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फाड़कर फेंक दें अध्यादेश

सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अप्रत्याशित रूप से अपनी ही पार्टी की नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ 'अविश्वास' जता दिया। प्रधानमंत्री के नेतृत्व को राहुल ने ऐसे मौके पर आघात लगाया है, जब वह कई विश्व नेताओं से मुलाकात के लिए अमेरिकी धरती पर हैं। राहुल ने अध्यादेश को बकवास बताते हुए उसे फाड़कर फेंकने का बयान देकर सरकार-पार्टी सबको सकते में डाल दिया।

By Edited By: Published: Sat, 28 Sep 2013 06:15 AM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2013 06:26 AM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अप्रत्याशित रूप से अपनी ही पार्टी की नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ 'अविश्वास' जता दिया। प्रधानमंत्री के नेतृत्व को राहुल ने ऐसे मौके पर आघात लगाया है, जब वह कई विश्व नेताओं से मुलाकात के लिए अमेरिकी धरती पर हैं। राहुल ने अध्यादेश को बकवास बताते हुए उसे फाड़कर फेंकने का बयान देकर सरकार-पार्टी सबको सकते में डाल दिया।

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पढ़ें: विपक्ष को सिर्फ अमीरों की चिंता

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिका से ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बात की, लेकिन कांग्रेस के भविष्य की तरफ से खुद पर खड़े किए गए इस सवाल से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अविचलित दिखे। अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में शिरकत करने गए प्रधानमंत्री ने बयान जारी कर संकेत दिया कि वह वतन वापसी के साथ ही इस अध्यादेश को वापस ले सकते हैं।

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भाजपा और विपक्ष के विरोध और राष्ट्रपति के हस्तक्षेप के बाद अचानक मीडिया के सामने बेहद नाटकीय अंदाज में शुक्रवार को अवतरित हुए राहुल गांधी मात्र तीन मिनट में ही अपनी संप्रग सरकार की धज्जियां बिखेर कर उसे गलत करार दे गए। राहुल ने ये विस्फोटक बयान प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में कांग्रेस महासचिव अजय माकन की प्रेसवार्ता के बीच आकर दिया। राहुल ने प्रधानमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस नेतृत्व को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने भाजपा और अन्य दलों के साथ कांग्रेस का नाम लेते हुए कहा, 'तर्क दिए गए कि राजनीतिक मजबूरियों की वजह से ऐसा किया गया। हर कोई ऐसा कर रहा है। अब समय आ गया है कि इस तरह की बकवास चीजों पर रोक लगाई जाए। भ्रष्टाचार से लड़ना है तो हमें इस तरह के छोटे समझौते नहीं करने चाहिए।'

इतना कहकर राहुल झटके से उठे और चल दिए, पत्रकारों के रोकने पर फिर बैठे तथा एक लाइन और जोड़ते हुए कहा, 'कांग्रेस और हमारी सरकार जो फैसले ले रही है, उसमें मेरी दिलचस्पी है। इसलिए जहां तक इस अध्यादेश का सवाल है तो हमारी सरकार ने जो कुछ किया है, वह गलत है।' खास बात है कि राहुल से ठीक पहले उसी प्रेसवार्ता में कांग्रेस के मीडिया सेल के प्रमुख अजय माकन सरकार का बचाव कर रहे थे और भाजपा पर दोहरा रुख अपनाने का आरोप लगा रहे थे। इतना ही नहीं, राष्ट्रपति के अध्यादेश रोकने और दिग्विजय सिंह, मिलिंद देवड़ा और संदीप दीक्षित जैसे नेताओं के विरोध पर सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने सबको हिदायत दी कि वे पहले अध्यादेश को बारीकी से देखें।

कुल मिलाकर सरकार-संगठन तो दूर बड़े नेताओं में भी आपस में कोई समन्वय नहीं था। राहुल के बयान के बाद सरकार की जहां फजीहत हुई, वहीं भाजपा समेत सभी दलों की तरफ से प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग लिया गया। हालांकि विपक्ष ने राहुल के इस कदम को नौटंकी करार देते हुए कहा कि अगर यह गलत हुआ है तो जिम्मेदार लोगों का इस्तीफा लिया जाए। मगर अमेरिका में मौजूद प्रधानमंत्री ने एक बयान जारी कर इस विवाद को शांत करने की कोशिश की। इसमें उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने उन्हें पत्र लिखकर पहले ही अपने विचारों से अवगत करा दिया था। साथ ही संकेत दिए कि दिल्ली लौटने के बाद वह अध्यादेश वापस ले लेंगे। इस बीच, कांग्रेस की तरफ से राहुल का एक पत्र सार्वजनिक किया गया। इसमें राहुल ने कहा है कि अध्यादेश पर उनकी राय मंत्रिमंडल के फैसले और कोर ग्रुप के मत से भिन्न है। पत्र में उन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में प्रधानमंत्री की नेतृत्व कुशलता की प्रशंसा भी की। बहरहाल, यह साफ नहीं हो पाया है कि यह पत्र कांग्रेस उपाध्यक्ष के बयान देने से पहले का है या बाद का।

फैसले में तो सोनिया भी थीं शामिल

दागियों को रियायत देने वाले अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष के मुखर विरोध ने सरकार के फैसले को तो कठघरे में खड़ा किया ही। साथ ही अपनी ही पार्टी के राजनीतिक चिंतन और निर्णय प्रक्रिया के लिए भी कम सवाल नहीं खड़े किए हैं। अध्यादेश लाने के जिस फैसले को 24 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अमलीजामा पहनाया गया, उसमें संप्रग और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी शामिल थीं। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की निर्णय क्षमता को कठघरे में खड़ा किया है?

किसने, क्या कहा

'राहुल ने बयान जारी करने के अलावा मुझे इस बारे में लिखा था, राहुल के उठाए गए मुद्दों पर देश वापसी के बाद मंत्रिमंडल विचार करेगा।'

मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री

'अगर प्रधानमंत्री को इसी तरह कमजोर किया जाता रहा तो इतिहास के पन्नों में वह फुटनोट भी नहीं रह जाएंगे। इस स्थिति में वह बराक ओबामा और नवाज शरीफ से क्या बात करेंगे। उन्हें खुद सोचना चाहिए कि पद पर बरकरार रहना चाहिए या नहीं।'

- अरुण जेटली, नेता प्रतिपक्ष राज्यसभा

'राहुल ने जो किया वह अवमानना है, उन्हें माफी मांगनी चाहिए या प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। हर बार गलत फैसला उनके सिर डाला जाता है।'

संजय बारू, पीएम के पूर्व मीडिया सलाहकार

ट्वीट

माकन की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल की एंट्री उस अभिनेता की तरह थी, जो गलती से किसी और नाटक के मंच पर चला जाता है, लेकिन अपनी रिहर्सल वाली लाइनें ही बोलता है।'

-अनुपम खेर

'महात्मा गांधी ने हमें अंग्रेजों के शासन से बचाया, राहुल गांधी ने भ्रष्ट नेताओं के शासन से।'

-फेकिंग न्यूज

'आम जनता को राइट टू रिजेक्ट का अधिकार चाहे जब मिले, राहुल गांधी ने उसका इस्तेमाल कर दिया है और वह भी अपनी ही सरकार के खिलाफ।'

-एस. आलोक

'अध्यादेश बकवास है, यह सुनकर अच्छा लगा, लेकिन राहुलजी आपकी सरकार ने ही इसे पास किया है।'

-राजदीप सरदेसाई

'राहुल गांधी ने कहा कि अध्यादेश बेकार है। इससे पता चलता है कि वह अपनी ही सरकार संबंधी खबरों को देखने के बजाय पोगो चैनल देखने में कितना वक्त जाया करते हैं।'

-एंग्रीआयरनमैन

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