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कांग्रेस के लिए उलझा पंजाब, कमलनाथ के बाद शीला को प्रभार देने की अटकलें

कमलनाथ को लेकर उठे विवाद के बाद कांग्रेस ने हाथ खींच लिया है। बहरहाल, दिखाने की कोशिश यह है कि पार्टी किसी दबाव में नहीं है।

By anand rajEdited By: Published: Fri, 17 Jun 2016 01:29 AM (IST)Updated: Fri, 17 Jun 2016 10:26 AM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। औपचारिक रूप से चुनाव में उतरने से पहले ही कांग्रेस पंजाब को लेकर उलझ गई है। सिख दंगे में कथित भूमिका को लेकर उठे विवाद के बाद पंजाब प्रभारी के रूप में कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद यह बड़ा संकट खड़ा हो गया है कि अगले ही साल होने वाले चुनाव से पहले किसके हाथ कमान सौंपी जाए। हालांकि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को प्रभार देने की अटकलें तेज हैं लेकिन खुद शीला की स्वीकृति को लेकर आशंका है।

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बताया जाता है कि गुरुवार की शाम शीला ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। कमलनाथ को लेकर उठे विवाद के बाद कांग्रेस ने हाथ खींच लिया है। बहरहाल, दिखाने की कोशिश यह है कि पार्टी किसी दबाव में नहीं है। यही कारण है कि पार्टी के प्रवक्ता आनंद शर्मा और खुद कमलनाथ ने स्पष्ट कि उन्होंने खुद ही इस्तीफा दिया था।

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पंजाब कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह ने भी अनौपचारिक बातचीत में कहा कि एक षडयंत्र के तहत कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश की गई है। लेकिन जनता सच्चाई जानती है। कमलनाथ पार्टी को असहज स्थिति और विवाद से बचाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से बात कर अपना इस्तीफा भेज दिया है।

अब संकट यह है कि प्रभारी बनाया किसे जाए। एक नाम शीला दीक्षित का है। हालांकि पार्टी में फिलहाल कोई इसकी पुष्टि नहीं कर रहा है। बल्कि सूत्रों के अनुसार कुछ नेताओं का मानना है कि शीला भी शायद इसके लिए तैयार न हों।

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दरअसल, पार्टी रणनीतिकार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे की तलाश में है। संभव है कि शीला वहां अपने लिए विकल्प ढूंढ रही हो। एक अटकल उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर भी है। ऐसे में पंजाब को लेकर कोई अंतिम फैसला काफी सोच विचार के बाद होगा।

गौरतलब है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी अध्यक्ष बनाने के बाद धीरे धीरे कांग्रेस लड़ाई में मौजूद होने का आधार बनाने लगी थी। लेकिन इसी बीच कमलनाथ को लेकर उठे विवाद ने कांग्रेस के लिए हालात मुश्किल कर दिया है। विपक्षी दलों की ओर से सिख दंगे की याद ताजा करने की कोशिश की गई है।

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