नई दिल्ली, विवेक तिवारी। आपने यह तो पढ़ा होगा कि ज्यादा मानसिक तनाव से दिल की बीमारियां और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि ज्यादा मानसिक तनाव या चिंता कैंसर का खतरा बढ़ाती है? हाल के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि कैंसर के ठीक हो चुके मरीज भी अगर बहुत ज्यादा चिंता करते हैं, तो उनमें दोबारा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। कैंसर पर शोध करने वाली अमेरिकी संस्था कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी (सीएसएचएल ) के वैज्ञानिकों ने पाया कि मानसिक तनाव के कारण न्यूट्रोफिल नामक सफेद रक्त कोशिकाएं चिपचिपी वेब या जाल जैसी संरचना बनाती हैं जो शरीर के ऊतकों को कैंसर के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती हैं। ऐसे में ज्यादा चिंता करने से पूरे शरीर में कैंसर फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

सीएसएचएल के सहायक प्रोफेसर मिकाला एगेब्लैड की प्रयोगशाला में शोधकर्ता के तौर पर काम कर चुके ज़ू-यान कहते हैं कि न्यूट्रोफिल सामान्य तौर पर हमारे शरीर को सूक्ष्मजीवों के हमले से बचाता है। लेकिन ज्यादा मानसिक तनाव लेने पर ये बाह्य कोशिकीय जाल जैसी संरचनाएं बनाता है जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। कैंसर रोगियों में तनाव एक ऐसी चीज़ है जिससे हम वास्तव में नकार नहीं सकते हैं। कैंसर का इलाज हो जाने के बाद भी मरीज अपनी बीमारी या बीमा या परिवार के बारे में सोचना बंद नहीं कर पाता है। इसलिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि ज्यादा तनाव हमारे शरीर को किस तरह नुकसान पहुंचा सकता है।

इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कैंसर के मामले बढ़ने की दर काफी चिंताजनक है। अगले 5 वर्षों में देश में कैंसर मरीजों की संख्या 12 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है। वहीं अगर पूरी दुनिया की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की कैंसर पर काम करने वाली एजेंसी के ताजा अनुमान के मुताबिक 2050 में 35 मिलियन से अधिक नए कैंसर मामले दुनियाभर में देखे जाएंगे, ये 2022 में अनुमानित 20 मिलियन मामलों से 77% अधिक है। 2022 में, लगभग 20 मिलियन नए कैंसर के मामलों में से 9.7 मिलियन की मौत हुई। कैंसर के इलाज के बाद 5 वर्षों के भीतर जीवित रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 53.5 मिलियन थी। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 5 में से 1 व्यक्ति को कैंसर होता है, 9 में से 1 पुरुष और 12 में से 1 महिला की इस बीमारी से मृत्यु हो जाती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2022 में दुनिया में सबसे अधिक फेफड़े, स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर के मामले देखे गए।

विशेषज्ञ मानते हैं कि आप क्या सोचते हैं और आप खुश हैं या दुखी हैं इसका सीधा असर आपके शरीर के सभी अंगों पर पड़ता है। नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर एसपीएस देव कहते हैं कि दिमाग और शरीर का एक गहरा संबंध होता है। दरअसल दिमाग की अवस्था के अनुसार कई तरह के न्यूरो कैमिकल्स का रिसाव होता है। इसके शरीर के अलग अलग अंगों पर असर होता है। ऐसे में अगर कोई कैंसर का मरीज ज्यादा मानसिक तनाव लेता है तो निश्चित तौर पर उसमें कैंसर ठीक होने की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है। इलाज के दौरान हम कई मामलों में देखते हैं कि जो मरीज जल्द ठीक होना चाहते हैं और बहुत तनाव नहीं लेते उनमें कैंसर ठीक होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। वहीं जो मरीज ज्यादा तनाव या अवसाद में रहते हैं उनका इलाज करने में काफी मुश्किल होती है। ज्यादा चिंता करना या तनाव लेना कैंसर को किस तरह प्रभावित करता है इस पर अभी काफी अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

आगरा के वरिष्ठ सर्जन डॉक्टर समीर कुमार कहते हैं कि कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज काफी मानसिक तनाव में रहता है। मानसिक तनाव इंसान के शरीर को कई तरह से प्रभावित करती है। इसके चलते दिल पर काफी दबाव पड़ता है। अगर किसी को मधुमेह की बीमारी है तो उसके बढ़ने का खतरा रहता है। ऐसे में ज्यादा चिंता करने या मानसिक दबाव के चलते मरीज की रिकवरी काफी धीमी हो जाती है। इसी के चलते जिन मरीजों का कैंसर का इलाज होता है उन्हें व्यायाम करने, मेडिटेशन करने, डीप ब्रीदिंग सहित अच्छा और पौष्टिक खाना खाने की सलाह दी जाती है। कैंसर पर मानसिक तनाव किस तरह काम करता है इसपर अभी काफी अध्ययन की जरूरत है।

लखनऊ स्थित मेदांता के एंडोक्राइन और ब्रेस्ट सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉक्टर अमित अग्रवाल कहते हैं कि कैंसर के मरीजों में बीमारी से लड़ने की इच्छा काफी महत्वपूर्ण होती है। अगर कोई मरीज जल्द ठीक होना चाहता है और मानसिक तनाव लेने की बजाए डॉक्टर के बताए निर्देशों का पालन करता है उसके ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। ज्यादा मानसिक तनाव लेने वाले मरीज के इलाज में काफी मुश्किल होती है। उनमें इलाज को लेकर रुचि भी कम होती है।

पैलिएटिव केयर पर जोर दिए जाने की जरूरत है 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और लम्बे समय से कैंसर पर रिसर्च कर रहे डॉक्टर राणा पी सिंह कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसके इलाज के लिए नए अस्पताल खुल रहे हैं और सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर रही है। लेकिन हमें कैंसर के इलाज के बाद मरीज की पैलिएटिव केयर पर ज्यादा जोर देना होगा। बड़ी संख्या में ऐसे मरीज जिनमें कैंसर पूरी तरह से ठीक हो गया हो उनमें भी कैंसर वापस आ जाता है। इसके लिए इलाज के बाद मरीज के देखभाल पर ज्यादा जोर दिए जाने की जरूरत है।

टाटा मेमोरियल सेंटर की 100 रुपये की गोली घटाएगी कैंसर का खतरा

टाटा मेमोरियल सेंटर मुंबई ने रेडियोलॉजी अथवा कीमोथेरेपी से सही हुए रोगियों में दोबारा कैंसर होने के खतरे को कम करने के लिए एक गोली बनाई है। इसकी कीमत लगभग 100 रुपये होगी। ये गोली कैंसर का इलाज करवा चुके रोगियों में दोबारा कैंसर की संभावना कम करेगी और कीमोथेरेपी या रेडियोथैरेपी से होने वाले साइड इफेक्ट भी 50% कम करेगी। इस शोध के लिए चूहों में मानव कैंसर कोशिकाएँ डाली गईं, जिससे उन्हें कैंसर हुआ। इसके बाद चूहों का रेडियोलॉजी, कीमोथेरेपी और सर्जरी के द्वारा इलाज किया गया। इस रिसर्च में सामने आया कि कैंसर की कोशिकाएं टूट जाती हैं, जिन्हें क्रोमैटिन कण कहा जाता है। ये कण खून के साथ शरीर के दूसरे हिस्सों में जा सकते हैं और जब वे सामान्य कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें कैंसर से संक्रमित कर सकते हैं। इस समस्या के निदान के लिए शोधकर्ताओं ने इलाज से सही चूहों को रेस्वेराट्रोल और कॉपर (तांबा) मिश्रित दवा की गोलियां दी। यह दवा जल्दी ऑक्सीजन रिलीज करती हैं। इससे क्रोमैटिन कण मर जाते हैं। यह दवा दोबारा कैंसर होने से 50% और पहली बार कैंसर होने से 30% तक बचाव करेगी। इससे मुँह और गले के कैंसर के इलाज भी हो सकेगा।