सतपाल महाराज की आमद से फायदे में भाजपा
देहरादून [जागरण ब्यूरो]। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद सतपाल महाराज के भाजपा प्रवेश से पार्टी को उत्तराखंड के साथ ही कुछ अन्य राज्यों में भी खासा फायदा हासिल हो सकता है। बतौर अध्यात्मिक गुरु सतपाल महाराज को मानने वाले उत्तराखंड के साथ ही कुछ अन्य राज्यों में भाजपा के वोट बैंक में इजाफा कर सकते हैं। साथ ही महाराज के कद को देखते हुए भविष्य में प्रदेश भाजपा में एक और गुट के उदय से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
देहरादून [जागरण ब्यूरो]। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद सतपाल महाराज के भाजपा प्रवेश से पार्टी को उत्तराखंड के साथ ही कुछ अन्य राज्यों में भी खासा फायदा हासिल हो सकता है। बतौर अध्यात्मिक गुरु सतपाल महाराज को मानने वाले उत्तराखंड के साथ ही कुछ अन्य राज्यों में भाजपा के वोट बैंक में इजाफा कर सकते हैं। साथ ही महाराज के कद को देखते हुए भविष्य में प्रदेश भाजपा में एक और गुट के उदय से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
सतपाल महाराज के अब तक के ढाई दशक के राजनैतिक जीवन में से लगभग 22 वर्ष कांग्रेस में ही गुजरे हैं। महाराज मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साथ ही उत्तराखंड कांग्रेस के क्षत्रपों में शुमार किए जाते थे। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में महाराज गुट की महत्वपूर्ण भूमिका रहती आई है। उनकी पत्नी अमृता रावत राज्य की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। उनके अलावा भी महाराज के खेमे में आधा दर्जन विधायक बताए जा रहे हैं।
कांग्रेस की सूबाई सियासत में अहम दखलंदाजी के बावजूद महाराज को हमेशा मलाल रहा कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से उन्हें वह तवज्जो नहीं मिली, जिसके वह हकदार रहे। केंद्र में मंत्री पद न मिलने, मुख्यमंत्री पद के मामले में दरकिनार किए जाने और प्रदेश अध्यक्ष न बनाए जाने को लेकर महाराज लंबे समय से स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। यही वजह रही कि राज्य में आई दैवीय आपदा और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने का फैसला किया।
महाराज के चुनाव क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल के साथ ही हरिद्वार लोकसभा सीट के अंतर्गत भी उनके समर्थकों की तादाद काफी बड़ी है। यही नहीं उत्तराखंड के बाहर दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कुछ अन्य राज्यों में भी सतपाल महाराज की छवि एक धार्मिक गुरु की है और उनके अनुयायी उनकी पूजा तक करते हैं। साफ है कि इन राज्यों में भाजपा लोकसभा चुनाव में महाराज की धार्मिक छवि का लाभ उठाने की रणनीति अमल में ला सकती है।
इस सियासी नफे के साथ ही भाजपा को महाराज की आमद से पार्टी के भीतर एक नए खेमे के उठ खडे़ होने के नुकसान से भी दो-चार होना पड़ सकता है।
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फिलवक्त तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- भुवन चंद्र खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी और रमेश पोखरियाल निशंक के इर्द-गिर्द घूमती प्रदेश भाजपा की अंदरूनी राजनीति में महाराज निकट भविष्य में चौथे कोण के रूप में उभर सकते हैं। खासकर, तब भाजपा के समक्ष मुश्किल हालात आ सकते हैं जब भविष्य में विधानसभा चुनाव के वक्त महाराज के समर्थक नेता या उनके गुट के मौजूदा कुछ विधायक भी टिकट के तलबगार होंगे।