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फिर एकजुट हुआ जनता परिवार, भाजपा के माथे पर बल

असंभव मानी जाने वाली घटना संभव होने लगे तो उसके असर की भविष्यवाणी यूं तो संभव नहीं है लेकिन माहौल में एक साथ डर, आशंका या उत्साह होना लाजिमी है। जनता परिवार के विलय की औपचारिक घोषणा के साथ ही जहां जनता परिवार के घटक दलों में आशंका मिश्रित उत्साह

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2015 08:36 AM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2015 10:49 AM (IST)
फिर एकजुट हुआ जनता परिवार, भाजपा के माथे पर बल

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। असंभव मानी जाने वाली घटना संभव होने लगे तो उसके असर की भविष्यवाणी यूं तो संभव नहीं है लेकिन माहौल में एक साथ डर, आशंका या उत्साह होना लाजिमी है। जनता परिवार के विलय की औपचारिक घोषणा के साथ ही जहां जनता परिवार के घटक दलों में आशंका मिश्रित उत्साह दिखने लगा है वहीं बिहार चुनाव से पहले इस गठजोड़ ने भाजपा को सहमा दिया है।

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भाजपा को यह आशंका सताने लगी है कि एकजुट जनता परिवार प्लस कांग्रेस का जातिगत समीकरण कहीं बिहार फतह की मंशा पर पानी न फेर दे। ऐसा हुआ तो असर दूर तक दिख सकता है। भाजपा को नए सिरे से अपनी रणनीति पर मंथन करना पड़ सकता है।

पिछली हारों से पस्तहाल जनता परिवार के घटक दलों ने बहुत मजबूरी में विलय का फैसला लिया है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। शायद यही कारण है कि हर दल में एक घटक ऐसा बरकरार है जो अभी से टूट को लेकर भी आशंकित होने लगा है। बहरहाल बेचैनी भाजपा खेमे में ज्यादा है।

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से लेकर महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड में भाजपा ने विभाजित विपक्ष के दम पर ही जीत हासिल की थी। इसके उलट दिल्ली में भाजपा चित हो गई थी। बिहार अगली बड़ी चुनौती है और यहां भाजपा के लिए नाक की लड़ाई है।

लालू प्रसाद यादव ने भाई (मुस्लिम-यादव) फार्मूला और पिछड़ों के समर्थन से ही 15 वर्षो तक नाबाद शासन किया था। जनता परिवार के विलय से यह फिर से सुनिश्चित हो सकता है। ऊपर से कांग्रेस का तड़का भाजपा को परेशान कर सकता है। पिछले वोट फीसद के लिहाज से भी उनका संयुक्त आंकड़ा भाजपा को डराने के लिए काफी है।

सूत्रों की मानी जाए तो भाजपा केवल बिहार तक ही नहीं पूरे देश में इसके असर के आकलन पर अभी से विचार में जुट गई है। यह और बात है कि जनता परिवार के घटक दलों का एक दूसरे राज्यों में असर नहीं है लेकिन सम्मिलित रूप से उनके असर को खारिज करना संभव नहीं है।

संसद से लेकर सड़क तक उनकी एकजुटता का राजनीतिक संदेश भी मायने रखेगा। गौरतलब है कि बिहार के बाद अगले साल पश्चिम बंगाल, फिर उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होना है।

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