बकवास अध्यादेश से बचा देश
सजायाफ्ता सांसदों व विधायकों की सदस्यता को बचाने वाले अध्यादेश से देश बच गया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस अध्यादेश को 'बकवास' और 'फाड़कर फेंक देने योग्य' बताया था। इसके साथ-साथ सरकार ने इससे संबंधित विधेयक को भी संसद से वापस लेने का फैसला किया है। बुधवार को पूरे दिन चली कवायद के बाद आखिरकार शाम को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राहुल गांधी के विरोध को देखते हुए अपने पुराने निर्णय को पलट दिया है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सजायाफ्ता सांसदों व विधायकों की सदस्यता को बचाने वाले अध्यादेश से देश बच गया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस अध्यादेश को 'बकवास' और 'फाड़कर फेंक देने योग्य' बताया था। इसके साथ-साथ सरकार ने इससे संबंधित विधेयक को भी संसद से वापस लेने का फैसला किया है। बुधवार को पूरे दिन चली कवायद के बाद आखिरकार शाम को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राहुल गांधी के विरोध को देखते हुए अपने पुराने निर्णय को पलट दिया है।
इससे पहले राहुल गांधी ने मंगलवार रात को वतन वापस आए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सवेरे मुलाकात में भी साफ कर दिया था कि वह अपने फैसले पर कायम हैं। फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बीच भी इस मुद्दे पर आधे घंटे से ज्यादा चर्चा हुई। इसके बाद कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राहुल के फैसले को जैसे ही सही करार दिया, उसके बाद मंत्रिमंडल की बैठक बस औपचारिकता ही बची थी।
शाम को मुश्किल से 15 मिनट हुई मंत्रिमंडल की बैठक में सरकार ने न सिर्फ अध्यादेश, बल्कि संसद में लंबित जनप्रतिनिधित्व संशोधन विधेयक को भी वापस लेने का फैसला कर लिया। कानून मंत्री कपिल सिब्बल की तरफ से रखे गए प्रस्ताव पर सर्वसम्मति से मुहर लग गई। बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने फैसले का श्रेय बेहद सफाई से राहुल गांधी को दिया और यह भी माना कि सरकार को अपने शब्द वापस चबाने पड़े हैं।
तिवारी ने माना कि उन समेत केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने इस अध्यादेश की हिमायत की थी, लेकिन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विचार प्रकट किए और उन हालात में सरकार ने दोबारा उस पर चर्चा कर अध्यादेश व विधेयक वापस लेने का फैसला किया। संसद सत्र शुरू होने पर सदन से विधेयक भी वापस लिया जाएगा।
राहुल के बयान और अब सरकारी फैसले को पलटे जाने को प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखे जाने से मनीष ने इंकार किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री या मंत्रिमंडल के अपमान का सवाल ही नहीं उठता है, बल्कि यह दिखाता है कि संप्रग सरकार तानाशाही से नहीं, बल्कि खुले, उदार और पारदर्शी विचारों वाली है और उसी परंपरा का अनुसरण कर रही है। इससे पहले बुधवार को राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह से करीब 20 मिनट की मुलाकात की और सफाई दी कि उनका मकसद अपमान करना नहीं था।
साथ ही उन्होंने साफ किया कि वह अध्यादेश के खिलाफ हैं और लोगों में गुस्सा है। फिर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री, अहमद पटेल और गृहमंत्री सुशील शिंदे की मौजूदगी में कोर कमेटी हुई। अध्यादेश लेने में सहयोगी दलों के विरोध जताने को दरकिनार करते हुए कोर कमेटी ने राहुल को सही करार दिया और फैसला वापस लेने का निर्णय लिया।
'लोकतंत्र में कभी-कभी जनमानस का बोझ पड़ता है तो संवेदनशील सरकार होने के नाते हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि उस पर विचार करें। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मंत्रिमंडल ने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया।' - मनीष तिवारी, सूचना प्रसारण मंत्री
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