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अक्‍साई चिन, तवांग पर यदि भारत चीन में बनी बात तो अलग थलग पड़ जाएगा पाक

तवांग के जरिए तिब्‍बत को साधने का सपना देखने वाले चीन का ख्‍वाब तोड़ने के लिए पाकिस्‍तान रोड़ा अटका सकता है। अक्‍साई चिन को भारत को सौंपना वह बर्दाश्‍त नहीं करेगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 03 Mar 2017 11:52 AM (IST)Updated: Sat, 04 Mar 2017 11:57 AM (IST)
अक्‍साई चिन, तवांग पर यदि भारत चीन में बनी बात तो अलग थलग पड़ जाएगा पाक
अक्‍साई चिन, तवांग पर यदि भारत चीन में बनी बात तो अलग थलग पड़ जाएगा पाक

नई दिल्‍ली (कमल कान्‍त वर्मा)। अक्‍साई चिन और तवांग को लेकर भारत और चीन के बीच हाेने वाले संभावित समझौते को लेकर चीन का मकसद तिब्‍बत को साधने का है। तिब्‍बत को लेकर चीन हमेशा से ही उठ रहे सवालों का जवाब देता रहा है। वहीं भारत का तिब्‍बत के मुद्दे पर नरम रुख चीन के लिए हमेशा से ही परेशानी का सबब बनता रहा है। ऐसे में भारत यदि चीन के प्रस्‍ताव को मान लेता है तो सबसे बड़े मठ उसके अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा, जिसके बाद उसका तिब्‍बत पर नियंत्रण काफी कुछ सरल हो जाएगा। अभी तक उसके क्षेत्र में आने के बाद भी तिब्‍बत को लेकर चीन पर सवाल उठते रहे हैं।

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अलग-थलग पड़ जाएगा पाक

यहां पर ध्‍यान देने वाली बात यह भी है कि तवांग में बौद्ध भिक्षुओं का सबसे बड़ा मठ है और चूंकि तिब्‍बत इसको लेकर हमेशा से ही संवेदनशील रहा है और वहां से मिले आदेश का पालन भी करता रहा है, लिहाजा यहां से तिब्‍बत को साधना उसके लिए मुश्किल नहीं रहेगा। यदि इस समझौते पर दोनों देश आगे बढ़े तो इसका सबसे बड़ा खामियाजा पाकिस्‍तान को भुगतना होगा और वह क्षेत्र में अलग-थलग पड़ जाएगा।

पाकिस्‍तान बन सकता है रुकावट

अक्‍साई चिन और तवांग को लेकर भविष्‍य में चीन और भारत के बीच होने समझौते में पाकिस्‍तान एक सबसे बड़ी रुकावट बन सकता है। इसकी वजह अक्‍साई चिन का वह क्षेत्र है जो सीधे तौर पर पाकिस्‍तान से मिलता है। इसकी एक बड़ी वजह चीन और पाकिस्‍तान के बीच बन रहा आर्थिक कॉरिडोर भी है। इस पर चीन काफी खर्च कर रहा है। इसके जरिए चीन अपना बाजार बढ़ाना चाहता है और साथ ही वह पूर्व के सिल्‍क रूट को दोबारा उजागर करना चाहता है। जम्‍मू कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान के रुख से पूरी दुनिया अच्‍छे से परिचित है। यही वजह है कि वह इस समझौते को कभी मंजूर नहीं करेगा। इसकी एक बड़ी वजह यह भी होगी कि इस समझौते के बाद पाकिस्‍तान पर पीओके को छोड़ने का दबाव बढ़ जाएगा, साथ ही चीन के दूर होने से वह सामरिक दृष्टि से कमजोर हो जाएगा। चीन पाकिस्‍तान के लिए जहां आर्थिक दृष्टि से सहयोगी है बल्कि सामरिक दृष्टि से भी बेहद मजबूत रिश्‍ते हैं।

1950 के दशक से ही अक्‍साई चिन पर चीन का कब्‍जा

दूसरी ओर, अक्‍साई चिन पर चीन का कब्‍जा हमेशा से ही भारत के लिए परेशानी का सबब बनता रहा है। ऐसे में यदि चीन और भारत इस समझाैते पर आगे बढ़ते हैं तो निश्चित तौर पर ही यह भारत के लिए फायदेमंद साबित होगा। फायदेमंद इसलिए भी होगा क्‍योंकि अक्‍साई चिन भारत की सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्‍वपूर्ण है। ऐसा इसलिए भी है कि क्‍योंकि भारत की आजादी के कुछ वर्षों बाद से ही इस क्षेत्र पर चीन ने कब्‍जा जमा लिया था। 1950 के दशक से यह क्षेत्र चीन कब्‍जे में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे जम्मू और कश्मीर राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक जिने का हिस्सा बनाया है।

जम्‍मू कश्‍मीर के तीन हिस्‍सों पर अलग-अलग देशों का कब्‍जा

इतना ही नहीं पूरे जम्‍मू कश्‍मीर की यदि बात की जाए तो मौजूदा हालात में इसके तीन हिस्‍सों पर अलग-अलग देशों का कब्‍जा है। इसमें जहां एक हिस्‍सा जिसको पीओके के नाम से जाना जाता है वह पाकिस्‍तान के कब्‍जे में हैं, वहीं एक हिस्‍सा भारत के पास है और उत्‍तरी हिस्‍से पर चीन का कब्‍जा है। सामरिक दृष्टि से यह काफी महत्‍वपूर्ण इसलिए भी है क्‍योंकि पीओके का भी कुछ हिस्‍सा इससे मिलता है जो पाकिस्‍तान ने चीन को सौंप रखा है। इतना ही नहीं चीन और पाकिस्‍तान के बीच बनने वाले आर्थिक कॉरिडाेर का भी रास्‍ता यहीं से निकल कर जाता है। इस लिहाज से भी यह पूरा क्षेत्र भारत के लिए अति महत्‍वपूर्ण है।

सिल्‍क रूट का जरिया रहा है अक्‍साई चिन

अक्साई चिन या अक्सेचिन कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है। ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का जरिया रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रस्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था। इतना ही नहीं पूर्व में यह मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। दरअसल, चीन ने जब 1950 के दशक में जब तिब्बत पर कब्जा किया तो वहां के कुछ हिस्‍सों में इसको लेकर विद्रोह भड़क गया। इसकी वजह से चीन और तिब्बत के बीच के मार्ग कट जाने का खतरा बन गया था। इसके समस्‍या के हल के तौर पर चीन ने शिंजियांग-तिब्बत राजमार्ग का निर्माण किया। यह मार्ग अक्साई चिन से निकलता है और चीन को पश्चिमी तिब्बत से जोड़ता था।

42,685 स्‍क्‍वायर किमी में फैला है अक्‍साई चिन

अक्साई चिन का क्षेत्रफल 42,685 स्‍क्‍वायर किमी है। भौगोलिक दृष्टि से अक्साई चिन तिब्बती पठार का भाग है और जिसे खारा मैदान भी कहा जाता है। इसकी वजह यह भी है क्‍योंकि यहां पर लोगों की बस्तियां नहीं है। इस क्षेत्र मे अक्साई चिन के नाम की झील और एक नदी है। यहां वर्षा और हिमपात ना के बराबर होता है क्योंकि हिमालय और अन्य पर्वत भारतीय मानसूनी हवाओं को यहां आने से रोक देते हैं।

अक्‍साई चीन पर हुआ भारत-चीन युद्ध

1962 के दौरान भारत और चीन के बीच हुए युद्ध का एक बड़ा कारण अक्‍साई चिन ही था। अक्साई चिन भारत और चीन के बीच चल रहे दो मुख्य सीमा विवाद में से एक है। चीन के साथ अन्य विवाद अरुणाचल प्रदेश से संबंधित है। जम्‍मू कश्‍मीर के इन दो क्षेत्रों को अलग करने वाली रेखा ही  'वास्तविक नियंत्रण रेखा' के रूप में जानी जाती है।

तवांग में मौजूद एशिया का सबसे बड़ा मठ

वहीं दूसरी ओर तवांग अरुणाचल प्रदेश की उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। तवांग की उत्तर-पूर्व दिशा में तिब्बत, दक्षिण-पश्चिम में भूटान और दक्षिण-पूर्व में पश्चिम कमेंग स्थित है। तवांग हिमालय की तराई में समुद्र तल से 3500 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। इसका नामकरण 17वीं शताब्दी में मिराक लामा ने किया था। यहां पर मोनपा जाति के आदिवासी रहते हैं। यह जाति मंगोलों से संबंधित है। यहां पर एशिया का सबसे बडा मठ तवांग मठ भी है। अपने बौद्ध मठों के लिए यह पूरे विश्व में पहचाना जाता है।

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