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आर्थिक सर्वे 2016ः गरीबों व उद्योगों के लिए सस्ती हो सकती है बिजली

आर्थिक सर्वे में गरीब घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरें घटाने और अमीरों से इसकी भरपाई के साथ उद्योगों को खुले बाजार से प्रतिस्प‌र्द्धी दरों पर बिजली खरीदने की अनुमति देने का सुझाव दिया गया है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2016 08:01 PM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2016 10:01 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आर्थिक सर्वे में गरीब घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरें घटाने और अमीरों से इसकी भरपाई के साथ उद्योगों को खुले बाजार से प्रतिस्प‌र्द्धी दरों पर बिजली खरीदने की अनुमति देने का सुझाव दिया गया है।

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संसद में शुक्रवार को पेश 2015-16 के आर्थिक सर्वे में बिजली क्षेत्र पर सरकार के दृष्टिकोण को उजागर करने की कोशिश की गई है। सर्वे के मुताबिक बिजली उत्पादन बढ़ने के बावजूद बिजली संयंत्रों का प्लांट लोड फैक्टर 60 फीसद के न्यूनतम स्तर पर है। खराब माली हालत के कारण विद्युत वितरण कंपनियों (डिसकॉम) की बिजली खरीदने की क्षमता भी कम हो गई है। ऐसे में उद्योगों को ओपेन एक्सेस के माध्यम से बिजली खरीदने की अनुमति दिए जाने की आवश्यकता है। इससे मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा। अपने देश में एक श्रेणी के उपभोक्ताओं की सब्सिडी दूसरी श्रेणी के उपभोक्ताओं को देने की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। परिणामस्वरूप अधिक खपत पर अधिक दर के बावजूद बिजली का औसत मूल्य उसकी औसत लागत से कम है।

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इस मामले में बांग्लादेश, श्रीलंका, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और ब्राजील जैसे देशों की स्थिति बेहतर है। जहां गरीबों के बजाय धनाढ्य घरेलू उपभोक्ताओं से अधिक दरें वसूली जाती हैं। भारत में भी ऐसा ही करने की जरूरत है। चूंकि सरकार का जोर समाज कल्याण व गरीबों की भलाई पर है, लिहाजा बिजली की दरें इस तरह से तय की जानी चाहिए जिससे बिजली की कम खपत करने वाले उपभोक्ताओं को राहत के बावजूद अधिक खपत करने वाले उपभोक्ताओं पर अनावश्यक बोझ न पड़े। संपन्न घरेलू उपभोक्ताओं के मामले में देखने में आया है एक सीमा तक दाम बढ़ने के बावजूद वे बिजली की खपत कम नहीं करते। लिहाजा राज्यों को आर्थिक सिद्धांतों का बेहतर उपयोग करते हुए राजनीतिक तौर पर हजम होने लायक टैरिफ नीतियां तैयार करनी चाहिए। इससे डिसकॉम अपने राजस्व के नुकसान की भरपाई कर सकने के साथ क्रास सब्सिडी को युक्तिसंगत बना सकती हैं।

सर्वे के अनुसार पिछले दो दशकों में बिजली क्षेत्र में खासी प्रगति हुई है। लेकिन डिसकॉम की हालत बिगड़ी है और उद्योगों पर बोझ बढ़ा है। बिजली क्षमता में रिकार्ड वृद्धि, बिजली का एक बाजार तैयार कर तथा नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को बढ़ावा देकर इस स्थिति में सुधार किया जा सकता है। औद्योगिक बिजली की दरें घटने से भारतीय उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्प‌र्द्धी बन सकेंगे और मेक इन इंडिया को बेहतर ढंग से लागू कर सकेंगे। बिजली की दरें सरल और पारदर्शी होने के साथ गरीबों के लिए किफायती होनी चाहिए। इसके लिए राज्यों तथा नियामकों को केंद्र की मदद से अहम भूमिका निभानी होगी। प्रतिस्पद्धात्मक संघवाद को असरदार बनाने में बिजली क्षेत्र उदाहरण पेश कर सकता है।

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