नोटबंदी के 50 दिन पूरे लेकिन जेहन में सवाल क्या गलत था काले धन का अनुमान
नोटबंदी के पचास दिन पूरे हो चुके हैं। सरकार की उम्मीद से कहीं अधिक राशि(90 फीसद) राशि सरकारी खजाने में वापस आ चुकी है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। नोट बंदी की घोषणा होने के तुरंत बाद बुलाई गई प्रेस कांफ्रेस में आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने बताया था कि देश में जितनी मुद्रा प्रचलन में है उनका 86 फीसद (लगभग 14.50 लाख करोड़ रुपया) 500 व 1000 रुपये के नोट के हैं। दो दिन पहले सरकार ने संसद में बताया है कि 29 नवंबर, 2016 तक 8.45 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट वापस आ गये हैं।
सरकारी आकलन पर उठे सवाल
बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक शुक्रवार तक यह आंकड़ा 11 लाख करोड़ रुपये का हो चुका है। सरकारी आकलन को सही मानें तो अब नोटों की वापसी खत्म हो जानी चाहिए। पर सच्चाई यह है कि नोट वापसी अभी एक महीना और चलेगी। संभावना है कि प्रचलन में जितने भी बड़े पुराने नोट हैं वे सारे वापस आ जाये।
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इसका सीधा सा मतलब यह होगा कि या तो काले धन का आकलन ही गलत था या फिर नोट बंदी के बाद काला धन रखने वालों ने अलग अलग माध्यम से इसे सफेद बना दिया। वजह जो हो, ऐसा हुआ तो राजनीतिक और आर्थिक दोनों मोर्चो पर सरकार को कुछ जवाब देने पड़ सकते हैं। विपक्षी दलों का हमला जहां तेज होगा वहीं वित्तीय स्तर पर सरकार कुछ फैसलों से चूक सकती है।
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नोटबंदी पर जानकारों की राय
नोट बंदी के सरकार के फैसले के प्रबल समर्थक व वित्त मंत्रालय के पूर्व सलाहकार व वरिष्ठ अर्थशास्त्री राजीव कुमार कहते हैं - 'अगर प्रचलन से पूरी राशि बैंकों में आ जाती है तो यह किसी के लिए भी बुरी तरह से चौंकाने वाली बात होगी। इसका यह भी मतलब होगा कि काला धन रखने वाले सरकार से भी ज्यादा माहिर हैं और उन्होंने इस दौरान तमाम तरीकों से अपने पैसे को सिस्टम में भेज दिया।
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नोट प्रिंटिंग के डाटा में हो सकती है गड़बड़ी
एक वजह यह भी हो सकता है कि रिजर्व बैंक के स्तर पर नोट मुद्रण का डाटा रखने में भी भारी गड़बड़ी हुई है। ऐसे में सरकार को बिना किसी देरी के राजनीतिक व नौकरशाही के स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कदम उठाना होगा। लेकिन नोट बंदी ने यह संदेश तो दे ही दिया है कि भारत में काला धन रखना अब खतरे से खाली नहीं है।'
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खजाने में वापस लौटी राशि से आश्चर्य नहीं
भारत में काले धन पर काफी लंबे समय से काम करने वाले जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि उन्हें 11 लाख करोड़ रुपये की राशि के वापस सिस्टम में लौटने से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। काले धन को लेकर सरकार का आकलन हमेशा से गलत रहा है। उन्होंने कहा- 'मेरा अध्ययन कहता है कि भारत में जितना काला धन संचित होता है उसका बमुश्किल 1-2 फीसद ही नकदी में संचित रखा जाता है। जिसके पास काले धन के तौर पर नकदी थी उन्होंने जन धन खाते, चालू खाते, सोना व मकान खरीदने में लगा दिया है। इसके सबूत भी मिल रहे हैं।
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क्या है काले धन का अर्थशास्त्र
नोटबंदी का फैसला काला धन जहां से उत्पन्न हो रहा है वहां चोट नहीं करता है। यही वजह है कि जिसने नकदी संचित बतौर काला धन रखा भी है उसे बैंक में जमा करा रहे हैं लेकिन इससे काले धन के अर्थशास्त्र पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अधिकांश काला धन पहले ही रियल एस्टेट, सोना या अन्य स्त्रोतों में निवेश किया जा चुका है।'
नोट बंदी के कुछ दिन बाद वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि 14.5 लाख करोड़ में से तीन लाख करोड़ रुपये की राशि वापस नहीं आएगी। इस राशि को दोबारा मुद्रित कर सरकार समाजिक व ढांचागत विकास में खर्च करने पर विचार कर रही थी।
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