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चार साल में देश ने खोए 11 परमाणु वैज्ञानिक

देश ने चार सालों में 11 परमाणु वैज्ञानिकों को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया है। इन सभी की अस्वाभाविक मौत हुई। हालांकि संदिग्ध हालात में हुई इन मौतों से अभी भी रहस्य का पर्दा उठना बाकी है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2015 12:59 AM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2015 01:12 AM (IST)

नई दिल्ली । देश ने चार सालों में 11 परमाणु वैज्ञानिकों को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया है। इन सभी की अस्वाभाविक मौत हुई। हालांकि संदिग्ध हालात में हुई इन मौतों से अभी भी रहस्य का पर्दा उठना बाकी है। यह खुलासा परमाणु ऊर्जा विभाग की ओर से उपलब्ध कराए गए ताजा आंक़़डे से हुआ है।

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हालांकि फारेंसिक विशेषज्ञों का कहना है कि देश के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े इन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की असमय मौत के सभी मामलों में फिंगर प्रिंट नदारद हैं। अन्य सुराग भी नहीं मिले, जिसके सहारे पुलिस अपराधियों की पहचान कर पाई। पिछले कई सालों से देश के परमाणु वैज्ञानिकों के जीवन पर संकट मंडराता रहा है। इनमें से कई परमाणु वैज्ञानिकों की मौत रहस्यमय हालात में हुई।

पुलिस इन मामलों को या तो अस्पष्ट करार देती रही है या फिर आत्महत्या बता देती है। कुछ महीने पूर्व बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके इन मौतों के विषय में विशेष जांच दल गठित करने की भी अपील की गई थी। ताकि पता चल सके कि देश के प्रमुख परमाणु संस्थान अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए तय प्रोटोकॉल और सुरक्षा मानक अपना रहे हैं या नहीं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार 2009 से 2013 के दौरान आठ विभाग के लैब तथा शोध केंद्रों में कार्यरत आठ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की मौत धमाके या फांसी लगाने या समुद्र में डूबने से हुई।

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हरियाणा के राहुल सेहरावत के आरटीआई के जवाब में विभाग ने बताया कि इस अवधि के दौरान परमाणु ऊर्जा निगम के तीन वैज्ञानिकों की भी संदिग्ध हालात में मौत हुई। इनमें दो ने कथित रूप से आत्महत्या की और एक की सड़क हादसे में मौत हुई। 2010 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क), ट्रॉम्बे में तैनात सी-ग्रुप के दो वैज्ञानिकों की लाश उनके घरों में फांसी से झूलती हुई पाई गई थी। जबकि 2012 में रावतभाटा में तैनात इसी ग्रुप के एक वैज्ञानिक का शव उनके घर में पाया गया था। बार्क के एक मामले में पुलिस ने आत्महत्या की वजह लंबी बीमारी होने का दावा किया और उस मामले को बंद कर दिया जबकि बाकी मामलों की जांच चल रही है। 2010 में बार्क, ट्रॉम्बे में दो शोधकर्ताओं की संदिग्ध हालात में लगी आग से मौत हो गई।

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एक एफ ग्रेड के वैज्ञानिक की मुंबई स्थित उनके घर में हत्या कर दी गई थी। इस मामले में हत्यारोपी का अभी तक पता नहीं चल सका है। एक डी ग्रेड के वैज्ञानिक ने आरआरसीएटी में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी। पुलिस इस मामले को भी बंद कर चुकी है। कलपक्कम में तैनात एक अन्य वैज्ञानिक ने 2013 में समुद्र में छलांग लगाकर जान दे दी थी। फिलहाल इसकी जांच चल रही है। जबकि मुंबई के एक वैज्ञानिक ने फांसी लगाकर जान दी थी। पुलिस ने इस मामले को व्यक्तिगत वजह से जोड़ा था। एक वैज्ञानिक ने कर्नाटक के करवार में काली नदी में कथित रूप से कूदकर जान दी थी।

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