रैली और रक्तपात का रहा है पुराना इतिहास
बिहार की राजधानी पटना में रविवार को आयोजित नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली के दिन आयोजन स्थल गांधी मैदान विस्फोटों से थर्रा गया। पटना रेलवे प्लेटफार्म और आयोजन स्थल पर धमाके हुए। अगर सुरक्षा एजेंसियां चौकस होतीं और पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होती तो हम इस धमाके में हुए हताहतों को बचा सकते थे। हमारे और पड़ोसी देशो
पटना। बिहार की राजधानी पटना में रविवार को आयोजित नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली के दिन आयोजन स्थल गांधी मैदान विस्फोटों से थर्रा गया। पटना रेलवे प्लेटफार्म और आयोजन स्थल पर धमाके हुए। अगर सुरक्षा एजेंसियां चौकस होतीं और पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होती तो हम इस धमाके में हुए हताहतों को बचा सकते थे। हमारे और पड़ोसी देशों के सामने ऐसे कई वाकये हैं जिसमें राजनीतिक प्रचार अभियान के दौरान हमने बहुत कुछ खोया है। हालांकि कुछ हादसों को चौकसी से टाला भी गया है। पेश है एक नजर:
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राजीव गांधी
घटना 1991 की है। लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान उफान पर था। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री फिर से अपनी पार्टी को केंद्र में सत्तासीन करने के लिए रात-दिन एक किए हुए थे। इसी क्रम में तमिलनाडु में चेन्नई के निकट श्रीपेरंबुदूर में उनकी राजनीतिक रैली आयोजित की गई। 21 मई, 1991 यानी रैली के दिन लोगों को संबोधित करने पहुंचे, वहां लिट्टे के आत्मघाती हमले में मारे गए।
लालकृष्ण आडवाणी
वाकया अक्टूबर, 2011 का है। संप्रग सरकार के कार्यकाल में बढ़ते भ्रष्टाचार को देश की जनता के सामने लाने के लिए भाजपा के लौहपुरुष ने 11 अक्टूबर को बिहार के सिताब दियारा से 38 दिन चलने वाली जन चेतना यात्रा का श्रीगणेश किया। इस यात्रा को 22 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों से होते हुए गुजरना था। यात्रा के तमिलनाडु में मदुरै से गुजरने से ठीक पहले रास्ते में एक पुल के नीचे पाइप मिलने से खुफिया एजेंसियों के कान खड़े हो गए। लिहाजा यात्रा का मार्ग बदलना पड़ा। 1998 में भी कोयंबटूर में आयोजित आडवाणी की एक रैली में बम मिला था। इसी साल यहां सीरियल धमाके भी हुए थे।
बेनजीर भुट्टो
जनवरी, 2008 के पाकिस्तान चुनाव की तैयारियां जोरों पर थी। दो बार देश की प्रधानमंत्री रह चुकीं बेनजीर उस समय देश की प्रमुख विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की नेता थीं। अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए उनका चुनावी अभियान जोरों पर था। इसी क्रम में रावलपिंडी में आयोजित एक रैली को संबोधित करने के दौरान 27 दिसंबर, 2007 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।
राणासिंघे प्रेमदासा
श्रीलंका के तीसरे राष्ट्रपति रहे अपने कार्यकाल के दौरान ही लिट्टे के आत्मघाती हमलावरों का शिकार बने।
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