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भारत-ईरान नई कहानी लिखने को तैयार, मोदी की यात्रा क्यों है खास?

पीएम मोदी की ईरान यात्रा काफी अहम है। दोनों देश एक नई कहानी लिखने को तैयार हैं। भारत और ईरान के रिश्तों पर दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sun, 22 May 2016 09:52 AM (IST)Updated: Sun, 22 May 2016 02:28 PM (IST)

नई दिल्ली(जेएनएन)। भारत और ईरान के बीच रिश्ते सदियों पुराने हैं। समय के साथ साथ दोनों देशों के बीच रिश्तों में उतार-चढाव भी आते रहे हैं। 21 वीं सदी के पहले दशक में वाजपेयी सरकार के दौरान रिश्तों को और मजबूत बनाने की दिशा में कुछ अहम फैसले किए गए। इन प्रयासों को आगे बढा़ने का काम यूपीए सरकार के दौरान भी हुआ। लेकिन ईरान के परमाणु कार्यक्रमों की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाबंदियों का असर दोनों देशों के बीच संबंधों पर भी पड़ा। हालांकि भारत सरकार ने साफ कर दिया था कि ईरान के साथ उसके संबंधों में किसी तरह की खटास नहीं है।

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दो दिवसीय यात्रा पर आज तेहरान पहुंचेंगे मोदी

चाबहार परियोजना

मई 2014 में भारत और ईरान ने संयुक्त रूप से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया था कि जब ईरान के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटा लिए जाएंगे तो दोनों संयुक्त रूप से चाबाहर बंदरगाह का निर्माण करेंगे।भारत ने संकेत दिया है कि वह इस उद्देश्य के लिए करीब 20 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश करने का इच्छुक है।

दोनों पक्ष बंदरगाह पर भारत को दो डॉक 10 साल के लिए लीज पर देने को राजी हुए थे। यह ऐसा कदम है जिससे भारत का कच्चे तेल और यूरिया आयात की परिवहन लागत 30 फीसदी कम हो जाएगी।

चाबाहर ओमान की खाड़ी में स्थित है और पाकिस्तान की सीमा से लगा है। इस बंदरगाह को बनाने के भारत के कदम से भारत पाकिस्तान को चकमा देते हुए अफगानिस्तान के साथ-साथ मध्य एशिया से रणनीतिक संपर्क बहाल कर लेगा। इसके अलावा चीन की मदद से पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट का भी मुकाबला किया जा सकेगा।

भारत, ईरान और अफगानिस्तान का त्रिगुट

पीएम मोदी के दौरे के समय अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घानी भी तेहरान में रहेंगे। ताकि चाबाहर बंदरगाह के बारे में त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर कर सकें। अप्रैल में हुए करार के मुताबिक भारत को इस बंदरगाह के जरिए अफगानिस्तान तक पहुंचने की इजाजत होगी। इस मार्ग से भारतीय सामान को पाकिस्तानी सीमा से परहेज करते हुए अफगानिस्तान पहुंचाने की सुविधा मिल जाएगी। चाबहार बंदरगाह सहित अफगान की सीमा तक सड़क और रेलवे का विकास होने से अफगानिस्तान और पूरे मध्य एशिया में भारत की पहुंच सुनिश्चित होगी। भारत पहले ही ईरान-अफगान सीमा पर जरांग से दिलराम तक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 200 किमी से ज्यादा लंबी सड़क बना चुका है।

मजबूत ईरान, मजबूत भारत

ईरान के खिलाफ अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति में थोड़ी गिरावट आई थी। लेकिन अब सारे प्रतिबंध हटा लिए गए हैं। लिहाजा ईरान के पेट्रो केमिकल सेक्टर में भारत की भागीदारी के अवसर बढ़ गए हैं। उम्मीद है कि कुछ पुरानी समस्याएं खासकर फरजाद ऑयलफील्ड पर भारत के नियंत्रण संबंधी दिक्कतें दूर कर ली जाएंगी। प्रतिबंधों के हटने के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे मजबूत होगी। ईरान में बदले माहौल ने भारतीय निर्यात के लिए बड़े अवसर खोले हैं। भारतीय कंपनियों को ईरान के बाजार में प्रभावी रूप से कदम बढ़ाने की जरूरत है। भारतीय कारोबारियों के प्रयासों का मोदी ने हमेशा ही समर्थन किया है। अब भारत की आर्थिक कूटनीति का परिणाम निर्यात में बढ़ोतरी के रूप में दिखना चाहिए।

आतंक के खिलाफ साझा लडाई

भारत और ईरान पश्चिम एशिया में स्थिरता वापस लाना और आइएस जैसे आतंकी समूह का खात्मा करना चाहेंगे। ईरान परमाणु समझौते के बाद इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। लेकिन सऊदी अरब के नेतृत्व वाले अरब देश तुर्की की तरह ही उसका विरोध कर रहे हैं। मोदी संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का दौरा कर चुके हैं। खाड़ी के दूसरे देशों के साथ-साथ इन दोनों देशों में भी भारत के हित निहित हैं। उन दौरों के वक्त दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और इस क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बहाली की दिशा में सहयोग देने सहित सभी क्षेत्रों में भारत से मजबूत संबंध विकसित करने के साफ संकेत दिए थे।

ईरान के साथ अरब देशों को भी होगा साधना

ईरान पर लगे तमाम प्रतिबंध खत्म हुए और दूसरे देशों से उसके व्यापार आरंभ हुए। अब यूरोप और ईरान के दूसरे सहयोगियों में काफी उत्साह है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को लेकर। इससे ईरान के आत्मविश्वास में इजाफा हुआ है। उसे लगता है कि इस तरह वह इस क्षेत्र में स्वयं को न सिर्फ खड़ा करने, बल्कि शिया मुस्लिमों के हितैषी के रूप में पेश करने में सफल होगा। यमन में ईरान का प्रभाव बढ़ने के भय ने सऊदी अरब को वहां सशस्त्र हस्तक्षेप करने का अवसर दिया और अब वह हिंसा से ग्रस्त है। यह सब इजरायल समेत दूसरे सुन्नी अरब देशों और सऊदी अरब के साथ ईरान के सीधे टकराव का कारण बना है।

ईरान ने पाक को सुनायी खरी-खरी

हाल ही में ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने पाकिस्तान का दौरा किया था। उसी दौरान पाकिस्तान यह दुष्प्रचार कर रहा था कि उसने चाबहार में सक्रिय जिस रिटायर्ड भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को गिरफ्तार किया है वह भारत का जासूस है जो बलूचिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा था। रुहानी के दौरे के वक्त ही उनसे पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ ने कथित रूप से यह शिकायत की कि भारत पाकिस्तान में अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए ईरान की जमीन का इस्तेमाल कर रहा है। रुहानी ने न सिर्फ इसे नजरअंदाज किया, बल्कि पाकिस्तान के रवैये पर नाराज भी हुए।

हजारों साल पुराने हैं भारत-ईरान के रिश्ते, पीएम मोदी की यात्रा से मिलेगी मदद


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