मोदी सरकार : ऊर्जा की चुनौतियां बेशुमार
नरेंद्र मोदी सरकार को बेहद खस्ताहाल और चुनौतीपूर्ण अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है, लेकिन ऊर्जा क्षेत्र में समस्याओं का सबसे बड़ा मकड़जाल है। देश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी सरकार को परंपरा से हटकर नीतियां बनानी होंगी और उनको सख्ती से लागू करना होगा। अगर नई सरकार को प्राकृतिक गैस की कीमत
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। नरेंद्र मोदी सरकार को बेहद खस्ताहाल और चुनौतीपूर्ण अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है, लेकिन ऊर्जा क्षेत्र में समस्याओं का सबसे बड़ा मकड़जाल है। देश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी सरकार को परंपरा से हटकर नीतियां बनानी होंगी और उनको सख्ती से लागू करना होगा। अगर नई सरकार को प्राकृतिक गैस की कीमत तय करनी है तो देश की बिजली कंपनियों के लिए पर्याप्त कोयले की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी है। जानकारों की राय में ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित किए बगैर भारत कभी भी अमेरिका, रूस और चीन की श्रेणी का राष्ट्र नहीं बन सकेगा।
सरकार को देश की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए न सिर्फ घर में राजनीतिक स्तर पर अपनी रणनीति बनानी होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बेहतर कूटनीतिक चाल चलनी होगी। तुर्कमेनिस्तान, ईरान या कतर से गैस पाइपलाइन भारत तक बिछाने के लिए अमेरिकी, चीन और पाकिस्तान को साधना होगा। रूस, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में तेल व गैस ब्लॉक खरीदने के लिए चीन की आक्रामक नीतियों का काट खोजना होगा।
शेल गैस तकनीकी हासिल करने के लिए अमेरिका को भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को लेकर फिर से आश्वस्त करना होगा। यही नहीं, ईरान से फिर से निर्बाध तौर पर तेल आयात शुरू हो सके, इसका समाधान भी खोजना होगा।
अब घरेलू स्तर की चुनौतियों की तरफ से रुख करते हैं। सबसे पहले मोदी सरकार को देश में निकाली जाने वाली प्राकृतिक गैस की नई कीमत तय करनी होगी। पिछली सरकार ने इसकी कीमत मौजूदा 4.2 डॉलर प्रति एमबीटीयू (गैस मापने की यूनिट) से बढ़ाकर लगभग 8.4 डॉलर प्रति एमबीटीयू करने का फैसला किया था। इसे चुनाव से पहले टाल दिया गया था। चूंकि यह फैसला कैबिनेट में हुआ था। इसलिए नई सरकार को इस पर फिर से निर्णय करना है। माना जा रहा है कि इससे देश के तेल व गैस क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सकेगा। लेकिन इसका बड़ा राजनीतिक विरोध होने के भी आसार हैं। राजनीतिक स्तर पर सरकार के लिए हर परिवार को दी जाने वाली सस्ते रसोई गैस सिलेंडर की सालाना संख्या घटाने का फैसला भी काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। इसी तरह से ग्रामीण क्षेत्र में रसोई गैस कनेक्शन देने की प्रक्रिया को तेज करनी है।
संप्रग सरकार की सुस्ती का सबसे ज्यादा असर बिजली क्षेत्र पर पड़ा है। 25 हजार मेगावॉट की गैस आधारित बिजली परियोजनाएं तैयार होने के बावजूद लटकी हुई हैं, तो 40 हजार मेगावॉट क्षमता की बिजली परियोजनाओं का भविष्य कोयले की कमी की वजह से अंधकार में है। कोयला आयात बढ़ने से बिजली दर में इजाफे की आशंका है। हालात नहीं बदले तो वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोयला आयातक बन सकता है। यह घरेलू अर्थंव्यवस्था पर बहुत बड़ा बोझ होगा। अगर ऐसा हुआ तो बिजली की पहुंच से बाहर रहने वाली मौजूदा 30 करोड़ की आबादी तक इसे पहुंचाना दूर की कौड़ी साबित होगा।
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