Move to Jagran APP

गंगा जागरण : मांझी तुम तो मेरे अपने थे!

उफ! किनारे से बीच तक ग्रीस, डीजल.. बस तेल ही तेल, घुटन ही घुटन। जरा से लाभ के चक्कर में तुमने इंजन वाली नौकाएं क्या चलाई, तुम्हारी मां की तो जान पर बन आई। कैसे समझाऊं कि तुम्हारी वजह से बेजुबान जलीय जीव दम फूलने की वजह से दम तोड़ रहे हैं।

By Edited By: Published: Wed, 02 Jul 2014 08:25 PM (IST)Updated: Wed, 02 Jul 2014 10:05 PM (IST)

वाराणसी, (कुमार अजय): हां मैं गंगा बोल रही हूं मेरे मांझी, मेरे बच्चों! पाप और ताप के बोझ के अलावा नालों की गलीच, कचरे का ढेर, कारखानों का जहर और श्मशानों का मलबा क्या कुछ मैंने नहीं ढोया पर सच कहती हूं तुमने जो दर्द दिया, उससे मेरा दिल जार-जार रो रहा है। उफ! किनारे से बीच तक ग्रीस, डीजल.. बस तेल ही तेल, घुटन ही घुटन। जरा से लाभ के चक्कर में तुमने इंजन वाली नौकाएं क्या चलाई, तुम्हारी मां की तो जान पर बन आई। कैसे समझाऊं कि तुम्हारी वजह से बेजुबान जलीय जीव दम फूलने की वजह से दम तोड़ रहे हैं।

loksabha election banner

सच-सच बतलाऊं तुम्हे, औरों ने जो जख्म दिये उनसे मुझे सिर्फ पीड़ा हुई मगर तुम्हारी बेरुखी तो टीस बनकर चुभने लगी है क्योंकि लाल मेरे तुम तो मेरे अपने थे। क्या तुम्हें याद नहीं कि पीढि़यों पहले तुम्हारे पुरखों को इसी मां ने अपने तट पर ठांव दी। करुणा दी, प्यार दिया और रोजी- रोटी की छांव दी। फिर ऐसा क्या हुआ कि बाजार की चकाचौंध में तुम अपनी ही मां की इस दशा के जिम्मेदार हो गए।

मुझे मेरी लरजती लहरें जो बताती हैं उसके मुताबिक देखते ही देखते राजघाट से अस्सी घाट तक 1000 से भी अधिक नौकाएं, इंजन बोट बन गई और उनसे रिसते काले तेल की छीजन दमघोटूं धुंध की तरह पसरती गई मेरे वजूद पर। राजघाट, आरपी घाट, अहिल्याबाई घाट, गायघाट के किसी भी किनारे पर पल भर ठहर के देखो तेल की बुलबुलेदार परत मेरी सांसों का दम घोंटती नजर आ जाएगी। प्रवाह की अविरलता में ठहराव से मरणासन्न स्थिति में तो मैं पहले से ही हूं। तुम्हारे रहते अब क्या मुट्ठी भर ताजी सांस के लिए भी मुझे तरसना पड़ेगा? इस बारे में आइआइटी बीएचयू के रसायन अभियांत्रिकी विभाग के प्रो. पीके मिश्र के अनुसार गंगा में इंजनी नौकाओं की बाढ़ आगे चलकर बीमार गंगा के लिए 'अस्थमा' साबित होने वाली है। जुगाड़ू इंजनों में 'वेपोराइजेशन' ठीक न होने की वजह से तैलीय उत्सर्जनों के साथ कार्बन डाई आक्साइड सहित कई और हानिकारक तत्व भी रोज गंगा का दम घोंट रहे हैं। हाल यही रहा तो नदी में आक्सीजन की घुलन कम होती जाएगी। पानी जहरीला होगा और जलचरों के साथ जलीय वनस्पतियां भी नष्ट हो जाएंगी जो किसी भी नदी का प्राणतत्व होती हैं।

पढ़ें : अमरोहा से मुरादाबाद तक वातावरण गंगामय


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.