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आरुषि-हेमराज हत्याकांड: कौन देगा इन अनसुलझे सवालों का जवाब

आरुषि हत्याकांड की जांच पहले उत्तर प्रदेश पुलिस और फिर सीबीआइ की दो अलग-अलग टीमों ने किया, इसके बावजूद इस केस में इतनी खामियां रहीं कि कानून का आम जानकार भी हैरान है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Mon, 16 Oct 2017 08:47 AM (IST)Updated: Mon, 16 Oct 2017 01:19 PM (IST)
आरुषि-हेमराज हत्याकांड: कौन देगा इन अनसुलझे सवालों का जवाब

अवधेश कुमार। आरुषि और हेमराज हत्याकांड से बड़ा कौतूहल वाला मामला आज तक भारत में नहीं देखा गया। इसकी जांच पहले उत्तर प्रदेश पुलिस फिर सीबीआइ की दो अलग-अलग टीमों ने की, इसके बावजूद इसमें इतनी खामियां रहीं कि कानून का आम जानकार भी हैरान है। राजेश तलवार और नूपुर तलवार के बरी होने के बाद सवाल उठता है कि आखिर आरुषि और हेमराज की हत्या किसने की? सीबीआइ की विशेष न्यायालय ने 28 नवंबर 2013 को तलवार दंपति को हत्याओं का दोषी माना और उन्हें आजीवन कारावास दिया था। मगर तलवार दंपति का रिहा होना सीबीआइ के लिए झटका है।

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यह कहना उचित नहीं है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलवार दंपति को निर्दोष करार दिया है। वास्तव में, न्यायालय ने साफ कहा है कि उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जा रहा है। सीबीआइ कोर्ट ने जिन आधारों पर राजेश और नूपुर को सजा सुनाई थी, हाईकोर्ट ने उसे अपर्याप्त माना है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का कहना है कि मौजूद सबूतों के आधार पर तलवार दंपति को दोषी ठहराना कठिन है। फैसले के अनुसार तलवार दंपति को दोषी ठहराने के लिए परिस्थितियां और साक्ष्य काफी नहीं हैं। इस मामले का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था। इसलिए सीबीआइ के सामने केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य का ही आधार था।

जिन सबूतों ने सजा दिलायी, वही सबूत हाईकोर्ट में खारिज

सीबीआइ न्यायालय ने तलवार दंपति को सजा सुनाते वक्त परिस्थितिजन्य सबूतों का ही हवाला दिया था। मगर अब उच्च न्यायालय ने इसे पलट दिया है। मगर हाईकोर्ट ने यह नहीं कहा है कि तलवार दंपति हत्या के दोषी नहीं हैं। न्यायालय द्वारा संदेह का लाभ देकर बरी किए जाने के बावजूद तलवार दंपति संदिग्ध बने रहेंगे। 16 मई 2008 को नोएडा के जलवायु विहार स्थित घर में 14 साल की आरुषि की हत्या गला रेत कर की गई थी। पहले घरेलू सहायक हेमराज पर संदेह गया, क्योंकि वह गायब था। पुलिस ने शुरू में जांच करते समय छत तक जाने की जहमत नहीं उठाई। दो दिन बाद अचानक छत पर हेमराज का शव मिला।

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तीन नौकरों पर सीबीआई को था शक

नोएडा पुलिस ने दावा किया था कि आरुषि-हेमराज की हत्या डॉक्टर राजेश तलवार ने की है। पुलिस ने ऑनर किलिंग की दलील रखी। 23 मई, 2008 को पुलिस ने राजेश तलवार को गिरफ्तार भी कर लिया। इस पर इतना हंगामा हुआ कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने जांच सीबीआइ को सौंपने की सिफारिश कर दी। जांच एजेंसी ने तलवार दंपति को निर्दोष बताया और तीन नौकरों कृष्णा, राजकुमार और विजय मंडल को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया। इसके बाद सितंबर 2009 में सीबीआइ की दूसरी टीम ने जांच शुरू की, जिसने तलवार दंपति को फिर से मुख्य आरोपी मान लिया।

सीबीआई तो 2010 में ही केस बंद कर रही थी

हालांकि इसी टीम ने 29 दिसंबर, 2010 को विशेष न्यायालय को यह कहते हुए कि जांच किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी। तो मामला उसी दिन खत्म हो जाता, लेकिन न्यायालय ने क्लोजर रिपोर्ट को मानने से इन्कार कर दिया और सीबीआइ को फिर से जांच के आदेश दिए। उसके बाद तलवार दंपति को फिर आरोपी बनाया गया और 26 नवंबर, 2013 को उन्हें उम्रकैद की सजा हुई।

सवाल वही... फिर हत्यारा कौन?

अगर सीबीआइ की विशेष अदालत ने फटकार नहीं लगाई होती तो जांच एजेंसी ने 2010 में ही इस मामले को खत्म मान लिया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद क्या यह मान लिया जाए कि सीबीआइ की टीम उस समय सही थी? कहना कठिन है। आरुषि और हेमराज की हत्या अगर घर के अंदर होती है, घर का दरवाजा बंद है और अंदर केवल तलवार दंपति ही मौजूद हैं तो फिर हत्यारा कौन यह सवाल तो उठता है। सीबीआइ के सवालों का तलवार दंपति ने क्या जवाब दिया इसका उल्लेख जरूरी है।

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तलवार दंपत्ति ने सवालों के जवाब कुछ इस तरह दिए

पहला, घर में सिर्फ चार लोग थे। घर का दरवाजा भी अंदर से बंद था। फिर हत्या कैसे हुई? तलवार दंपति का जवाब था कि दरवाजे पर ऑटोमैटिक लॉक था, जो बाहर और अंदर से बंद किया जा सकता है। किसी ने हत्या के बाद मुख्य दरवाजे को बाहर से लॉक किया।

दूसरा, आरुषि के कमरे की चाबी राजेश के पास रहती थी। फिर कोई अंदर कैसे जा सकता है? तलवार दंपति का जवाब था कि नूपुर इंटरनेट का राउटर खोलने के लिए आरुषि के कमरे में गई थीं। इसी दौरान आरुषि के कमरे की चाबी लॉक में फंसी रह गई।

तीसरा, सभी सो रहे थे तो घर का राउटर बार-बार ऑन-ऑफ कैसे हो रहा था? इस पर तलवार दंपति का कहना था कि जांच टीम ने भी हत्या वाले दिन सुबह छह बजे से दोपहर एक बजे तक राउटर में ऑटोमैटिक ऑन-ऑफ की प्रक्रिया जारी रहने की बात पाई थी। जब पुलिस घर में थी, तब भी राउटर अपने आप ऑन-ऑफ हो रहा था।

चौथा, आरुषि की मौत के बाद उसके माता-पिता ने उसे गले क्यों नहीं लगाया? राजेश-नूपुर के कपड़ों में खून भी नहीं लगा हुआ था। इसका जवाब यह था कि आरुषि का गला कटा हुआ था। ऐसे में वे अपनी बेटी को गले कैसे लगा सकते थे? यह कहना गलत है कि राजेश और नूपुर के कपड़ों में खून नहीं लगा था।


पांच, सीढ़ियों की चाबी तलवार दंपति ने पहले दिन पुलिस को क्यों नहीं दी? तलवार दंपति का कहना था कि छत के दरवाजे की चाबी हेमराज के पास ही रहती थी। पुलिस ने चाबी का इंतजार क्यों किया? उसने छत में लगा ताला तोड़ क्यों नहीं दिया?

छठा, हत्या के बाद शराब पी गई। शराब की बोतलों पर खून के निशान कैसे मिले? इसके जवाब में कहा गया कि जांच में बोतल पर राजेश के फिंगर प्रिंट नहीं मिले। नौकर के कमरे से भी शराब की बोतल मिली।


सातवां, हेमराज की लाश खींचकर छत पर कैसे ले जाया गया? इसका जवाब यह दिया गया कि हो सकता है हेमराज को छत पर ले जाकर मारा गया हो।

आठ, यदि हेमराज को उसी कमरे में मारा गया होता तो तकिया, बेडशीट और कालीन पर हेमराज के खून के निशान क्यों नहीं मिले? तलवार दंपति का जवाब- क्या उनके लिए मुमकिन था कि वह बेडशीट, तकिया और कालीन से हेमराज-आरुषि के खून को अलग कर सकते थे? अगर सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट जाती है तो देश उसके फैसले की प्रतीक्षा करेगा। मगर सवाल बना रहेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज की हत्या किसने की?

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं)

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