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    जम्मू कश्मीर में आतंकियों की अब खैर नहीं, इनके खात्मे के लिए आ गए 'मार्कोस'

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Wed, 19 Jul 2017 07:26 PM (IST)

    जम्‍मू कश्‍मीर में अब आतंकियों के खिलाफ मार्कोस अहम भूमिका निभाएंगे। इन्‍हें कुछ खास और खतरनाक ऑपरेशन में लगाया जाएगा। ...और पढ़ें

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    जम्मू कश्मीर में आतंकियों की अब खैर नहीं, इनके खात्मे के लिए आ गए 'मार्कोस'

    नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खात्‍मे के लिए अब एक नया प्‍लान तैयार कर लिया गया है। इस प्‍लान के तहत आतंकियों के खात्‍मे के लिए अब सेना का साथ हाईली स्‍पेशलाइज फोर्स के कमांडोज देंगे। यह कमांडो और कोई नहीं बल्कि नौसेना के मरीन कमांडो होंगे। भारत के मरीन कमांडो दुनिया के बेहतरीन कमांडो दस्‍ते में गिने जाते हैं। इन्‍हें मार्कोस भी कहा जाता है। मुंबई हमले के दौरान ताज होटल पर हुए आतंकी हमले में पहला मोर्चा संभालने वाले यही कमांडो थे।

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    आतंकियों का बचना होगा नामुमकिन

    इन कमांडो को बेहद कड़ी ट्रेनिंग से होकर गुजरना होता है। मार्कोस जल, थल और वायु सभी जगह ऑपरेशन को अंजाम देने में महारत हासिल रखते हैं। यह कमांडो यूनिट दुश्‍मन को बिना भनक लगे उनपर टूट पड़ने में माहिर होती है। इनके पास हाइटेक वैपंस के साथ कई अन्‍य उपकरण भी होते हैं। इन्‍हें बेहद मुश्किल मिशन जैसे समुद्री लुटेरों को खत्‍म करने में लगाया जाता है। यही वजह है कि सेना का साथ देने के लिए अब मार्कोस का इस्‍तेमाल करने का मन बनाया गया है। आतंकियों की धर-पकड़ और उन्‍हें खत्‍म करने में अब इनका सहयोग लिया जाएगा। लिहाजा अब आतंकियों का बच पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा।

    तीस मार्कोस की यूनिट तैनात

    इसके लिए नेवी ने लेफ्टिनेंट कमांडर के नेतृत्‍व में तीस कमांडो की यूनिट को तैनात किया है। इसका मकसद यहां पर जारी आतंकी गतिविधियों को खत्‍म करना है। हाल ही में सेना ने इनका इस्‍तेमाल झेलम नदी के नजदीक आतंकियाें के खिलाफ होने वाले सर्च आॅपरेशन में किया था। फिलहाल इन कमांडोज को झेलम नदी वाले इलाके में तैनात किया गया है। यह पूरा इलाका पहाड़ों और पेड़ों से पटा हुअा है, जिसकी वजह से यह आ‍तंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन जाता है।

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    पहले भी सेना का सहयोग दे चुके हैं मार्कोस

    इस इलाके को आतंकी खुद के और अपने हथियारों को छिपाने के लिए इस्‍तेमाल करते हैं। मार्कोस का काम इस पूरे इलाके को आतंकियों से क्‍लीन करने का होगा। इससे पहले 1995 में भी मार्कोस को वुलर लेक के आस-पास का करीब 250 किमी का इलाका साफ करने के लिए लगाया गया था। आतंकियों में भी मार्कोस की तैनाती को लेकर काफी खौफ है। सेना ने इस वर्ष अब तक करीब 105 आतंकियों को ढेर किया है।

    नेवी सील्‍स की तर्ज पर किया गया है तैयार

    मार्कोस को दुनिया की बेहतरीन यूएस नेवी सील्स की तर्ज पर विकसित किया जाता है। इनका चेहरा हर वक्‍त ढका रहता है। भारतीय नौसेना की इस स्पेशल यूनिट का गठन 1987 में किया गया था। इनके गठन के पीछे सरकार का मकसद समुद्री लुटेरों और आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देना था। किसी भी मार्कोस को कड़े इम्‍तिहान से गुजरना होता है, जिसमें उसके शारीरिक और मा‍नसिक बल को भी आंका जाता है। इसके अलावा जल्‍द सही फैसला लेने और उसकी लीडरशिप क्‍वालिटी को भी देखा जाता है।

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    युवा जांबाजों की टीम होती है मार्कोस

    इमसें ज्यादातर 20 साल की उम्र वाले युवा जांबाजों को लिया जाता है। इनकी कठिन ट्रेनिंग का हिस्सा होता है 'डेथ क्रॉल' जिसमें जवान को जांघों तक भरी हुई कीचड़ में भागना होता है। इतना ही नहीं उनके कंधे पर 25 किलोग्राम का बैग भी होता है। इसके बाद 2.5 किलोमीटर का ऑबस्टेकल कोर्स होता है। मार्कोंस की ट्रेनिंग के लिए HALO और HAHO जंप को क्वालिफाई करना पड़ता है। HALO (High Attitude Low Opening) में जमीन से 11 किलोमीटर ऊंचाई से कूदना होता है और पैराशूट जमीन के पास आकर खोलना होता है। जबकि HAHO (High Altitude High Opening) जंप में 8 किलोमीटर की ऊंचाई से कूदना होता है और कूदने के बाद 10 से 15 सेकंड के अंदर ही पैराशूट को खोलना होता है।

    खतरनाक हथियार होते हैं पास

    HAHO जंप -40 डिग्री के जमा देने वाले तापमान पर होती है। इन्हें हर तरह के हथियार से ट्रेनिंग दी जाती है फिर चाहे वो चाकू हो, स्नाइपर राइफल हो, हैंडगन हों या मशीन गन। इनके पास जो हथियार होते हैं वो दुनिया के सबसे बेहतर हथियारों में से होते हैं। बेहतरीन राइफल्स में से एक इजरायली TAR-21 है जो मार्कोस इस्तेमाल करते हैं। मार्कोस इंडियन नेवी के स्पेशल मरीन कमांडोज हैं। स्‍पेशल ऑपरेशन के लिए इंडियन नेवी के इन कमांडोज को बुलाया जाता है। मार्कोस हाथ पैर बंधे होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं।

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