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आइपीएस अमिताभ ठाकुर के खिलाफ जारी रहेगी विभागीय जांच

सुप्रीम कोर्ट ने अमिताभ ठाकुर के खिलाफ चल रही विभागीय जांच खत्म करने के फैसले पर फिलहाल अंतरिम रोक लगा दी है।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Mon, 16 Jan 2017 08:32 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jan 2017 09:57 PM (IST)
आइपीएस अमिताभ ठाकुर के खिलाफ जारी रहेगी विभागीय जांच

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में आइपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के खिलाफ विभागीय जांच फिर शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अमिताभ ठाकुर के खिलाफ चल रही विभागीय जांच खतम करने और जांच अधिकारी की नियुक्ति रद करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल अंतरिम रोक लगा दी है।

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न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये अंतरिम आदेश उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किये। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रदेश सरकार की याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली है। अब दोनों पक्षों के उत्तर प्रतिउत्तर आने के बाद मामले पर फाइनल सुनवाई होगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुशासनहीनता पद दुरुपयोग आदि के विभिन्न आरोपों में अमिताभ ठाकुर के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की थी लेकिन केन्द्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल (कैट) ने अमिताभ ठाकुर की याचिका स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच और जांच अधिकारी की नियुक्त का राज्य सरकार का 14 जुलाई 2015 का आदेश निरस्त कर दिया था। हालांकि कैट ने राज्य सरकार को नये सिरे से जांच अधिकारी नियुक्त करने की छूट दी थी। कैट के इस आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी गत 29 सितंबर को मुहर लगा दी थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।

सोमवार को मामले पर सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार के वकील रवि प्रकाश मेहरोत्रा ने कहा कि कैट और हाईकोर्ट ने आदेश में जांच और जांच अधिकारी को दुर्भावनापूर्ण कह कर निरस्त किया है जो कि गलत है। सर्विस नियमों में विभागीय जांच सिर्फ तभी निरस्त की जा सकती है जबकि वह पक्षपाती हो। या फिर जांच अधिकारी पक्षपाती साबित हुआ हो। यहां ऐसा नहीं था। यहां तक कि याचिकाकर्ता ने भी जांच और जांच अधिकारी के पक्षपाती या दुर्भावनापूर्ण होने की दलील नहीं दी थी। उन्होंने कहा कि इस सर्विग अधिकारी ने सरकार से अनुमति लिए बगैर कई जनहित याचिकाएं दाखिल कर रखी हैं।

याचिका में विभागीय जांच जारी रखने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि जांच करीब एक साल चली इस बीच बहुत से गवाहों का परीक्षण और उनसे जिरह हुई। अब जांच करीब करीब पूरी होने वाली थी। इस समय जांच रद करना और नये सिरे से जांच अधिकारी नियुक्त कर फिर से जांच कराना ठीक नहीं होगा क्योंकि जिन लोगों की गवाही हो चुकी है उन्हें दोबारा गवाहियां देनी होंगी। सरकार ने याचिका में कहा है कि जांच और जांच अधिकारी को दुर्भावनापूर्ण बता कर जांच निरस्त करने के हाईकोर्ट के आदेश से विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाहियों के मामले में गलत नजीर बनेगी। हाईकोर्ट ने आल इंडिया सर्विस के नियम 8 की 1969 की बहुत व्यग्र होकर गलत व्याख्या की है।

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