अब बताकर गिरेगी आकाशीय बिजली
मौसम विभाग की ओर से देश के चुनिंदा केवल 20 जगहों पर सेंसर ट्रैक प्रणाली स्थापित किये गये हैं।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। अचानक कहर मचा देने वाली आकाशीय बिजली अब बताकर गिरेगी। वक्त व जगह की इत्तला पहले ही हो जायेगी। मौसम विभाग अब केवल आंधी-तूफान और तेज गर्जना के साथ बारिश की ही चेतावनी जारी नहीं करेगा, बल्कि अब आकाश में कड़क कर धरती पर तबाही मचाने वाली आसमानी बिजली के बारे में भी पूर्वानुमान जारी कर सकता है। प्राकृतिक आपदाओं में कहर बरपाने वाली आकाशीय बिजली से सालाना औसतन ढाई हजार लोग मारे जाते हैं। जबकि मवेशियों के मारे जाने की संख्या इससे कई गुना अधिक होती है।
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ते शहरीकरण और गगनचुंबी इमारतों के निर्माण के चलते आकाशीय बिजली का खतरा और बढ़ गया है। इन इमारतों के निर्माण के समय ही इनमें आकाशीय बिजली पकड़ने की प्रणाली से लैस किया जाना चाहिए। लेकिन आंकड़े कुछ और भी कहानी कहते हैं, जिसमे आकाशीय बिजली से मारे जाने वालों में सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अथवा मवेशी ज्यादा हैं। इमारतों के ढहने से भी मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है।
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आकाशीय बिजली अथवा बज्रपात जैसी आपदा को रोक पाना अथवा इसका पूर्वानुमान फिलहाल आसान नहीं है। देश में आकाशीय बिजली चमकने और गिरने का पूर्वानुमान करने के लिए मौसम विभाग की ओर से देश के चुनिंदा केवल 20 जगहों पर सेंसर ट्रैक प्रणाली स्थापित किये गये हैं। सूत्रों के मुताबिक मौसम विभाग और भारतीय वायुसेना के बीच बज्राघात से संबंधित सूचनाओं के आदान प्रदान करने का फैसला किया गया है। वायु सेना के अपने विभिन्न केंद्रों पर लगभग डेढ़ सौ सेंसर स्थापित हैं, जो उनकी अपनी सुरक्षा के लिहाज से लगाये गये हैं। सेंसर से मिलने वाली पूर्व सूचना से इस प्राकृतिक आपदा से निपटने में मदद मिलेगी।
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पूर्वानुमान की वजह से इस गंभीर आपदा में मारे जाने वालों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी। मौसम विभाग अभी आकाशीय बिजली गिरने की कोई वार्निंग जारी नहीं करता है। मौसम विभाग की ओर से महाराष्ट्र में कुछ सेंसर ट्रैकिंग नेटवर्क स्थापित किये गये हैं। इस नेटवर्क से आकाशीय बिजली गिरने के वास्तविक समय से एक घंटे पहले इसकी चेतावनी जारी की जा सकती है। मौसम विभाग की पूरी कोशिश है कि इस एक घंटे पहले दी जाने वाली चेतावनी को बढ़ाकर 24 घंटे पहले कर दिया जाए।
आकाशीय बज्राघात में मृत्यु दर बहुत अधिक है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस दर को घटाने के लिए सेंसर ट्रैकिंग प्रणाली का विस्तार कर उसे और चौकस व मजबूत बनाने पर विचार कर रहा है। मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक एलएस राठौड़ ने बताया कि एयरफोर्स के आंकड़ों से बहुत फायदा होगा। वैसे मौसम, क्षेत्र और उपग्रह से मिलने वाली सूचनाओं से जोखिम का पूर्वानुमान लगाना आसान हो सकता है।
वर्ष 1967 से 2016 तक प्राकृतिक आपदाओं में कुल जितने लोगों की मौतें हुई हैं, उनमें 39 फीसद बज्राघात से हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2014 के आंकड़ों के मुताबिक 2582 लोग बिजली गिरने से मारे गये थे, जबकि 2013 में 2833 लोग इसके शिकार हुए थे। आकाशीय बिजली गिरने के मामले में अत्यधिक जोखिम वाला क्षेत्र पूर्वोत्तर के राज्य हैं। इन राज्यों में औसतन साल के 80 दिन बिजली गिरती है। यहां पर आसमानी बिजली का पूर्वानुमान लगाने के लिए 15 करोड़ की लागत से 30 लाइटिंग डिटेक्टिंग सेंसर लगाने को मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है।