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मोदी से मुकाबले के लिए खुद का अखबार निकालेगी कांग्रेस

लोकसभा चुनावों के दौरान मीडिया में नकारात्मक प्रचार से चिंतित कांग्रेस अब पार्टी का अपना अखबार निकालने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की योजना एक अंग्रेजी दैनिक और हिंदी में साप्ताहिक पत्रिका निकलने की है। हार के मंथन में जुटी पार्टी को राज्यों से मिल रहे फीडबैक में यह मांग सामने आई है। इसके अलावा कांग्रेस में इसे लेकर भी चर्चा है कि केरल में चल रहे पार्टी के इलेक्ट्रानिक चैनल 'जय हिंद' की तरह एक राष्ट्रीय नेटवर्क होना चाि

By Edited By: Published: Tue, 24 Jun 2014 10:08 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jun 2014 09:10 AM (IST)

नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी]। लोकसभा चुनावों के दौरान मीडिया में नकारात्मक प्रचार से चिंतित कांग्रेस अब पार्टी का अपना अखबार निकालने की तैयारी कर रही है।

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सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की योजना एक अंग्रेजी दैनिक और हिंदी में साप्ताहिक पत्रिका निकलने की है। हार के मंथन में जुटी पार्टी को राज्यों से मिल रहे फीडबैक में यह मांग सामने आई है। इसके अलावा कांग्रेस में इसे लेकर भी चर्चा है कि केरल में चल रहे पार्टी के इलेक्ट्रानिक चैनल 'जय हिंद' की तरह एक राष्ट्रीय नेटवर्क होना चाहिए। ज्ञात हो, पार्टी के पास पहले नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज के रूप में हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी तीनों भाषाओं के अखबार रह चुके हैं।

कांग्रेस ने मीडिया में पार्टी के कम होते 'स्पेस' और भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले के लिए इस दिशा में सोचना शुरू कर दिया है। पार्टी के पास अखबार निकालने का अनुभव भी है, और देश भर में इसके लिए जरूरी आधारभूत सुविधाएं भी हैं। 9 सितंबर 1938 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरू किए अखबार 'नेशनल हेराल्ड' के नाम पर देश के लगभग सभी राज्यों में 'आफिस स्पेस' है। चूंकि हेराल्ड को यह जमीनें प्रेस संबधित कार्यो के लिए मिली थी ऐसे में इनका कोई दूसरा उपयोग नहीं किया जा सकता। इन जमीनों कार्यालयों की वैधता प्रेस के नाम पर ही बनी हुई है।

राजीव के बाद राहुल?

1 अप्रैल 2008 में बंद होने से पहले तक 'ऐसोसिएट जरनल्स लिमिटेड' के बैनर तले चल रहे अखबार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पुनर्जीवित किया था। 1977 में इंदिरा गांधी सरकार की पराजय के बाद हेराल्ड दो सालों तक बंद रहा। 1986 में अखबार एक बार फिर बंदी की करार पर पहुंच गया था, लेकिन राजीव गांधी के प्रयासों से यह बंद होने से बच गया। हालांकि इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार और 'टीम राहुल' के सदस्य सैम पित्रोदा व नवगठित 'यंग इंडिया' द्वारा इस अखबार को दोबारा शुरू करने की खबरों का खुद राहुल गांधी ने 2011 में खंडन किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में हुई पराजय व मीडिया की भूमिका को लेकर मंथन में जुटे पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बाबत कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। पार्टी के भीतर से आ रही आवाजों के बीच यह संकेत भी मिले हैं कि पार्टी इन्हें नए सिरे से दोबारा शुरू कर सकती है।

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