एस.के. सिंह, नई दिल्ली। ऐसा कम ही होता है कि वैश्विक संगठन की बैठक में हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर बातचीत बेनतीजा रही हो। हर दो साल बाद होने वाले विश्व व्यापार संगठन के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में इस बार कुछ ऐसा ही हुआ। कृषि सब्सिडी, फिशरीज सब्सिडी, ई-कॉमर्स जैसे मुद्दे भारत के लिए काफी मायने रखते हैं, लेकिन इन पर एक राय नहीं बन सकी। डिस्प्यूट सेटलमेंट बॉडी में जजों की नियुक्ति और निवेश के मसले पर भी तमाम देश किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके। तय शेड्यूल से एक दिन ज्यादा चली बैठक (26 फरवरी से 1 मार्च), जिसमें 100 से ज्यादा देशों के विदेश व्यापार मंत्रियों ने भाग लिया, में सहमति सिर्फ इस बात पर हुई कि विवाद वाले सभी मुद्दों पर बातचीत जारी रहे। एक मात्र उपलब्धि सर्विसेज के व्यापार पर कही जा सकती है, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार की लागत 125 अरब डॉलर कम होगी।

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166 सदस्यों वाला विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) 1 जनवरी 1995 को अस्तित्व में आया था। इसका पुराना रूप जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (गैट) था। भारत शुरू से इसका सदस्य है। विश्व व्यापार में बेहतर व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से इसका गठन हुआ था। फ्री ट्रेड यानी मुक्त व्यापार इसका मुख्य एजेंडा है। मुक्त व्यापार समर्थकों का कहना है कि इससे करोड़ों लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि इससे गरीब-अमीर देशों के बीच अंतर बढ़ा है।

कृषिः भारत के लिए पब्लिक स्टॉक होल्डिंग का मुद्दा अहम

भारत के लिए कृषि सब्सिडी और पब्लिक स्टॉक होल्डिंग बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत 2022 में दुबई में हुई 12वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में ही इसका समाधान चाहता था, लेकिन इस बार भी कोई समाधान नहीं निकल सका। डब्लूटीओ के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 से 2022 के दौरान कृषि उत्पादों का विश्व व्यापार करीब पांच गुना बढ़ा है। यह 300 अरब डॉलर से बढ़कर 1,488 अरब डॉलर हो गया। ओईसीडी का आकलन है कि 2020-22 के दौरान कृषि को करीब 630 अरब डॉलर की सब्सिडी दी गई।

वर्ष 1994 में उरुग्वे दौर की वार्ता में कृषि पर समझौता (एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर) हुआ था। खाद्य एवं कृषि उत्पादों पर डब्लूटीओ सदस्यों में बातचीत वर्ष 2000 में शुरू हुई। खाद्य सुरक्षा और मानवीय मदद जैसे मसलों पर तो सहमति बनी लेकिन कई महत्वपूर्ण विवादास्पद मुद्दों पर अभी तक एक राय नहीं बन पाई है। कृषि समझौते के मुताबिक सरकार बाजार मूल्य पर कितना खाद्यान्न खरीदेगी इसकी कोई सीमा नहीं है, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के जरिए किसानों को मदद देने की सीमा है।

भारत में खाद्य सुरक्षा के लिहाज से सरकारी स्टॉक होल्डिंग का बड़ा महत्व है। इसी से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) यानी राशन में अनाज दिया जाता है। डब्लूटीओ नियम के अनुसार सदस्य देश किसी फसल पर जो सब्सिडी देंगे, वह उस उपज के मूल्य के 10% से अधिक नहीं होगा। लेकिन इसके लिए 1986-88 की अंतरराष्ट्रीय कीमत को रेफरेंस (संदर्भ मूल्य) माना गया है। एमएसपी और रेफरेंस प्राइस के अंतर को सब्सिडी माना जाता है।

भारत का पक्षः समस्या यह है कि रेफरेंस प्राइस चार दशक पुराना होने के कारण अंतर बहुत हो जाता है। इसलिए भारत का वाजिब तर्क है कि सब्सिडी गणना में संशोधन किया जाए। इसके लिए या तो नया संदर्भ मूल्य तय हो जाए अथवा सब्सिडी की गणना में महंगाई को भी शामिल किया जाए। भारत के इस तर्क को विकसित देश स्वीकार नहीं कर रहे हैं। विकसित देशों का पक्ष है कि इस तरह दी गई सब्सिडी कृषि व्यापार को प्रभावित करती है।

भारत 2018 से 2022 तक चावल का सबसे बड़ा निर्यातक था। वर्ष 2022 में विश्व चावल निर्यात में भारत की 40.6% हिस्सेदारी थी। थाईलैंड और वियतनाम दूसरे तथा तीसरे स्थान पर थे। भारत ने डब्लूटीओ को बताया है कि वर्ष 2019-20 में 46.07 अरब डॉलर का चावल उत्पादन हुआ था और सब्सिडी की राशि 6.31 अरब डॉलर थी। इस तरह सब्सिडी राशि उपज की वैल्यू का 13.7% थी।

भारत के विरोध के कारण ही 2013 में बाली मंत्रिस्तरीय बैठक में अंतरिम ‘पीस क्लॉज’ लाया गया था। इसके तहत कोई भी देश पब्लिक स्टॉक होल्डिंग पर विवाद निस्तारण व्यवस्था के तहत किसी को चुनौती नहीं देगा। इसके साथ एक स्थायी समाधान लाने पर भी सहमति बनी थी। दो साल बाद नैरोबी मंत्रिस्तरीय बैठक में इस मुद्दे पर अलग बातचीत पर तमाम देश राजी हुए, लेकिन अब तक समाधान नहीं निकल सका है। भारत बार-बार स्थायी समाधान की बात कर रहा है।

एक और प्रावधान है कि सार्वजनिक स्टॉक से अनाज का निर्यात नहीं किया जा सकता। कृषि समझौते पर नजर रखने वाली डब्लूटीओ की समिति में अनेक देश भारत से इस विषय पर स्पष्टीकरण मांग रहे हैं कि सरकार जो अनाज खरीदती है, वह आखिरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में तो नहीं पहुंच रहा है। भारत इस बात से हमेशा इनकार करता रहा है। इस बैठक में थाईलैंड की प्रतिनिधि पी.डब्लू. पिटफील्ड ने कहा कि भारत एमएसपी पर जो चावल खरीदता है वह निर्यात बाजार में चला जाता है, जिसका भारत ने कड़ा प्रतिवाद किया। थाईलैंड सरकार के पास भारत के विरोध जताने के बाद थाई सरकार ने अपना प्रतिनिधि बदल दिया। कृषि निर्यात वाले 19 देशों का एक समूह है जिसे केयर्न्स ग्रुप कहा जाता है। थाईलैंड भी इसका सदस्य है।

13वीं मंत्रिस्तरीय बैठक शुरू होने से पहले ही इसके संकेत मिलने लगे थे कि इस बार भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा। बैठक से पहले, 26 फरवरी को डब्लूटीओ की कृषि एवं कमोडिटी डिवीजन के डायरेक्टर एडविनी केसी ने कहा था कि कृषि पर किसी फैसले की उम्मीद नहीं है, क्योंकि विभिन्न देशों की राय एक-दूसरे से काफी अलग है। उन्होंने कहा कि सदस्य देश ऐसा वर्क प्लान चाहते हैं जिस पर अगली मंत्रिस्तरीय बैठक में चर्चा हो सके।

अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों का कहना है कि सब्सिडी से संबंधित डब्लूटीओ नियमों पर बातचीत को अलग से नहीं देखा जा सकता। इसके साथ कृषि क्षेत्र को घरेलू मदद कम करने और मार्केट एक्सेस बढ़ाने का मसला भी जुड़ा है। मार्केट एक्सेस में कृषि उत्पादों के आयात पर अधिक टैरिफ का मसला है। नवंबर 2023 में अर्जेंटीना, ब्राजील, पराग्वे और उरुग्वे कृषि बाजार में पहुंच बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव लेकर आए थे।

फिशरीजः सब्सिडी पर नहीं बनी बात

सम्मेलन में फिशरीज सब्सिडी एग्रीमेंट पर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। यह जरूर हुआ कि सम्मेलन खत्म होने से पहले दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल होने पर राजी हो गया। डब्लूटीओ का आकलन है कि 1974 में मछलियों की 10% ओवर फिशिंग होती थी, अब यह 34% होने लगी है। यह दुनिया में मछलियों के स्टॉक के लिए बड़ा खतरा बन गया है। कहने का मतलब यह है कि मछलियां जितनी बड़ी मात्रा में पकड़ी जा रही हैं, उनका उत्पादन उस अनुपात में नहीं हो रहा है। मछली पकड़ने पर ग्लोबल सब्सिडी इस समय 35 अरब डॉलर है। इसमें से 22 अरब डॉलर की सब्सिडी ओवर फिशिंग के लिए दी जा रही है।

इस मुद्दे पर 2001 के दशक की शुरुआत में ही चर्चा शुरू हुई थी। फिशरीज सब्सिडी पर समझौते को वर्ष 2022 में 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में अंतिम रूप दिया गया था। यह समझौता तब अमल में आएगा जब डब्लूटीओ के दो-तिहाई सदस्य देश, अर्थात कम से कम 110 सदस्य इसके प्रोटोकॉल को औपचारिक रूप से स्वीकार करेंगे। अभी तक 71 देश इसे स्वीकार कर चुके हैं। यानी समझौता प्रभावी होने के लिए कम से कम 39 और देशों की सहमति जरूरी है।

पर्यावरणविदों का कहना है कि मछलियों की घटती संख्या रोकने के लिए मछली पकड़ने पर सब्सिडी बंद करना जरूरी है। फिशरीज पर सबसे अधिक सब्सिडी चीन देता है। इस पर सब्सिडी समझौते में ‘नुकसानदायक सब्सिडी’ पर अंकुश लगाने की बात कही गई है। इसमें अवैध (इलीगल), बिना बताए (अन-रिपोर्टेड) और अनियमित (अन-रेगुलेटेड) यानी ‘आईयूयू फिशिंग’ पर रोक लगाने की बात है। इसके अलावा अत्यधिक मछली पकड़ने और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए सब्सिडी पर भी रोक लगाने का प्रस्ताव है। फिशरीज सब्सिडी पर भी भारत का एक मजबूत पक्ष है। डब्लूटीओ महानिदेशक ओकोंजो इवीला ने कहा कि दुनिया में 26 करोड़ लोगों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। भारत में भी यह करीब 90 लाख लोगों के जीवन-यापन का साधन है।

भारत का पक्षः भारत का कहना है कि कॉमर्शियल हितों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करना जरूरी है, क्योंकि यह विश्व स्तर पर मछलियों के स्टॉक के लिए खतरा बन रहा है। लेकिन छोटे मछुआरों को सब्सिडी जारी रहनी चाहिए, जिन्होंने आमतौर पर पर्यावरण की दृष्टि से सस्टेनेबल तरीके अपनाए हैं। सब्सिडी को जारी रखना छोटे मछुआरों की आजीविका की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत के छोटे मछुआरे न तो अवैध गतिविधियों में शामिल होते हैं, न ही वे अत्यधिक मछली पकड़ते हैं।

ई-कॉमर्सः कस्टम ड्यूटी पर रोक फिर दो साल बढ़ी

सभी देश ई-कॉमर्स में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन (जैसे फिल्म) पर कस्टम ड्यूटी नहीं लगाने पर मोरेटोरियम यानी रोक दो साल के लिए आगे बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। यह रोक 14वीं मंत्रिस्तरीय बैठक या 31 मार्च 2026 तक जारी रहेगी। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन क्रॉस बॉर्डर ई-कॉमर्स पर ड्यूटी नहीं चाहते हैं, जबकि भारत को लगता है कि विकसित देशों से डिजिटल आयात पर ड्यूटी नहीं लगाने से राजस्व का नुकसान होगा। भारत ने ई-कॉमर्स ट्रेड की स्पष्ट परिभाषा तय करने की भी मांग की है। इसने ग्लोबल ई-कॉमर्स बिजनेस में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभुत्व कम करने के लिए सदस्य देशों से सहयोग भी मांगा है। भारत का कहना है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ा कर और विभिन्न देशों की रेगुलेटरी अथॉरिटी के बीच समन्वय से इसे हासिल किया जा सकता है।

मई 1998 में डब्लूटीओ की दूसरी मंत्रिस्तरीय बैठक में ई-कॉमर्स को पहली बार शामिल किया गया था। तब ग्लोबल ई-कॉमर्स पर एक डिक्लेरेशन भी एडॉप्ट किया गया। उस बैठक में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर अगले सम्मेलन तक कस्टम ड्यूटी नहीं लगाने पर सहमति बनी थी। उसके बाद की बैठकों में मोरेटोरियम की अवधि बढ़ती गई। मोरेटोरियम समर्थक देशों का एक ‘फ्रेंड्स ऑफ ई-कॉमर्स’ गुट भी है।

रिफॉर्मः अपीलेट बॉडी को जजों का इंतजार

डिस्प्यूट सेटलमेंट यानी विवाद निस्तारण के मुद्दे पर भी बातचीत जारी रखने का फैसला किया गया। इस मसले पर अधिकारी स्तर पर बातचीत जारी रहेगी ताकि इस साल के अंत तक किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके। डब्लूटीओ में व्यापार विवाद का निस्तारण करने वाली शीर्ष बॉडी को अपीलेट बॉडी कहा जाता है। यह 2019 से लगभग बंद पड़ी है क्योंकि अमेरिका नए जजों की नियुक्ति का विरोध कर रहा है। सुनवाई नहीं होने के कारण अरबों डॉलर के करीब 30 विवाद लंबित पड़े हैं। अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि इसी वजह से वह कोई नीतिगत पहल करने से बच रहा है।

निवेशः चीन की अगुवाई वाले प्रस्ताव के खिलाफ भारत

एफडीआई में अफसरशाही कम करने और निवेश का वातावरण बेहतर बनाने पर 125 देश सहमत हुए हैं। बैठक के तीसरे दिन चीन की अगुवाई में इन्वेस्टमेंट फैसिलिटेशन डेवलपमेंट (आईएफडी) एग्रीमेंट नाम से इसका प्रस्ताव लाया गया, जिसका भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विरोध किया। भारत का तर्क है कि एफडीआई ट्रेड का मुद्दा नहीं, यह डब्लूटीओ के दायरे से बाहर है। भारत का यह भी कहना है कि इस पर सभी सदस्य देशों की एक राय नहीं है, इसलिए यह औपचारिक समझौते की शर्त पूरी नहीं करता।

भारत ने दिसंबर 2023 में भी डब्लूटीओ की जनरल काउंसिल मीटिंग में आईएफडी का विरोध किया था। निवेश प्रक्रिया और सीमा पार निवेश आसान बनाने के तथाकथित उद्देश्य से आईएफडी पर पहला प्रस्ताव 2017 में लाया गया था। हालांकि इसके पक्ष में ज्यादातर वही देश हैं जो चीन के निवेश पर काफी हद तक निर्भर हैं या जिनके पास बड़ा सरकारी (सॉवरेन) फंड है। ऐसे अनेक देशों में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट के तहत निवेश कर रखा है।

डब्लूटीओ में सेवाओं के व्यापार से जुड़े मुद्दे पर सहमति बनी है। इसके तहत रेगुलेटरी प्रक्रियाओं को आसान किया जाएगा। माना जा रहा है कि इससे व्यापार की लागत 125 अरब डॉलर कम होगी। विश्व जीडीपी में सर्विसेज की दो-तिहाई हिस्सेदारी है। नौकरियों में इसका हिस्सा लगभग आधा है। मंत्रियों की बैठक में पहली बार पर्यावरण को लेकर पहल हुई। इसके तहत प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण, पर्यावरण की सस्टेनेबिलिटी और जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी कम करने पर आगे बातचीत होगी।

डब्लूटीओ में विश्व स्तर पर समझौतों में अक्सर अड़चन आती रही है। दरअसल, डब्लूटीओ के नियम बदलने के लिए आम सहमति चाहिए जबकि कोई भी एक देश समझौते को ब्लॉक कर सकता है। फ्री ट्रेड डब्लूटीओ का मुख्य एजेंडा है, लेकिन हाल के वर्षों में अनेक देशों ने संरक्षणवादी कदम उठाए हैं। स्विट्जरलैंड स्थित संस्था ग्लोबल ट्रेड अलर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में विभिन्न देशों ने 3488 संरक्षणवादी कदम उठाए। डब्लूटीओ के पूर्व डायरेक्टर कीथ रॉकवेल के अनुसार यहां बातचीत छोटे-छोटे गुटों में बंट गई है और अनेक देशों को लगता है कि यही भविष्य है।