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बंगाल के मेले में हजारों बाल विवाह

त्योहारों के मौसम में यूं तो मेले लगना आम बात है, लेकिन बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले में लगने वाला बाल विवाह का मेला सरकार के प्रयासों पर कुठाराघात है। आदिवासी बाहुल्य इस जिले में नाबालिग लड़के-लड़कियों की शादी के लिए बाकायदा भीड़ जुटती है। जबकि प्रशासन लाख दावों के बावजूद मूकदर्शक बना देखता रह ज

By Edited By: Published: Tue, 22 Oct 2013 05:47 AM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2013 05:57 AM (IST)

कोलकाता, जागरण ब्यूरो। त्योहारों के मौसम में यूं तो मेले लगना आम बात है, लेकिन बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले में लगने वाला बाल विवाह का मेला सरकार के प्रयासों पर कुठाराघात है। आदिवासी बाहुल्य इस जिले में नाबालिग लड़के-लड़कियों की शादी के लिए बाकायदा भीड़ जुटती है। जबकि प्रशासन लाख दावों के बावजूद मूकदर्शक बना देखता रह जाता है।

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पढ़ें: मुस्लिम समाज नहीं चाहता बाल विवाह पर प्रतिबंध

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'सुचेतना' की रिपोर्ट के अनुसार जनजातीय बाल विवाह के ऐसे मेले उत्सवों के इस मौसम में हर साल आयोजित किए जाते हैं। नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में हिंसा में कमी आने के बाद जनजातीय लोग निडर होकर मेले का आयोजन करते हैं। 'सुचेतना' की सचिव स्वाति दत्त बीनपुर के पास आयोजित ओरगोंडा पाताबिंदा मेले में पुरुलिया व बांकुड़ा जैसे निकटवर्ती जिलों से हजारों लोगों के आने की बात कहती हैं। दत्त ने बताया कि इस दौरान शिल्दा से बेलपहाड़ी तक 20 किलोमीटर के इलाके में एक लाख से अधिक जनजातीय लोग कई मेले का आयोजन करते हैं। मेले में लड़की के परिजन उसे अपनी पसंद का वर ढूंढने की इजाजत देते हैं। लेकिन इन्कार करने पर उनका जबरन विवाह करा दिया जाता है।

संथाल, लोढ़ा, खीरी और महतो जैसे जनजातीय समुदायों में 12 वर्ष की उम्र में ही लड़की की शादी कर दी जाती है। सर्वे में पता चला है कि शादी के बाद अधिकतर लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। कई गांवों में तो 60 से 70 फीसद लड़कियों का बाल विवाह होता है।

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