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महाराष्ट्र भाजपा को चाहिए नई पीढ़ी के 'माधव'

'माधव' यानी माली, धनगड़ और वंजारी समुदायों की संयुक्त ताकत। इसी ताकत के सहारे महाराष्ट्र में एक बार सत्ता पा चुकी भाजपा को दुबारा सत्ता पाने के लिए फिर से यही समीकरण नई पीढ़ी के नेताओं में तलाशना होगा। ब्राह्मणों-बनियों की पार्टी समझी जानेवाली जनसंघ का जब 1

By Edited By: Published: Sat, 07 Jun 2014 11:33 AM (IST)Updated: Sat, 07 Jun 2014 11:34 AM (IST)
महाराष्ट्र भाजपा को चाहिए नई पीढ़ी के 'माधव'

मुंबई, [ओमप्रकाश तिवारी]। 'माधव' यानी माली, धनगड़ और वंजारी समुदायों की संयुक्त ताकत। इसी ताकत के सहारे महाराष्ट्र में एक बार सत्ता पा चुकी भाजपा को दुबारा सत्ता पाने के लिए फिर से यही समीकरण नई पीढ़ी के नेताओं में तलाशना होगा।

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ब्राह्मणों-बनियों की पार्टी समझी जानेवाली जनसंघ का जब 1980 में मुंबई में भारतीय जनता पार्टी के रूप में उदय हुआ तो उसने पिछड़े वर्गो के ऐसे कई नेताओं को जोड़ने की पहल की, जिन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में इससे पहले हाशिए पर रखा गया था। ये पहल करते हुए भाजपा ने माली समाज के ना.सा.फरांदे, धनगड़ समाज के अन्ना डांगे एवं वंजारी समाज के गोपीनाथ मुंडे को आगे बढ़ाया। महाराष्ट्र में माली तीन फीसद, धनगड़ चार फीसद एवं वंजारी 1.5 फीसद हैं। गोपीनाथ मुंडे के नेतृत्व मेंइन नेताओं को आगे बढ़ाने से भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के साथ इनकी ताकत रंग लाई और 1995 में उसे शिवसेना के साथ गठबंधन करके सत्ता में आने का मौका मिला।

2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा का यह समीकरण ध्वस्त सा नजर आने लगा है। इस वर्ग के जिन नेताओं को जोड़कर भाजपा ने कभी 'माधव' समीकरण खड़ा किया था, उसके अधिसंखय नेता या तो अब नहीं हैं, अथवा वृद्धावस्था के कारणसक्त्रिय राजनीति से अवकाश ले चुके हैं। अब मुंडे के निधन ने इस समीकरण को लगभग ढहा ही दिया है। हालांकि भाजपा का प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से होने का लाभ पार्टी को आामी विधानसभा चुनाव में अवश्य मिलेगा। लेकिन राज्य स्तर पर भाजपा के पुराने माधव समीकरण की कमजोरी भाजपा के लिए चिंता का बड़ा कारण है।

मुंडे के वंजारी समुदाय की कमी कुछ हद तक उनकी बेटी पंकजा से पूरी हो सकती है। लेकिन शिवसेना से अधिक सीटें जीतकर मुख्यमंत्री पद वह तभी हासिल कर सकती है, जब वह अपना पुराना समीकरण मजबूत करने के लिए माली, धनगड़, कुणबी, कोमटी आदि समुदायों के साथ पिछड़े वर्गो की अन्य जातियों को अपने साथ जोड़ने की पहल करे। क्योंकि राज्यके 31 फीसद मराठा मतदाताओं पर मराठा छद्दप शरद पवार के साथ-साथ मुखयमंद्दी पृथ्वीराज चह्वाण एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण की पकड़ मानी जाती है। यह समुदाय भाजपा का वोटबैंक कभी नहीं बन सकता।

पढ़ें: महाराष्ट्र में भाजपा का ओबीसी चेहरा थे मुंडे


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