सुकमा हमला: सब्जी-रोटी रख भी नहीं पाए थे कि थालियों में गिरने लगीं गोलियां
थालियों में सब्जी-रोटी रख भी नहीं पाए थे कि गोलियां गिरने लगीं। देखते ही देखते जवानों के खून से जंगल लाल हो गया।
एटा (जेएनएन)। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के जंगल में सीआरपीएफ के करीब दो दर्जन जवान खाने के लिए कतारबद्ध बैठे थे और इतने ही जवान अलर्ट थे। थालियों में सब्जी-रोटी रख भी नहीं पाए थे कि गोलियां गिरने लगीं। देखते ही देखते जवानों के खून से जंगल लाल हो गया। अलर्ट जवानों ने तत्काल ही मोर्चा संभाल लिया और फिर काफी देर तक मुठभेड़ होती रही।
इस हमले में शहीद एटा जिले के नगला डांडी निवासी किशनपाल सिंह यादव के पार्थिव शरीर को लेकर बुधवार सुबह पहुंची सीआरपीएफ की टुकड़ी ने आंखों देखा हाल गांव वालों को सुनाया। सीआरपीएफ के डीआईजी जसवीर ¨सह संधु ने बताया कि सुकमा में स्थित सीआरपीएफ के मुख्यालय से जवानों की दो टोलियां जंगल में सर्च ऑपरेशन के लिए पहुंची थीं। इनमें से एक टोली जंगल में बनाई जा रही सड़क की सुरक्षा के लिए थी, जबकि दूसरी टोली को सड़क के इर्द-गिर्द फैले जंगल में निगरानी करनी थी।
दूसरी टोली में सीआरपीएफ के चार दर्जन जवान थे। रविवार सुबह 6 बजे यह टोली जंगल में दाखिल हुई थी। एक पहाड़ी की तलहटी में सीआरपीएफ ने तंबू लगा रखा था। सीआरपीएफ की जो टोली सड़क की सुरक्षा कर रही थी, उसे भी दोपहर एक बजे जंगल में तंबू तक पहुंचना था, यहां जवानों के भोजन की व्यवस्था थी। तय यह हुआ था कि दो दर्जन जवान अलर्ट पर रहेंगे, तब तक बाकी भोजन करेंगे।
डीआइजी ने बताया कि हमारे जवानों ने इलाके को काफी देर तक खंगाला था, लेकिन वे नक्सलियों की चाल भांप नहीं पाए। पहाड़ी की तलहटी में डेरा डालना भी बड़ी चूक हुई। कतारबद्ध बैठे जवानों के सामने थालियां रख ही पाई थीं कि ठीक 12 बजकर 10 मिनट पर अचानक गोलियों और तीर बम की बौछार होने लगी। नक्सली पेड़ों पर भी छिपे हुए थे, जो ऊपर से गोलियां बरसा रहे थे। नक्सलियों की अगली पंक्ति में महिला उग्रवादी मोर्चा लिए थीं। हमलावरों ने हमले के लिए ऐसा समय चुना, जब अलर्ट पर अधिक जवान नहीं होते। इसी वजह रही कि खाने खाने के लिए बैठे दो दर्जन से ज्यादा जवान इस हमले में शहीद हो गए।
सीआरपीएफ की टुकड़ी ने बताया कि फ्रंट हमले में जो जवान पंक्तिबद्ध बैठे थे, वे चपेट में आ गए। जबकि जो जवान अलर्ट पर थे, उन्होंने पेड़ों की ओट लेकर मोर्चा संभाल लिया था। जिस जवान के पास वायरलेस सिस्टम था, वह शहीद हो चुके थे। इस कारण बैकअप के लिए सूचना समय रहते नहीं दी जा सकी। उधर, सड़क सुरक्षा में मुस्तैद टोली भी निश्चित समय पर तंबू तक पहुंच गई। चौतरफा हमला होते देख नक्सली वहां से भाग गए।
एक जवान ने बताया कि तीन साल से उनकी तैनाती सुकमा में है। कई बार नक्सलियों से मुठभेड़ हुई है। नक्सली गोरिल्ला नीति अपनाते हैं। उन्हें पेड़ों पर चढ़ने में महारत हासिल है। पेड़ों की शाखाएं इतनी घनी होती हैं कि उन पर बैठे नक्सली नीचे से नजर भी नहीं आते हैं।
कमजोर है मुखबिर तंत्र: संधु
डीआइजी सीआरपीएफ जसवीर सिंह संधु ने बताया कि जवानों के हौसले बुलंद हैं, लेकिन मुखबिर तंत्र कमजोर है। नक्सलियों के बारे में सूचनाएं वहां के लोगों से समय रहते नहीं मिल पातीं। इस वजह से कई बार नक्सलियों के हमले सफल हुए हैं। रास्तों में बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं। इस वजह से एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना होता है। जब हमला होता है तो जवानों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यही होती है कि जमीन पर पांव कहां रखें। क्योंकि यह खतरा होता है कि कहीं लैंडमाइन न बिछी हो।
जंगल के सर्च ऑपरेशन में सबसे आगे बारूदी सुरंगरोधी वाहन और टीम होती है। शेष जवान पीछे चलते हैं। जब तक आने चलने वाली टीम रास्ता साफ होने का संकेत नहीं देती, तब तक जवान आगे नहीं बढ़ पाते। कहा कि नक्सलियों की कमर तोड़ने के लिए अब बड़े ऑपरेशन की जरूरत है।
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