नये बाजार, निवेशक व साझेदार की तलाश में भारत व अफ्रीका
कूटनीति की दुनिया में एक चर्चा आम होती है कि हर देश को नए दोस्त, नए बाजार और नए निवेशक की खोज हमेशा जारी रखनी चाहिए। आज से शुरु हुए तीसरे भारत अफ्रीका सम्मेलन में शामिल होने वाले भारत और अफ्रीका के सभी 54 देश भी यही करने वाले हैं।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कूटनीति की दुनिया में एक चर्चा आम होती है कि हर देश को नए दोस्त, नए बाजार और नए निवेशक की खोज हमेशा जारी रखनी चाहिए। आज से शुरु हुए तीसरे भारत अफ्रीका सम्मेलन में शामिल होने वाले भारत और अफ्रीका के सभी 54 देश भी यही करने वाले हैं। आज सम्मेलन का आगाज करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दर्जन भर देशों के विदेश मंत्रियों से द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत की। इसके अलावा उन्होंने सभी आमंत्रित देशों के विदेश मंत्रियों की एक अलग से संयुक्त बैठक भी की। कल मंगलवार से पीएम नरेंद्र मोदी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत आए 40 देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मिलने का सिलसिला शुरु करेंगे। यह सिलसिला अगले चार दिनों तक चलेगा।
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विदेश मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए स्वराज ने पूरे सम्मेलन का एजेंडा एक तरह से तय कर दिया है। स्वराज ने इन देशों को आतंकवाद, कृषि, तकनीकी, प्रशासन, स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी समेत हर तरह के क्षेत्र में मदद करने का आश्वासन दिया लेकिन अफ्रीकी देशों से भी संयुक्त राष्ट्र के स्थाई सदस्य बनने और पर्यावरण व डब्लूटीओ के मुद्दों पर सहयोग की अपेक्षा की। भारत ने अफ्रीकी देशों में ज्यादा निवेश करने की इच्छाशक्ति दिखाई और अफ्रीकी देशों में चल रही परियोजनाओं को ज्यादा कर्ज देने की भी रजामंदी दिखा दी। इन आर्थिक सहयोग के मुद्दों के अलावा स्वराज ने अफ्रीकी देशों को महिलाओं की स्थिति सुधारने, बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर करने और ज्यादा छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए वजीफा देने का भी ऐलान किया, अफ्रीकी देशों ने इसे प्रसन्नता से स्वीकार किया है।
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भारत अफ्रीका सम्मेलन 2015 भारत में आयोजित होने वाली अभी तक का सबसे बड़ा कूटनीतिक आयोजन है। इसके पहले वर्ष 1983 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मेलन आयोजित हुआ था। लेकिन मोदी सरकार ने इस आयोजन को सफल में बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सम्मलेन में 40 अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा ले रहे हैं और यह अफ्रीका के बाह अफ्रीका देशों का सबसे बड़ा जमघट बन गया है। इसके अलावा एक दर्जन के करीब देशों के विदेश मंत्री या उप राष्ट्रपति इसमें शिरकत कर रहे हैं। पीएम मोदी ने हर राष्ट्राध्यक्ष से व्यक्तिगत तौर पर द्विपक्षीय बैठक रखी है और हर बैठक के लिए अलग से एजेंडा तैयार किया गया है।
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जानकारों की मानें तो सम्मेलन की जरुरत अफ्रीका के साथ भारत को भी बराबर तौर पर है। विकसित देशों से निवेश के स्त्रोत पहले ही सूख चुके हैं और चीन का दम भी पस्त होने लगा है। ऐसे में अफ्रीकी देशों को भारत से नया निवेश मिल सकता है। दूसरी तरफ से विकसित देशों के बाजार में लगातार आ रहे संकुचन के बाद भारत नए बाजार की तलाश में है। अफ्रीका के कई देश 15 फीसद की आर्थिक रफ्तार से विकसित कर रहे हैं और भारत को वहां संभावनाएं दिख रही हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज सम्मेलन के एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत अगर तेजी से आर्थिक विकास दर हासिल करना है तो उसे अफ्रीका को साथ लेना होगा। भारत ने अफ्रीका में एक परियोजना बैंक स्थापित करने का फैसला किया है जो वहां की परियोजनाओं को ज्यादा आसानी से कर्ज मुहैया करा सकेगा।
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