गुरु नरसिम्हा राव की राह पर मनमोहन
अपने राजनीतिक गुरु पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की तरह मनमोहन सिंह को भी देर-सबेर सीबीआइ के सवालों का जवाब देना पड़ सकता है। सीबीआइ के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार कोयला घोटाले में मनमोहन सिंह से पूछताछ होना तय है, पर उन्हें आशंका है कि
नीलू रंजन, नई दिल्ली। अपने राजनीतिक गुरु पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की तरह मनमोहन सिंह को भी देर-सबेर सीबीआइ के सवालों का जवाब देना पड़ सकता है। सीबीआइ के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार कोयला घोटाले में मनमोहन सिंह से पूछताछ होना तय है, पर उन्हें आशंका है कि प्रधानमंत्री रहते शायद यह अवसर नहीं मिल पाए। इस संबंध में सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने भी कहा कि वे किसी भी स्थिति से इन्कार नहीं कर रहे हैं। अभी जांच चल रही है और इसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।
जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सच्चाई यही है कि 2006 से 2009 के दौरान मनमोहन सिंह के पास कोयला मंत्रालय का प्रभार था। इसी दौरान कोयला ब्लाकों के आवंटन में गड़बड़ी हुई। हो सकता है कि प्रधानमंत्री को इन आवंटनों के बारे में कोई जानकारी नहीं हो, लेकिन सीबीआइ के सामने उन्हें यह साबित करना होगा। उन्होंने कहा कि कोयला ब्लाकों के आवंटन का फैसला भले ही स्क्रीनिंग कमेटी ने किया हो, लेकिन उस पर अंतिम मुहर कोयला मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने ही लगाई थी। इसी आधार पर जांच अधिकारी ने प्रधानमंत्री से पूछताछ को जरूरी बताया है, लेकिन सीबीआइ निदेशक ने फिलहाल इसकी अनुमति देने से इन्कार कर दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के कारण सीबीआइ निदेशक के लिए लंबे समय तक इसे टालना संभव नहीं होगा।
सीबीआइ अधिकारियों को आशंका है कि नरसिम्हा राव की तरह ही प्रधानमंत्री रहते शायद मनमोहन सिंह से पूछताछ की इजाजत नहीं मिले। वर्ष 1993-94 में हर्षद मेहता घूस कांड की जांच करने वाले सीबीआइ के तत्कालीन संयुक्त निदेशक बीआर लाल ने प्रधानमंत्री से पूछताछ की जरूरत बताई थी। शेयर घोटाले के आरोपी हर्षद मेहता ने कहा था कि उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को एक करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। बाद में हरियाणा के पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए लाल ने अपनी किताब 'हू ओन्स सीबीआइ : द नैकेड ट्रुथ' में लिखा कि नरसिम्हा राव को पूछताछ से बचाने के लिए उन्हें केस की निगरानी से हटा दिया गया।
हर्षद मेहता मामले में नरसिम्हा राव भले ही सीबीआइ पूछताछ से बच गए हों, लेकिन 1993 में अविश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देने के मामले में सीबीआइ ने प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उनसे पूछताछ की थी। यही नहीं, जांच के बाद इस मामले में सीबीआइ ने राव के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की थी।
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