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आश्वासन के पहियों पर राजनाथ का रथ

नई दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। शतरंज की बिसात बिछाने और तिरछी चालें चलने में माहिर राजनाथ सिंह को जितना भरोसा अटल के नाम का है, उनके लिए उतनी ही मुश्किल पार्टी में असंतोष को थामने की है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सहायक शिव कुमार को साधकर राजनाथ ने अपना पहला दांव चल दिया है। वाजपेयी के समय लखनऊ में शिव कुमा

By Edited By: Published: Fri, 28 Mar 2014 08:03 PM (IST)Updated: Fri, 28 Mar 2014 08:05 PM (IST)

नई दिल्ली, [प्रशांत मिश्र]। शतरंज की बिसात बिछाने और तिरछी चालें चलने में माहिर राजनाथ सिंह को जितना भरोसा अटल के नाम का है, उनके लिए उतनी ही मुश्किल पार्टी में असंतोष को थामने की है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सहायक शिव कुमार को साधकर राजनाथ ने अपना पहला दांव चल दिया है।

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पढ़ें: अटलजी व राजनाथ में नहीं कोई अंतर: शिव

वाजपेयी के समय लखनऊ में शिव कुमार का सिक्का चलता था। तमाम भाजपा नेता उनसे अपनी पैरवी कराते थे। उन्हीं शिव कुमार का वर्षो बाद अचानक लखनऊ आकर यह कहना कि उन्हें राजनाथ में अटल की छवि दिखती है, महत्वपूर्ण बयान है। क्या देख रहे हैं शिव कुमार? एक कुशल राजनयिक, धाकड़ सांसद, लोकप्रिय वक्ता, सभी दलों को स्वीकार्य नेता-आखिर इनमें से अटल की कौन सी छवि उन्हें राजनाथ में दिखी या उन्होंने सभी छवियां देख लीं? यह तय शिव कुमार को करना है, लेकिन यह सफलता राजनाथ की है कि वह शिव कुमार से यह कहला ले गए। पार्टी से नाराज मौजूदा सांसद लालजी टंडन दो दिनों से लखनऊ के बाजारों में राजनाथ के साथ जिस तरह गलबहियां डालकर घूम रहे हैं, उनके लिए अपील कर रहे हैं, वह भी राजनाथ की कामयाबी ही है। वैसे भी राजनाथ अपनी सीट के चारों तरफ बेहद सतर्कता के साथ पेशबंदी करके ही खम ठोंकते हैं।

राजनाथ की राजनीति का मर्म समझने वाले जानते हैं कि वह वादे करने में निपुण हैं। वर्तमान के लिए भविष्य के आश्वासन देने में उनका सानी नहीं। किससे क्या कहा और किसे क्या मिला, यह तो केवल दो लोग जानेंगे पर अभी तो स्पष्ट है कि वोटर से पहले पार्टी को संतुष्ट करने में राजनाथ सफल रहे हैं। अटल की विरासत को इस बार भी संभालने के लिए लालजी तत्पर थे। कलराज मिश्र की चाहत भी लखनऊ सीट के लिए थी। लखनऊ के महापौर डॉ दिनेश शर्मा भी टिकट के लिए पैंतरेबाजी कर रहे थे। उत्तर प्रदेश का समाजशास्त्र हाल के वर्षो में कुछ ऐसा हो गया है जिसमें बनारस में मोदी और लखनऊ में राजनाथ के लिए कड़ी चुनौती नहीं बचती। लखनऊ काफी समय से भाजपा का क्षेत्र हो गया है। धर्मनगरी काशी भी अपने सांस्कृतिक स्वरूप के कारण भाजपा के मिजाज के अनुरूप बैठती है। कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी के रूप में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी उतारा है लेकिन समाजवादी पार्टी राजनीति का ककहरा सीख रहे अभिषेक मिश्र को राजनाथ के सामने लाकर दोस्ताना लड़ाई का न्योता दे चुकी है। राजनीति में राजनाथ का जो कद है, उसके बरक्स बसपा प्रत्याशी नकुल दुबे अभी कनिष्ठ हैं। कह सकते हैं कि चुनाव बाद के किसी भी संभावित समीकरण के नजरिये से सपा-बसपा और राजनाथ अपने परस्पर रिश्तों पर जरब नहीं आने देना चाह रहे।


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