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जनता परिवार के अस्तित्व से बिहार में बदलेगा सियासत का रंग

जनता परिवार के अस्तित्व में आने के साथ ही बिहार में सियासत का रंग-ढंग, चाल-चरित्र, झंडे-बैनर के साथ-साथ बहुत कुछ बदलना तय है। पुराने दलों के विसर्जन और नई पार्टी के विधिवत गठन के बाद सबसे पहले राजद और जदयू के कार्यकर्ताओं का नजरिया बदलेगा।

By anand rajEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2015 09:27 AM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2015 10:46 AM (IST)

पटना (राज्य ब्यूरो)। जनता परिवार के अस्तित्व में आने के साथ ही बिहार में सियासत का रंग-ढंग, चाल-चरित्र, झंडे-बैनर के साथ-साथ बहुत कुछ बदलना तय है। पुराने दलों के विसर्जन और नई पार्टी के विधिवत गठन के बाद सबसे पहले राजद और जदयू के कार्यकर्ताओं का नजरिया बदलेगा। दुश्मन को दोस्त की नजर से देखने का तरीका, ठिकाने और चुनाव चिह्न भी।

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सियासत की चाल-चरित्र, झंडे-बैनर का बदलना तय

विलय की व्यग्रता के बीच मिल रही सूचनाओं के मुताबिक जदयू के चुनाव चिह्न तीर का मालिकाना हक बदलना भी तय दिख रहा है।11 साल बाद तीर का निशाना उलटा हो सकता है। जीतन राम मांझी अगर किसी तरह इसे लेने में सफल हो गए तो इसमें कोई शक नहीं कि इसी तीर से वह अपने पुराने आका नीतीश कुमार पर हमले करेंगे। तकरीबन तीन दशक बाद लालू प्रसाद का लालटेन भी बदलाव की इस आंधी में निस्तेज हो सकता है अथवा राजद के बदले किसी और के घर का अंधेरा दूर करने लग सकता है। वैसे अभी तक इसका कोई दावेदार सामने नहीं आया है, मगर पप्पू यादव की पदयात्रा के बाद हो सकता है इस पर किसी का मन ललच जाए।

कई छोटे-बड़े नेताओं के पद-कद भी जाएंगे बदल

सियासत का मौसम बदल रहा है तो वीरचंद पटेल पथ पर राजद-जदयू के कार्यालयों के बीच की दूरी भी सिमट जाएगी। वक्त बताएगा कि किसके दफ्तर में कौन बैठता है? फिलहाल इतना तय है कि सुशासन का पाठ लालू के समर्थकों को बड़े ध्यान से सुनना पड़ेगा और यही बात नीतीश कुमार के अनुयायियों पर भी लागू होगी।

बदलाव की आंधी विधानसभा में भी पहुंचेगी। उदय नारायण चौधरी को भी थोड़ी कवायद करनी पड़ेगी। अब्दुल बारी सिद्दीकी को विधायक दल के नेता से अलग कोई और पद देना पड़ेगा, क्योंकि नई व्यवस्था में यह पद नीतीश कुमार के पास ही रहेगा। दोनों दलों के वर्तमान सचेतकों-मुख्य सचेतकों की भूमिका में भी फेरबदल होना तय है।

सबसे बड़ी मुश्किल तो जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे के सामने आने वाली है। दोनों दल एक तो अध्यक्ष भी अब एक ही होगा। जाहिर है, इनमें से एक को अब दूसरे कामों में लगाया जाएगा। बदलाव की हवा राजधानी से आगे जिलों और प्रखंडों तक जाएगी। वहां भी जिलाध्यक्षों-प्रखंड अध्यक्षों के पद-कद सब बदलेंगे, क्योंकि म्यान एक रहेगी तो उसमें तलवारें दो कैसे हो सकतीं हैं?

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