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..और फिर लौट आया बालिका 'वधू' का बचपन

यह किसी सुखांत फिल्म की स्क्रिप्ट जैसा लग सकता है, लेकिन है बिल्कुल हकीकत। तीन वर्ष की एक बच्ची की शादी 14 वर्ष के लड़के से तब करा दी गई जब उसे इस शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था, लेकिन आइआइएम अहमदाबाद के 1

By Edited By: Published: Mon, 25 Nov 2013 01:08 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2013 01:12 PM (IST)
..और फिर लौट आया बालिका 'वधू' का बचपन

श्रावस्ती (विजय द्विवेदी)। यह किसी सुखांत फिल्म की स्क्रिप्ट जैसा लग सकता है, लेकिन है बिल्कुल हकीकत। तीन वर्ष की एक बच्ची की शादी 14 वर्ष के लड़के से तब करा दी गई जब उसे इस शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था, लेकिन आइआइएम अहमदाबाद के 1978 बैच के छात्रों के सहयोग से चल रहे एक प्रयास ने इस छोटे से जिले में बदलाव की ऐसी लहर पैदा की कि नन्हीं दुल्हन का बचपन फिर लौट आया।

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साक्षरता दर में सर्वाधिक पिछड़े श्रावस्ती जिले के जमुनहा क्षेत्र के नकही गांव में बाल विवाह का मामला प्रकाश में आया है। आयशा (परिवर्तित नाम) का विवाह एक मई, 2007 को तुलसीपुर चौराहा निवासी 14 वर्ष के फरीदी (परिवर्तित नाम) के साथ किया था। शादी के करीब साढ़े चार वर्ष बाद यानी 12 नवंबर, 2011 को गौने की तारीख तय की गई। गौने के समय लड़की की उम्र करीब साढ़े सात साल और लड़के की साढ़े 18 वर्ष थी लेकिन विदाई के ठीक पहले मंगरे ने गौने से इन्कार कर दिया। इसको लड़के वालों ने नहीं माना और नाते-रिश्तेदार के साथ गौने के लिए पहुंच गए। काफी विवाद के बाद इसी दिन पंचायत बैठी जिसमें सुलह-समझौते के तहत तलाकनामा लिखा गया और संबद्ध विच्छेद हो गया।

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समझाने से सुलझी उलझन

शादी के बाद गौने से मंगरे का इन्कार यूं ही नहीं हुआ। दरअसल, मंगरे का संपर्क स्वयंसेवी संस्था के साथ हुआ जो जमुनहा के 50 गांव में बाल शिक्षा अधिकार समिति का गठन कर गांवों में बच्चियों की शिक्षा के लिए अभिभावकों को जागरूक कर रही है। मंगरे इस समिति के अध्यक्ष हैं। बाल विवाह जैसी कुरीतियों के प्रति जब उसका हृदय परिवर्तन हो गया तो बेटी का गौना देने का फैसला बदल दिया। समाज व नाते-रिश्तेदारों का दबाव भी बना लेकिन वह फैसले पर अडिग रहा और उसने तय कर लिया कि बच्ची की आंखों में देख कर ही गौने का फैसला लिया जाएगा। बकौल मंगरे वह अपनी बेटी को अभी और पढ़ाएगा और बालिग होने पर ही उसका विवाह करेगा। लड़की भी कह रही है कि वह पढ़ाई पूरी कर शादी करेगी।

समाज को सवाल देकर अब दोनों संतुष्ट

आयशा नकही गांव में ग्रामीण बालिका शिक्षा केंद्र में कक्षा चार की छात्रा है। लड़का फरीदी मजदूरी मेहनत कर रहा है। फरीदी की दूसरी शादी इसी क्षेत्र के एक गांव में करीब ढाई वर्ष पूर्व हो गई है। दोनों पक्षों की ओर से पंचायत के बाद कोई अपील या फरियाद नहीं की गई है। दोनों पंचायत के फैसले को अंतिम मान रहे हैं।

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सवाल अभी बाकी है

निकाह के लिए अधिकृत मदरसा अनवार तैय्यबा के हाफिज अतीक अहमद का कहना है कि शरीयत के अनुसार यह विवाह मान्य है। हालांकि तलाक के मामले में वह कहते हैं कि नाबालिग का कौल शरीयत में कोई एतबार नहीं रखता जब तक उनका कोई वली एकरार न कर लें। नाबालिग हजार बार तलाक शब्द कहे तो शरीयत के अनुसार कबूल नहीं होगा।

आइआइएम के इंपैक्ट का असर

मंगरे के हृदय परिवर्तन में अहम भूमिका निभाने वाली देहात संस्था के निदेशक डॉ जीतेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि 2010 से जमुनहा के 30 गांवों में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जिले में कार्य करना शुरू किया। संस्था को आइआइएम अहमदाबाद के 1978 बैच के विद्यार्थियों द्वारा गठित संस्था इंपैक्ट की ओर से वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

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