गंगा की सेहत नहीं सुधरी तो आपकी जेब से जाएंगे 24 हजार करोड़ रुपए
जो गंगा कभी सुख, समृद्धि व सेहत का वरदान देती थी, आज वह खुद इस कदर बीमार है कि अपने ही लोगों को असाध्य रोग देने को मजबूर है। अलग-अलग शहरों से हर रोज गंगाजल में घोले जा रहे जहरीले प्रदूषण की वजह से कैंसर जैसी बीमारियां पनप रही हैं। अगर अब भी हम नहीं चेते तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे।
नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। जो गंगा कभी सुख, समृद्धि व सेहत का वरदान देती थी, आज वह खुद इस कदर बीमार है कि अपने ही लोगों को असाध्य रोग देने को मजबूर है। अलग-अलग शहरों से हर रोज गंगाजल में घोले जा रहे जहरीले प्रदूषण की वजह से कैंसर जैसी बीमारियां पनप रही हैं। अगर अब भी हम नहीं चेते तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे। एक आकलन के अनुसार उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में फैले गंगा बेसिन में स्वच्छता के अभाव तथा जल प्रदूषण के कारण पनप रहीं बीमारियों के चलते हर साल अरबों रुपये की हानि हो रही है।
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) ने अलग-अलग अध्ययनों के आधार पर अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि गंगा बेसिन में स्वच्छता के अभाव और जल-प्रदूषण से जो बीमारियां पनपती हैं, उनकी वजह से हर साल लगभग चार अरब डालर (24,000 करोड़ रुपये) का नुकसान होता है। अकेले कानपुर को ही अपर्याप्त जलापूर्ति और साफ सफाई ठीक न होने के कारण हर साल बीमारियों के रूप में 600 से 1600 करोड़ रुपये कीमत चुकानी पड़ती है। बीमारियों की सबसे ज्यादा मार झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों पर पड़ती है। इसके साथ ही शहरों के आसपास के क्षेत्रों में किसान सीवर के गंदे पानी को ट्रीट होने या बिना ट्रीट हुए ही अपनी फसलों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिसके कारण कई तरह के हानिकारक तत्व सब्जियों के रूप में आहार के जरिये शरीर में पहुंचते हैं, जिससे बीमारियां फैलती हैं।
एनजीआरबीए की रिपोर्ट के मुताबिक नदियों के जल की खराब गुणवत्ता से उन समुदायों के स्वास्थ्य और आजीविका पर भी विपरीत असर पड़ता है, जो प्रत्यक्षतौर पर इस पर निर्भर हैं। मसलन मछुआरे और अन्य समुदाय जिनकी आजीविका नदी पर ही निर्भर है। गंगा के किनारे बसे शहरों में लगभग 25 प्रतिशत आबादी स्लम जैसी स्थितियों में रहती है। रिपोर्ट के अनुसार अपर्याप्त स्वच्छता और साफ सफाई न होने की वजह से जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के बराबर आर्थिक हानि होती है। दूसरी ओर गंदे जल का अगर सही ढंग से प्रबंधन हो जाए तो उससे प्रति व्यक्ति करीब 50 डॉलर (3000 रुपये) तक का लाभ हो सकता है। इस बीच गंगा बेसिन क्षेत्र में पानी की किल्लत होने के आसार भी हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक पानी की मांग के मुकाबले आपूर्ति महज 50 प्रतिशत होगी। इसलिए गंगा सहित अन्य नदियों के जल को स्वच्छ बनाए रखना और उनका बेहतर प्रबंधन करना ही सबसे अच्छा विकल्प है।