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स्मृति इरानी के 'महिषासुर वार' पर बढ़ी तकरार

जेएनयू और हैदराबाद प्रकरण को लेकर एक दिन पहले ही लोकसभा में पूरी आक्रामकता से विपक्ष को ध्वस्त करने मे सफल रही सरकार को गुरुवार को राज्यसभा में जवाब भी पूरा नहीं करने दिया गया।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 25 Feb 2016 11:43 PM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2016 07:43 AM (IST)

नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। जेएनयू और हैदराबाद प्रकरण को लेकर एक दिन पहले ही लोकसभा में पूरी आक्रामकता से विपक्ष को ध्वस्त करने मे सफल रही सरकार को गुरुवार को राज्यसभा में जवाब भी पूरा नहीं करने दिया गया। विपक्ष के बहुमत वाले इस सदन में 'महिषासुर और मां दुर्गा' के बाबत वाम संगठनों की भाषा को लेकर इतना बवाल उठा कि सुबह से बिना अवरोध चल रही कार्यवाही एकबारगी स्थगित हो गई। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जब जेएनयू में मां दुर्गा के बारे में कुप्रचार और महिषासुर के महिमामंडन का आइना दिखाया तो विपक्ष बर्दाश्त नहीं कर सका। राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा समेत पूरे विपक्ष ने स्मृति को जवाब नहीं पूरा करने दिया। इससे पहले सुबह ही नेता सदन व वित्तमंत्री अरुण जेटली की ओर से जेएनयू पर पुलिस कार्रवाई को तथ्य और तर्को के साथ सही ठहराया।

रोष या रणनीति

लोकसभा की तरह ही राज्यसभा मे भी जेएनयू और हैदराबाद घटना पर हुई बहस का जवाब देने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ही आइ थीं। हालांकि लोकसभा के मुकाबले यहां उनका तेवर और लहजा बदला हुआ था। तथ्य तो लगभग वही थे जो लोकसभा में रखे गए थे लेकिन भावना पर नियंत्रण के साथ। इसी क्रम में जब उन्होंने वाम संगठनों का जिक्र किया और एक पर्चे से पढ़कर बताया कि किस तरह जेएनयू में दुर्गा की बजाय महिषासुर का महिमामंडन किया जाता है और किस तरह दुर्गा को कलंकित किया जाता है, तो कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा उग्र हो गए। उन्होंने सवाल उठाया कि दुर्गा के बारे में इस तरह की बाते किस आधार पर पढ़ी जा रही है। किसी भी संगठन का पर्चा क्या इस तरह सदन के अंदर रखा जा सकता है। खुद उपसभापति पी जे कुरियन ने पूछा कि क्या वह इस पर्चे को प्रमाणित करेंगी। हंगामा इतना बढ़ा कि अगले तीन चार मिनट के अंदर ही कार्यवाही शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। दरअसल, इससे पहले स्मृति ने माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद से लेकर अन्य सदस्यों के सवालों पर न सिर्फ जवाब दिए, बल्कि उनको अपने ही अंदाज में असहज भी किया। मगर टोका-टाकी के बीच भी अपनी पूरी सरकार के समर्थन से स्मृति डटी रहीं।

उपसभापति के लहजे पर उठा सवाल: कार्यवाही स्थगित होने से कुछ देर पहले ही सत्तापक्ष और कुरियन में भी थोड़ी बहस हो गई थी। दरअसल, कुरियन ने जवाब दे रहीं स्मृति को रोककर पूछा था कि वह और कितना समय लेंगी। संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू इस पर थोड़े भड़क गए थे। हालांकि कुरियन से यह साफ किया कि वह नियंत्रण नहीं कर रहे हैं बल्कि इस लिए पूछ रहे थे क्योंकि इसके बाद एक विधेयक पर भी चर्चा होनी है।

जेएनयू संप्रभु नहीं: जेटली

सुबह चर्चा शुरू हुई थी जेटली ने जेएनयू कैंपस में पुलिस कार्रवाई को सही ठहराया। उन्होंने दो टूक कहा कि जेएनयू कोई संप्रभु स्थान नहीं है, जहां पुलिस नहीं जा सकती है। इस संदर्भ में उन्होंने 1983 में पूछे गए एक सवाल का हवाला भी दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी के काल में भी जब छात्रों ने कुलपति का घेराव किया था तो पुलिस ने वहां घुसकर 350 छात्रों को गिरफ्तार किया था। उसमे 50 छात्राएं भी थीं। हाल का मामला उससे भी ज्यादा गंभीर था। वहां राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए। जेटली ने कहा कि यह सच है कि कांग्रेस के दो प्रधानमंत्री आतंकियों के हाथों मारे गए। ऐसे में कांग्रेस को तो इस मुद्दे पर सरकार का साथ देना चाहिए था। लेकिन राजनीति हावी है। दिन भर चली चर्चा में माकपा नेता सीताराम येचुरी, राज्यसभा मे नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, भाकपा नेता डी राजा व कई अन्य ने हिस्सा लिया और अधिकतर ने हैदराबाद में छात्र की आत्महत्या के लिए भी सरकार की भूमिका पर सवाल उठाया था। भाजपा को दलित विरोधी भी ठहराया गया था। पलटवार करते हुए भाजपा के भूपेंद्र यादव ने येचुरी को याद दिलाया कि उनके पोलित ब्यूरो में एक भी दलित नेता नहीं है।

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