए। मध्यप्रदेश के गांव में रहने वाला 12 साल का महेंद्र अहिरवार एक ऐसी असामान्य परिस्थिति का शिकार है जिसमें उसकी गर्दन मुड़ी हुई है और उसका सिर धड़ के ऊपर लटका रहता है।

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उसकी रीढ़ की हड्डी इतनी कमजोर है कि वह ना तो खड़ा हो सकता है, ना ही चल सकता है और उसे बैठने की भी मनाही है। महेंद्र केवल घिसट सकता है लेकिन उसे भोजन के लिए और शौचालय जाने के लिए मदद की जरूरत पड़ती है। उसके पिता मुकेश अहिरवार और मां सुमित्रा दोनों महेंद्र के मामले में यथासंभव परिश्रम करते हैं। इनका कहना कि अब तक वे भारत में 50 डॉक्टरों को दिखा चुके हैं लेकिन उनमें से कोई भी महेंद्र के मर्ज का पता नहीं लगा सका।

सुमित्रा कहती है, ‘मैं उसे पीड़ा भोगते और जीवन बर्बाद होते और नहीं देख सकती। वह अपने स्तर पर कुछ भी नहीं कर सकता। केवल कमरे में एक तरफ कोने में बैठा रहता है। यह कोई जीवन नहीं है। मुझे उसे किसी छोटे बच्चे की तरह हर जगह साथ ले जाना होता है, जबकि वह 12 साल का हो गया है। वह और बड़ा होगा तो उसे कैसे हर जगह ले जाऊंगी? अगर डॉक्टर मेरे बच्चे का इलाज नहीं कर सकते तो इससे अच्छा है कि भगवान उसे उठा ले।'

हैरत की बात है कि आसपास के लोग महेंद्र की इस हालत के लिए उसके पिता मुकेश के अतीत को दोषी ठहराते हैं। वे कहते हैं कि मुकेश ने जो पाप किए उसका फल महेंद्र भुगत रहा है। सुमित्रा, जिसे पहले से क्रमश: 16 व 10 साल के बेटे व 14 साल की बेटी है, के गर्भ में जब महेंद्र था तब वह किसी डॉक्टर के पास नहीं गई। मुकेश का कहना है हमारे बच्चे सामान्य रूप से बिना किसी समस्या के जन्मे थे इसलिए हमें कभी किसी डॉक्टर से परामर्श लेने की जरूरत नहीं पड़ी।

महेंद्र का जन्म भी घर पर उसके भाई-बहनों की तरह ही हुआ। जब महेंद्र छह महीने का था तब अभिभावकों ने गौर किया कि उसका सिर लटक रहा है। पहले पहल तो लगा कि यह कमजोरी के चलते हुआ होगा और समय के साथ ठीक हो जाएगा लेकिन जब उसका तीसरा जन्मदिन भी गुजर गया तब भी वह अपना सिर ऊपर उठाने तक में असमर्थ था।

मुकेश निर्माण श्रमिक के रूप में काम करके प्रतिदिन दो सौ रुपये कमाता है। उसने बेटे के इलाज के लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से पैसा उधार लिया है। दो साल पहले उसने महेंद्र को किसी भी डॉक्टर को दिखाना बंद करना तय किया क्योंकि उसके मुताबिक वह उसकी हैसियत के हिसाब से सभी अस्पतालों में जा चुका था। यहां तक कि नई दिल्ली स्थित मेडिकल साइंस इंस्टीट्यूट जैसे बड़े अस्पताल में दो सप्ताह बिताने के बाद भी डॉक्टर नहीं बता पाए कि महेंद्र को कौन सी बीमारी है और उसका इलाज कैसे होगा?

टूटा दिल लेकर हम घर लौटे और इसी हाल में यथासंभव सुविधाएं देते हुए उसकी परवरिश करना तय किया। मुकेश बताता है कि लोग उसके बारे में भला-बुरा बोलते हैं। उस पर हंसते हैं। इससे तकलीफ होती है। लोगों का रवैया और भेदभाव असहनीय है। वे कहते हैं कि जरूर मैंने कुछ पाप किए होंगे इसलिए मेरा बेटा ये तकलीफ भुगत रहा है।

महेंद्र स्कूल नहीं जाता इसलिए भाई-बहन ही उसके दोस्त हैं। दिल्ली के आर्मेंटिस अस्पताल के कान, नाक व गला रोग विशेषज्ञ डॉ. शशिधर टाटावर्धी का मानना है कि ‘महेंद्र को शायद कोई मांस-पेशी का विकार है। वे कहते हैं यह दुर्लभतम में से दुर्लभ मामला है। उसकी यह हालत रीढ़ की त्रुटि के कारण हो सकती है लेकिन मूल बात का पता केवल एक सघन जांच-पड़ताल के बाद ही लगाया जा सकता है।'

मुकेश को अभी भी किसी चमत्कार की उम्मीद है। वह कहता है कि ‘जब डॉक्टर कई पेचीदा मामलों को सुलझा सकते हैं। मसलन, जन्मजात दो सिर वालों बच्चों का आपरेशन करके जीवन बचा सकते हैं तो मेरे बेटे का इलाज क्यों नहीं हो सकता? मुझे महेंद्र को लेकर अभी भी उम्मीद है। मैं उसे स्कूल जाते और अन्य बच्चों की तरह खेलते देखना चाहता हूं। मैं उसे एक सामान्य जीवन जीते देखना चाहता हूं और उम्मीद है एक दिन मेरी इच्छा जरूर पूरी होगी।'

[साभार: नई दुनिया]

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