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हां, यह पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई है: संजय सिंह

महज दो-ढाई वर्षों के अपने सियासी सफर में आम आदमी पार्टी (आप) प्रचंड बहुमत से दिल्ली की हुकूमत पर काबिज होने में तो कामयाब हो गई है, लेकिन सत्ता मिलते ही पार्टी लगभग दो फाड़ भी होती दिख रही है। आंदोलन से बनी इस पार्टी में शुरू हुए बिखराव की

By Sachin kEdited By: Published: Fri, 03 Apr 2015 08:41 AM (IST)Updated: Fri, 03 Apr 2015 10:40 AM (IST)

नई दिल्ली। महज दो-ढाई वर्षों के अपने सियासी सफर में आम आदमी पार्टी (आप) प्रचंड बहुमत से दिल्ली की हुकूमत पर काबिज होने में तो कामयाब हो गई है, लेकिन सत्ता मिलते ही पार्टी लगभग दो फाड़ भी होती दिख रही है। आंदोलन से बनी इस पार्टी में शुरू हुए बिखराव की तुलना जनता पार्टी की सरकार की टूट और बिखराव से की जा रही है। पार्टी के एक खेमे की नजर में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बड़े सियासी योद्धा हैं तो प्रशांत भूषण उन्हें तानाशाह करार दे रहे हैं।

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दोनों पक्ष के अलग-अलग दावे हैं। आखिर सच क्या है, दोस्तों में दुश्मनी कैसे हुई, इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और आगे क्या हालात पैदा होने होने वाले हैं, इन तमाम सवालों पर आप के वरिष्ठ नेता संजय सिंह से हमारे राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय पांडेय ने लंबी बातचीत की। आप नेता ने भी बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।

क्या यह पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई है?

हां, यह वर्चस्व की लड़ाई तो जरूर है लेकिन सवाल यह है कि इस लड़ाई की शुरुआत किसने की। जो लोग यह चाहते थे कि अरविंद केजरीवाल को संयोजक के पद से हटाकर, योगेंद्र यादव को संयोजक बना दिया जाए, वे लोग पार्टी पर अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे। लोकसभा चुनाव में भारी पराजय के बाद जब पार्टी संकट में थी तो उन्होंने सात पेज की चिट्ठी लिखकर पार्टी को डिरेल करने की कोशिश शुरू हो गई थी। यह मामला एक साल पुराना है। इस बीच शांतिभूषण जी, प्रशांत जी और योगेंद्र यादव जी ने कई ऐसे बयान दिए, जिनसे साफ यह जाहिर हो रहा था कि वे अरविंद को संयोजक पद से हटाना चाहते थे।

क्या वर्चस्व के अलावा भी टकराव की कोई वजह है?

देखिए, असली लड़ाई सड़क पर उतर कर संघर्ष करने वालों और बंद कमरों में ज्ञान बांटने वालों के बीच है। एक ओर सड़क पर उतर कर, जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को जानकर पूरी ईमानदारी से उन्हें दूर करने की कवायद करने वाले योद्धा के तौर पर अरविंद केजरीवाल हैं तो दूसरी ओर कमरों में बैठकर किताबी सियासत की बात करने वाले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव हैं।

आखिर केजरीवाल को हटाना क्यों चाहते थे प्रशांत-योगेंद्र?

देखिए, हटाने की बात के पीछे एक मुख्य बात यह रही कि इन्हें यह लगता था कि पार्टी में हम सर्वोच्च हैं, लिहाजा सबसे ज्यादा तवज्जो, सबसे बड़ा स्थान हमें मिलना चाहिए। दूसरी ओर, इन लोगों को यह भी दिखाई दे रहा था कि पार्टी पर, कार्यकर्ताओं पर और सबसे बढ़कर जनता पर केजरीवाल की पकड़ जबरदस्त है। केजरीवाल अपनी बात आसानी से जनता के बीच पहुंचा दे रहे हैं। उनके साथ लोगों का जुड़ाव हो रहा है और हम इस रेस में पिछड़ रहे हैं। यही कुंठा इनके मन में थी।

क्या प्रशांत भूषण यह कहना चाहते थे कि केजरीवाल को यहां तक लाने के पीछे असली ताकत वहीं हैं?

असल में वह धमका कर पार्टी में अपनी सर्वोच्चता साबित करना चाहते थे। पीएसी की मीटिंग में अक्सर बोलते थे कि मैं एक्सपोज कर दूंगा, सबकुछ खत्म कर दूंगा। लेकिन मुझे लगता है कि यदि उनके पास एक्सपोज करने लायक वाकई कुछ होता तो अब तक कर चुके होते।

क्या यह सच है कि आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में भूषण परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही?

हां, यह सबको पता है कि जब आम आदमी पार्टी बनी तो शांतिभूषण जी पार्टी को चंदा दिया। लेकिन पार्टी को खड़ा करने में हजारों लोगों का योगदान है। आज हम जहां तक पहुंचे हैं, वह जनता के ही सहयोग से पहुंचे हैं। दूसरी बात यह है कि इस बार के चुनाव में तो इन लोगों ने बाकायदा डोनर को चंदा देने से मना किया। लोगों से कहा कि हम चुनावी सभा में नहीं जा रहे हैं, आप भी मत जाइएगा। यह जो पार्टी को हराने की इनकी मुहिम थी, इस बात पर सबसे ज्यादा आपत्ति है। यह तो अपने आप में बड़ी खतरनाक प्रवृत्ति है कि जब आपको लगता है कि संगठन में सबकुछ आपके हिसाब से नहीं हो रहा है तो आप संगठन को ही खत्म कर दोगे।

क्या केजरीवाल सचमुच तानाशाह हैं?
प्रशांत भूषण ने जिस प्रकरण की चर्चा की, वह असल में यह है कि एक बैठक में शांतिभूषण जी ने कहा कि कनविनर का मतलब सिर्फ इतना है कि जो पार्टी की बैठकों को कनविन करे। इसी पर केजरीवाल ने कहा कि आपको कम से कम फस्र्ट अमांग इक्यूल्स की बात तो माननी पड़ेगी। परिवार में भी अलग-अलग राय होती है लेकिन लोग मुखिया की बात मानते हैं, सीमा पर भी सेना को कर्नल की बात माननी पड़ती है। ऐसे में निर्णय लेने की प्रक्रिया में आपको किसी न किसी का नेतृत्व तो मानना पड़ेगा। इसी प्रकरण को ये लोग मिस कोट कर रहे हैं।

आप लोग लोकपाल की बात करते हैं और आपने अपने ही आंतरिक लोकपाल को पार्टी से धक्का मारकर निकाल दिया?

जो लोग ऐसा कह रहे हैं, वह सरासर गलत कह रहे हैं। लोकपाल का कार्यकाल दिसंबर 2013 में खत्म होना था ओर उसके बाद हमें तीन सदस्यीय लोकपाल की समिति का गठन किया जाना था। यह हमारे पार्टी के संविधान में है। धक्का मारकर निकालने की बात बिल्कुल गलत है। असल में उनका कार्यकाल खत्म हो गया था।

क्या यह सच नहीं है कि जो भी केरीवाल के खिलाफ बोलेगा, उसे पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा?

बिल्कुल सच नहीं है। इस पार्टी में सबसे ज्यादा केजरीवाल के खिलाफ बोला गया। आप इतिहास उठाकर देख लीजिए। इस पार्टी के अंदर रहकर लगातार लोग केजरीवाल के खिलाफ बोलते रहे। सवाल केजरीवाल का नहीं है, जब आप पार्टी को ही हराने में लग गए थे तो आप दूसरे को क्या दोष देंगे। एक ओर केजरीवाल थे जो चाह रहे थे कि किसी प्रकार पार्टी जीत जाए, दूसरी ओर प्रशांत भूषण थे जो यह चाह रहे थे कि किस प्रकार पार्टी हार जाए। ऐसे में यदि राष्ट्रीय कार्यकारिणी व राष्ट्रीय परिषद ने इन्हें बाहर निकालने का फैसला किया तो क्या गलत है?

आगे क्या रणनीति है?

हमारी पूरी रणनीति है कि पूरे देश के स्तर पर हमारा संगठन कैसे खड़ा होगा। बूथ स्तर से राज्य स्तर तक हमारा संगठन कैसे खड़ा हो। लोगों तक हम अपनी बात कैसे पहुंचाएं और जहां हमें लगेगा कि हम चुनाव लड़ सकते हैं, वहां हम चुनाव भी लड़ेंगे। अगले दो-चार महीने में हम अपने संगठन की स्थिति का जायजा लेंगे। अब बिहार को देखें तो हमारे पास बहुत कम समय बचा है। अभी छह महीने में हम केवल पार्टी के संगठन को मजबूत करेंगे।

क्या प्रशांत-योगेंद्र गुट द्वारा नई पार्टी बनाए जाने से आम आदमी पार्टी को कोई नुकसान होगा?

कोई नुकसान नहीं होगा। अब वे सारे प्रयोग करके दिखाएं, जो अब तक वे कहते रहे हैं।

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