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मौसम उपग्रह इनसेट-3डीआर अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित

स्वदेशी मौसम उपग्रह इनसैट 3 डीआर को श्रीहरिकोटा से गुरूवार को सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया।

By Monika minalEdited By: Published: Wed, 07 Sep 2016 10:34 AM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2016 08:00 AM (IST)
मौसम उपग्रह इनसेट-3डीआर अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित

श्रीहरिकोटा, प्रेट्र/आइएएनएस : भारत ने गुरुवार को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और कामयाबी हासिल की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने उन्नत मौसम उपग्रह इनसेट-3डीआर को 17 मिनट में अंतरिक्ष की मनमाफिक कक्षा में स्थापित कर दिया। इस अभियान के लिए इसरो ने जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल) रॉकेट में स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) तकनीक इस्तेमाल की जिसके जरिये रॉकेट ज्यादा वजन वाले उपग्रह अंतरिक्ष में ले जा सकते हैं।

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इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने इसे एक और उपलब्धि करार देते हुए अभियान से जुड़े वैज्ञानिकों को बधाई दी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में गर्व का यह मौका देने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की सराहना की। तीसरी पीढ़ी के क्रायोजेनिक इंजन से लैस 49.13 मीटर लंबे जीएसएलवी-एफ05 रॉकेट ने पूर्व निर्धारित समय से 40 मिनट की देरी से श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेश सेंटर के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से शाम चार बजकर 50 मिनट पर उड़ान भरी।

पहले यह प्रक्षेपण चार बजकर 10 मिनट पर होना था। इसरो अधिकारियों के अनुसार ईंधन संबंधी तकनीकी वजहों से प्रक्षेपण समय बदलना पड़ा। दस साल तक सेवाएं देगा उपग्रहइसरो ने 2211 किलोग्राम वजन वाले इनसेट-3डीआर उपग्रह की अवधि दस साल तय की है। यह उपग्रह मौसम संबंधी विभिन्न सूचनाओं के अलावा राहत एवं बचाव अभियानों में भी मदद करेगा। इसमें लगे उपकरणों की मदद से रात में भी बादलों और धुंधले आकाश पर नजर रखी जा सकती है।

जीएसएलवी की यह उड़ान बेहद खासयह अभियान इस मायने में बेहद अहम है क्योंकि यह स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज तकनीक के साथ जीएसएलवी रॉकेट की पहली संचालनात्मक उड़ान थी। जीएसएलवी की पिछली कुछ उड़ान में भी स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन व तकनीक इस्तेमाल की गई थी, जो इस इंजन की 'विकासात्मक चरण' की उड़ान थीं।

जीएसएलवी की यह दसवीं और क्रायोजेनिक इंजन के साथ लगातार तीसरी सफल उड़ान है। इससे पहले जीएसएलवी ने जनवरी, 2014 में जीसेट-14 और अगस्त, 2015 में जीसेट-6 उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया था। भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक दो दशक से इस क्रायोजेनिक तकनीक पर काम कर रहे हैं।

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इनसेट क्या है क्रायोजेनिक

तकनीकक्रायोजेनिक तकनीक ज्यादा वजन वाले उपग्रहों को अंतरिक्ष की मनमाफिक कक्षा में स्थापित करने में इस्तेमाल की जाती है। बेहद जटिल इस तकनीक में ईंधन बहुत कम तापमान पर द्रव रूप में प्रयुक्त होता है। ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन को इस्तेमाल किया जाता है। क्रायोजेनिक इंजन में इस ईंधन को जलाने पर बहुत अधिक उर्जा उत्पन्न होती है, जो रॉकेट को तीव्र गति प्रदान करती है।

ये हैं खूबियां

- इसमें छह चैनल इमेजर व 19 चैनल साउंडर उपकरण लगे हैं।

- इनसे रात में भी बादलों और धुंधले आकाश पर साफ नजर रखी जा सकती है।

- थर्मल इंफ्रारेड बैंड से समुद्र के तापमान को सटीक मापा जा सकेगा।

- 1,700 वाट सौर पैनल से खुद बनाएगा ऊर्जा

- डाटा रिले ट्रांसपोंडर और सर्च और रेस्क्यू ट्रांसपोंडर के जरिये बचाव अभियानों में करेगा मदद।

- सूचना का आदान-प्रदान बेहद तेज होगा।

चौथा मौसम उपग्रह

इसरो का यह चौथा स्वदेशी मौसम उपग्रह है। इससे पहले 2002 में कल्पना-1, 2003 में इनसेट-3ए और 2013 में इनसैट-3डी नामक स्वदेशी मौसम उपग्रह इसरो लांच कर चुका है।

अधिक पेलोड की पहली उड़ान

वैसे तो क्रायोजेनिक इंजन से लैस रॉकेट तीन बार उपग्रह भेजे जा चुके हैं। इस उड़ान के साथ इंजन के उन्नत रूप से अधिक वजन को भेजने की क्षमता को परखा जाना है। जनवरी 2014 और अगस्त 2015 में डी5 और डी6 अभियानों में भी जीएसएलवी में क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल हुआ। क्रायोजेनिक इंजन के उन्नत रूप को जीएसएलवी में तीसरे स्टेज में लगाया जाएगा। इस इंजन में ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। भारत छठा ऐसा देश है जिसने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन विकसित किया है। इसी इंजन से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद तक पहुंची थी।

जीएसएलवी की 10वीं उड़ान

इनसेट-3डीआर की लांचिंग जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) के जरिये होगी। इस रॉकेट का नाम जीएसएलवी-एफ05 है। यह जीएसएलवी की दसवीं उड़ान है। जीएसएलवी के जरिये 2.5 टन वजनी उपग्रह को भी लांच किया जा सकता है। यह तीन स्टेज (हिस्सों) वाला रॉकेट है। यह इनसेट-3डीआर को जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट तक पहुंचाएगा। वहां से यह अपने गंतव्य तक खुद की प्रोपल्शन प्रणाली से जाएगा।

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2,211 किग्रा का है यह सैटेलाइट

जीएसएलवी-एफ05 अपनी दसवीं उड़ान में 2,211 किग्रा के अत्याधुनिक मौसम सैटेलाइट इनसैट-3डीआर को जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में प्रक्षेपण करेगा। जीएसएलवी-एफ05 उड़ान में स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) चौथी बार जीएसएलवी की उड़ान में सवार किया जाएगा। वेबसाइट के अनुसार जीएसएलवी-एफ05 उड़ान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सीयूएस से लैस जीएसएलवी की पहली परिचालन उड़ान है। एडवांस मौसम सैटेलाइट श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी-एफ 05 के साथ उड़ान भरेगा। इसरो वैज्ञानिक ने बताया, ‘जब हम नया रॉकेट बनाते हैं, तो हम इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि यह उचित रूप से काम करेगा या नहीं। इस बात से निश्चिंत हो जाने के बाद हम इसके लांचिंग की तारीख तय करते हैं। जीएसएलवी-एफ05 इस सैटेलाइट को जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट में रखेगा जहां से सैटेलाइट अपने इंधन के साथ अपने फाइनल जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में जाएगा।‘

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क्या होता है क्रायोजेनिक इंजन ?

क्रायोजेनिक इंजन में लिक्विड हाइड्रोजन का उपयोग इंधन के तौर पर होता है और लिक्विड ऑक्सीजन का ऑक्सीडाइजर के तौर पर जो इंधन का खपत करने में मदद करती है। यह लिक्विड रॉकेट इंजन की तुलना में बेहतर होती है।

क्रायोजेनिक इंजन वाला छठा देश

क्रायोजेनिक इंजन के उन्नत रूप को जीएसएलवी में तीसरे स्टेज में लगाया जाएगा। इस इंजन में ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। भारत छठा ऐसा देश है जिसने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन विकसित किया है। इसी इंजन से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद तक पहुंची थी। क्रायोजेनिक इंजन के उन्नत रूप को जीएसएलवी में तीसरे स्टेज में लगाया जाएगा। इस इंजन में ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। भारत छठा ऐसा देश है जिसने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन विकसित किया है। इसी इंजन से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद तक पहुंची थी।

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