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पाकिस्तान को अलग-थलग करने में छोटे देशों की बड़ी अहमियत

कहने को तो ये बेहद छोटे देश हैं। इनमें से कुछ देशों के क्षेत्रफल तो भारत के एक छोटे राज्य से भी कम हैं। तो कुछ की आबादी भारत के कुछ जिलों से भी कम है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Wed, 05 Oct 2016 12:37 AM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2016 04:24 AM (IST)

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कहने को तो ये बेहद छोटे देश हैं। इनमें से कुछ देशों के क्षेत्रफल तो भारत के एक छोटे राज्य से भी कम हैं। तो कुछ की आबादी भारत के कुछ जिलों से भी कम है। लेकिन भारत की कूटनीति में इन देशों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है।

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चाहे आतंकवाद को पनाह देने के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कूटनीति हो या चीन के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा में अपनी बात रखने की बात हो, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, विएतनाम, सिंगापुर और लाओस जैसे छोटे देशों की अपनी खास अहमियत है।

भारत इन देशों पर पहले से ज्यादा कूटनीतिक दांव लगाने को तैयार है। आर्थिक मदद देने से लेकर इन देशों को सैन्य साजोसमान देने तक की पहल भारत ने पहले से भी बढ़ाने का फैसला किया है। इसका नतीजा भी सामने आने लगा है।

सिंगापुर ने जताया समर्थन

सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सेन लूंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने के बाद न सिर्फ भारत को आतंकवाद के मुद्दे पर हर तरह का समर्थन दिया बल्कि इशारों ही इशारों में यह भी कहा कि उनका देश एशिया व वैश्विक परिदृश्य में भारत के बढ़ते प्रभाव का समर्थक है। चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ कई बार खुल कर बोल चुके सिंगापुर ने किस देश के खिलाफ भारत का समर्थन किया है, यह आसानी से समझा जा सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी सांकेतिक भाषा में यह दर्शा दिया है कि भारत भी उसकी चिंताओं को बखूबी समझता है। मोदी ने कहा है कि भारत और सिंगापुर सामुद्रिक मामले में अंतरराष्ट्रीय नियमों के पालन करने के समर्थक हैं। माना जाता है कि मोदी ने यह बात दक्षिण चीन सागर को लेकर कही है।

सिंगापुर भी पहले कह चुका है कि दक्षिण चीन सागर मामले में अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले का पालन होना चाहिए। भारत और सिंगापुर में इस बात की सहमति बनी है कि वे एक दूसरे को आतंक के खिलाफ लड़ाई में मदद करेंगे और आर्थिक संबंधों को ज्यादा से ज्यादा प्रगाढ़ करेंगे।

मोदी से आज मिलेंगे विक्रमसिंघे

मोदी की बुधवार को श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ भी मुलाकात होगी। विक्रमसिंघे मंगलवार को भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर पहुंचे हैं। यह यात्रा इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्हें भारत का समर्थन करने वाले राजनेता के तौर पर देखा जाता है। विक्रमसिंघे सरकार की कुछ कदमों से यह बात सही भी साबित होती है।

हाल ही में चीन सरकार ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि श्रीलंका की सरकार उनकी निवेश परियोजनाओं को खास तवज्जो नहीं दे रही है। इसके अलावा श्रीलंका ने दो दिन पहले ही नवंबर, 2016 में प्रस्तावित सार्क शिखर बैठक में जाने से भी इन्कार किया है।

भारत की तरफ से सार्क बैठक का बहिष्कार करने के बाद माना जा रहा था कि पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्ता रखने वाला श्रीलंका शायद कुछ आनाकानी करेगा। लेकिन भारतीय कूटनीति विक्रमसिंघे को मनाने में सफल रही है।

इस तरह से भारतीय कूटनीति ने श्रीलंका में अपनी दोनों चिंताओं का समाधान करने में सफलता पाई है। कुछ वर्ष पहले तक श्रीलंका में जिस तेजी से चीन की घुसपैठ हो रही थी उससे भारत चिंतित था। इसी तरह से श्रीलंका ने पाकिस्तान से युद्धक विमान खरीदने में भी रुचि दिखाई थी।

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