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उत्तराखंड त्रासदी के एक वर्ष: आपदा के जख्म अब भी हैं हरे

उत्तराखंड में दैवीय आपदा से हुई तबाही को एक साल पूरा हो चुका है, मगर इस त्रासदी के जख्म अब भी हरे नजर आ रहे हैं। कुदरत के कहर से तबाह हुए गांवों में न तो जिंदगी पटरी पर लौट पाई है और न क्षतिग्रस्त सड़कें, पुल, स्कूल व अस्पताल ही पूरी तरह दुरूस्त हो सके। इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों व पीड़ित पि

By Edited By: Published: Sun, 15 Jun 2014 08:45 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jun 2014 07:52 AM (IST)
उत्तराखंड त्रासदी के एक वर्ष: आपदा के जख्म अब भी हैं हरे

देहरादून, [सुभाष भट्ट]। उत्तराखंड में दैवीय आपदा से हुई तबाही को एक साल पूरा हो चुका है, मगर इस त्रासदी के जख्म अब भी हरे नजर आ रहे हैं। कुदरत के कहर से तबाह हुए गांवों में न तो जिंदगी पटरी पर लौट पाई है और न क्षतिग्रस्त सड़कें, पुल, स्कूल व अस्पताल ही पूरी तरह दुरूस्त हो सके। इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों व पीड़ित परिवारों फौरी राहत भले ही मिल गई हो, मगर आपदा में बेघर हुए हजारों परिवारों को एक साल बाद भी नई छत नसीब नहीं हो पाई। चारधाम यात्रा शुरू करने के लिए लगातार हाथ-पैर मारती रही सूबे की सरकार ने अब तक उन 337 गांवों की सुध लेना भी मुनासिब नहीं समझा, जो खतरे के मुहाने पर खड़े हैं।

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जून, 2013 की आपदा में बेघर हुए राज्य के करीब ढाई हजार परिवारों को सूबे की सरकार एक साल बाद भी नई छत मुहैया नहीं करा पाई। इस तात्कालिक व बेहद महत्वपूर्ण मसले को लेकर नीति-निर्धारण में हुई देरी सबसे बड़ी अड़चन साबित हुई। पूर्व में उनके लिए प्री-फैब्रिकेटेड मकान बनाने का निर्णय हुआ, लेकिन इन आवास की गुणवत्ता पर सवाल उठने के बाद उन्हें आवास बनाने के लिए आर्थिक मदद देने का फैसला हुआ। राहत की बात सिर्फ यह है कि नए आवास तैयार होने तक सरकार इन परिवारों को किराए के रूप में प्रतिमाह तीन हजार रुपये की सहायता दे रही है।

ऐसे हर परिवार को नए आवास के लिए चार किस्तों में पांच लाख रुपये दिया जाना है। करीब 2265 परिवारों को डेढ़ लाख रुपये की पहली किस्त दी जा चुकी है, जबकि 77 परिवारों के लिए भूमि चयन की प्रक्रिया जारी है। साथ ही, 200 परिवारों को दो लाख रुपये की दूसरी किस्त दे दी गई है। जनवरी 2014 में शुरू हुआ यह काम दो साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है। आपदा के खतरे से जूझ रहे गांवों के सुरक्षित स्थान पर विस्थापन की राह भी सरकार नहीं तलाश पाई। राज्य में 304 संवेदनशील गांव विस्थापन के लिए चिन्हित किए जा चुके हैं, जिनमें से 175 गांवों का जीएसआई, खनिकर्म व आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा तकनीकी सर्वे भी हो चुका है।

औसतन 106 मकानों व 545 जनसंख्या वाले ऐसे प्रत्येक गांव के विस्थापन पर औसतन 35.04 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। राज्य सरकार ने इन गांवों के विस्थापन के लिए केंद्र से 10653 करोड़ की वित्तीय मदद मांगी, मगर केंद्र सरकार ने इस मद में पैसा देने से हाथ खड़े कर दिए। नतीजा यह कि राज्य सरकार आपदा के खतरे से जूझ रहे इन गांवों के पुनर्वास व विस्थापन की नीति तो तैयार कर चुकी है, मगर वित्तीय संसाधनों के अभाव में यह मुहिम अब पूरी तरह खटाई में पड़ती दिख रही है।

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