सुकमा हमलाः नक्सलियों से एक घंटे लड़ने के लिए भी नहीं थी जवानों के पास गोलियां
जवानों का कहना है 'हम सीआरपीएफ वाले छत्तीसगढ़ के नहीं हैं, स्थानीय लोगों के दिमाग को पढ़ नहीं पाते कि वे नक्सली हैं या फिर ग्रामीण।
रायपुर, जेएनएन। सुकमा नक्सली हमले में घायल जवान अपने शहीद साथियों को याद कर दुखी हैं। रह-रह कर यह बात कचोट रही है कि वे उनकी जान नहीं बचा सके। रायपुर के निजी अस्पतालों में भर्ती जवानों का कहना है 'हम सीआरपीएफ वाले छत्तीसगढ़ के नहीं हैं, स्थानीय लोगों के दिमाग को पढ़ नहीं पाते कि वे नक्सली हैं या फिर ग्रामीण। ऐसी स्थिति में प्रत्येक बटालियन के साथ स्थानीय पुलिस के जवान होने ही चाहिए, क्योंकि वे चप्प-चप्पे से वाकिफ हैं।'
'नईदुनिया' निजी अस्पताल में भर्ती जवानों से मिलने पहुंचा। यहां पश्चिम बंगाल के सौरभ मलिक, उत्तर प्रदेश के शेर मोहम्मद और लच्छु सिंह भर्ती हैं। सौरभ गुस्से में हैं, उनका कहना है कि अगर समय पर मदद मिलती तो इतने साथी शहीद न होते, 1 घंटे तक जवाबी हमले के बाद गोलियां खत्म हो रही थीं, यही दुआ कर रहे थे कि रिकवरी पार्टी जल्द पहुंचे वरना 300 नक्सलियों से निपटेंगे कैसे?
शेर मोहम्मद का साफ-साफ कहना है कि अगले किसी भी मूवमेंट में सीआरपीएफ के साथ स्थानीय पुलिस की तैनाती होनी चाहिए। कब कौन ग्रामीण की वेशभूषा में हमला कर दे, हमारी रैकी कर रहा है, जान पाना मुश्किल है। बता दें कि जवानों से मीडिया की बातचीत पर सीआरपीएफ ने पाबंदी लगा दी है।
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