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शुरुआत से ही गांधी-नेहरू से अलग थे सुभाष चंद्र के विचार

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा सुभाष चंद्र बोस के परिजनों की जासूसी कराए जाने के खुलासे के बाद से दोनों नेताओं के बीच के संबंधों की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू के बीच न सिर्फ सियायी मनमुटाव था, बल्कि दोनों

By vivek pandeyEdited By: Published: Sat, 11 Apr 2015 11:45 AM (IST)Updated: Sat, 11 Apr 2015 01:03 PM (IST)

नई दिल्ली [विवेक पांडेय]। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा सुभाष चंद्र बोस के परिजनों की जासूसी कराए जाने के खुलासे के बाद से दोनों नेताओं के बीच के संबंधों की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू के बीच न सिर्फ सियायी मनमुटाव था, बल्कि दोनों के खराब संबंधों के बारे में कई उदाहरण अलग-अलग समय पर पेश किए गए हैं।

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सुभाष चंद्र बोस की तथाकथित मौत के रहस्य को लेकर कई किताबें सामने आ चुकी हैं जिनमें नेहरू और बोस के संबंधों पर टिप्पणी की है। इसके साथ ही गांधी का जिक्र दोनों के रिश्तों की बात आते ही स्वत: अा जाता है। क्योंकि, एक समय पर नेहरू और बोस के विचार एक जैसे थे लेकिन, गांधी जी से बोस के हुए मनमुटाव के बाद इनके रिश्ते दरकने लगे थे।

यहां तक कि जब नेहरू जी ने तत्कालीन इंडियन सिविल सर्विसेज को कोसा था तो उसी के बाद बोस ने आइसीएस की नौकरी छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली थी। लेकिन, इसके बाद से ही अलग-अलग समय पर बोस के बयान और गांधी से बढ़ती उनकी दूरी ने नेहरू से उनके रिश्तों में खटास ला दी थी।

गरम और नरम दल :

सन 1921 में भारत आते ही बोस ने गांधी से मुलाकात की और इसके बाद कांग्रेस में काम शुरू कर दिया था। यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गए और कांग्रेस में उनका रुतबा भी काफी बढ़ गया। लेकिन, बोस बाल गंगाधर तिलक (गरम दल) के समर्थक थे जबकि गांधी गोपाल कृष्ण गोखले (नरम) दल के। शुरूआती मतभेद यहीं से उभरने शुरू हुए।

'पूर्ण स्वराज' आंदोलन :

सन 1927 में सुभाष चंद्र बोस ने 'पूर्ण स्वराज' का नारा दिया। यह पहला मौका था जब गांधी जी और उनके बीच के खराब संबंध सामने आए। सन 1928 में इस नारे को कमजोर कर दिया गया। नरम-गरम दल के बीच दूरियां इसमें काफी बढ़ी। इसके बाद 1929 में गांधी जी ने नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। 1942 में बोस के इसी नारे को नए ढंग से पेश कर कांग्रेस ने देशभर में बड़ा आंदोलन छेड़ा था।

दांडी मार्च :

सन 1930 में जब गांधी जी ने दांडी मार्च किया तो बोस इसके समर्थन में आ गए जबकि नेहरू जी ने इसका विरोध किया था। नेहरू इस मार्च से डरे हुए थे जबकि बोस ने इसकी तुलना नेपोलियन के मार्च से करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया। इसे लेकर दोनों नेताओं के बीच वैचारिक खटास को सभी लोगों ने साफ तौर पर महसूस किया था।

गोलमेज सम्मेलन 1931:

दूसरे गोल मेज सम्मेलन के बाद तो बोस ने गांधी जी पर सीधे तौर पर हमला किया। गांधी जी ने इस सम्मेलन में अल्पसंख्यक का मुद्दा उठाया था जबकि बोस का आरोप था कि यहां भारत की आजादी को लेकर बात होनी चाहिए थी। इस मुद्दे पर गांधी जी की वजह से नेहरू और बोस के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हो गई थी।

नई पार्टी बना ली :

सन 1939 में बोस कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए खड़े हुए और काफी अंतरों से जीत भी गए। जबकि गांधी जी ने उन्हें चुनाव से हटने काे कहा था और वे पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। फिर जब गांधी जी ने सीतारमैया की हार पर भावनात्मक टिप्पणी की तो बोस ने कांग्रेस से ही इस्तीफा दे दिया और ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।

हिटलर और मुसोलिनी से संबंध :

विश्व युद्ध के समय भी बोस के विचार सबसे अलग थे और इसी की वजह से सन 1940 में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। इससे पहले ही हिटलर और मुसोलिनी से उनकी नजदीकियों को लेकर गांधी और नेहरू ने नाराजगी जाहिर की थी। यही कारण था कि इन नेताओं के बीच के संबंध और भी खराब होते चले गए। गांधी और नेहरू, बोस के आजाद हिंद फौज के गठन के फैसले के खिलाफ थे।

गिरफ्तारी का करार :

बोस पर लिखी गई कई किताबों में इस तथ्य का जिक्र है कि भारत की आजादी के जिस दस्तावेज पर नेहरू ने हस्ताक्षर किए थे उसमें यह भी लिखा था कि यदि बोस आजाद भारत में भी लौटेंगे तो उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। उन पर यूनाइटेड किंगडम के खिलाफ युद्द का अभियाेग चलाने का करार भी था। इसी से नेहरू और बोस के संबंधों को आंका जा सकता है।

'नेताजी के परिजनों की जासूसी कराते थे नेहरू'


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