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एशिया में सबसे ज्यादा भारत से अमेरिका जाते हैं वैज्ञानिक

एशिया से अमेरिका जानेवाले प्रवासी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों में सबसे ब़़डी संख्या भारतीयों की है। अमेरिका के 29.60 लाख एशियाई वैज्ञानिकों-इंजीनियरों में 9.50 लाख भारतीय है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2015 11:59 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2015 12:28 AM (IST)
एशिया में सबसे ज्यादा भारत से अमेरिका जाते हैं वैज्ञानिक

वाशिंगटन । एशिया से अमेरिका जानेवाले प्रवासी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों में सबसे ब़़डी संख्या भारतीयों की है। अमेरिका के 29.60 लाख एशियाई वैज्ञानिकों-इंजीनियरों में 9.50 लाख भारतीय है। नेशनल साइंस फाउंडेशंस नेशनल सेंटर फॉर साइंस एंड इंजीनियरिंग स्टैटिस्टिक्स (एनसीएसईएस) की ओर से जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट मुताबिक 2003 के मुकाबले 2013 में भारत से आने वाले वैज्ञानिकों-इंजीनियरों की संख्या में 85 फीसदी की वृद्धि हुई है। एनसीएसईएस अमेरिका की संस्था है जो वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान के आंक़़डे जारी करती है।

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अमेरिका इसलिए पहली पसंद

दुनिया का 31 प्रतिशत वैज्ञानिक अनुसंधान व इसके लिए फंडिंग अमेरिका में होती है

अनुसंधान और विकास पर ज्यादातर खर्च वहीं की निजी कंपनियां करती हैं

अनुसंधान पर खर्च करने वाली 100 में शीर्ष 42 कंपनियां अमेरिकी।

सबसे ज्यादा शोध पत्र जारी होते हैं

नोबेल पुरस्कार पाने वालों में सबसे ज्यादा अमेरिकी।

अमेरिकी वर्सेज भारत

2007 में अनुसंधान और विकास में अमेरिका ने 353 अरब डॉलर (23,298 अरब पए)खर्च किए थे, जबकि भारत ने 42 अरब डॉलर (2,772 अरब रुपए)।

2015 के बजट में भारत सरकार ने अनुसंधान के लिए 419 अरब रुपए रखे, 2014 से 3.4 प्रतिशत ज्यादा। इसलिए भारतीय जा रहे अमेरिका

अमेरिका में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बेहतर कार्य संस्कृति, सुविधाओं से भरपूर कार्यस्थल, अनुकूल कामकाजी माहौल, मनोरंजन, खेलकूद और व्यायाम की व्यवस्था, मानसिक और शारीरिक सेहत का पूरा ध्यान रखा जाता है। श्रम कानून भारत में काम छोड़ने के लिए नोटिस देना जरूरी है, पर वहां नहीं। नियोक्ता और कर्मचारी का दर्जा वहां बराबरी का है। भारत में नियोक्ता ही शर्ते तय करता है। कर्मचारी कानून हमारे देश में सीएल, ईएल, सिक लिव ही मुख्य रूप से मिलती है। अमेरिका में इन छुट्टियों के अलावा अनिवार्य तौर पर पेरेंटल लिव, फ्युनरल लिव, परिवार के लिए अवकाश, पर्सनल लिव, डिसेबिलिटी लिव मिलती है।

अमेरिका में घर से काम करने की इजाजत मिल जाती है जिससे कर्मचारी को समय, पैसे की बचत होती है।

अमेरिका में यदि आपने आउटपुट दे दिया तो कोई आपसे नहीं पूछेगा कि दो घंटे काम किया कि 9 घंटे, भारत में ऐसा नहीं है।

सिलिकॉन इंडिया डॉट कॉम के अनुसार भारत में काम की तुलना में 30 से 40 फीसदी तक कर्मचारियों को कम वेतन मिलता है।

एक नजर भारत के ब्रेन ड्रेन पर

हर साल भारत से एक लाख 53 हजार विद्यार्थी विदेश जाते हैं

आईआईटी बेंगलुर की स्टडी के अनुसार 10 साल में विदेश जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या 256 प्रतिशत ब़़ढी --2000 में 53 हजार, 2010 में 1.9 लाख विद्यार्थी विदेश चले गए।

सबसे ज्यादा अमेरिका, फिर ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और उसके बाद फ्रांस जाते हैं भारतीय।

10 साल में 85 फीसदी ब़़ढी भारतीयों की संख्या

अमेरिका में 2003 से 2013 तक किस देश के कितने वैज्ञानिक ब़़ढे 85 प्रतिशत भारतीय 34 प्रतिशत चीन 53 प्रतिशत फिलीपींस --अमेरिका में दस साल में तकनीकी रूप से दक्ष लोगों की तादाद 34 लाख से ब़़ढकर 52 लाख हुई। कुल प्रवासी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों में 57 फीसदी एशियाई देशों में पैदा हुए हैं, जबकि 20 फीसदी उत्तरी, मध्य और दक्षिणी अमेरिकी देशों के हैं। रिसर्च में प्रवासियों का योगदान 16 प्रतिशत से ब़़ढकर 18 प्रतिशत हो गया। कुल प्रवासियों में से 63 फीसदी ने अमेरिका की नागरिकता ली, जबकि 22 प्रतिशत वहां के स्थायी निवासी बन गए।

सुपर पावर देश में भारत का पावर

-अमेरिका में काम कर रहे एशियाई वैज्ञानिकों व इंजीनियरों में साढ़ें नौ लाख भारतीय

-नासा में काम करने वालों में 36 प्रतिशत भारतीय

-माइक्रोसॉफ्ट के कर्मचारियों में 34 प्रतिशत भारतीय

-माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला, गूगल के सुंदर पिचाई, पेप्सिको की सीईओ इंदिरा नुई भारतीय।

और यह कहा था पीएम मोदी ने

वर्षो से हम प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन ) की बात करते हैं, लेकिन अब यह ब्रेन गेन में बदल गया है। असल में यह ब्रेन डिपॉजिट है, जो भारत मां की सेवा के लिए अवसर का इंतजार कर रहा है।

नरेंद्र मोदी, अमेरिका में, 28 सितंबर, 2015


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